ह्रदय की प्रत्येक धड़कन के समय जो अधिकतम दबाव (प्रेशर) होता है, उसे ‘सिस्टोलिक प्रेशर’ कहते हैं, जिसमें हृदय के निचले भाग के कोष में आकुंचन होता है। दो धड़कनों के मध्य काल का जो समय होता है, उस वक्त कम-से-कम जो दबाव होता है, उसे ‘डायस्टोलिक प्रेशर’ कहते हैं। इन दोनों के संतुलित दबाव को ‘ब्लड-प्रेशर’ कहते हैं। आम तौर से शिशु का रक्तचाप 80/50 मिमी. मरकरी, युवकों का 120/80 मिमी. मरकरी और प्रौढ़ों का 140/90 मिमी.मरकरी होना सामान्य स्थिति होती है। इसमें पहली बड़ी संख्या सिस्टोलिक और दूसरी छोटी संख्या डायस्टोलिक प्रेशर की सूचक होती है। एक सामान्य फार्मूला यह भी माना जाता है कि अपनी आयु के वर्षों में 90 जोड़ लीजिए।
योगफल के आस-पास ही आपका सामान्य सिस्टोलिक प्रेशर होना चाहिए।
उच्च रक्तचाप क्यों होता है : ‘शारीरिक कारण’ एवं*मानसिक कारण’।
शारीरिक कारण : उच्च रक्तचाप अथवा हाई ब्लड प्रेशर अथवा हाइपरटेंशन के विषय में निम्न शारीरिक कारण मिल सकते हैं-
1. रक्तवाहिनी शिराओं का मार्ग संकीर्ण हो जाए अथवा शिराएं कठोर हो जाएं।
2. गुर्दे में कोई विकार या किसी व्याधि का होना।
3. लिवर के माध्यम से होने वाले रक्त प्रवाह में बाधा उपस्थित होने से पोर्टल वेन में दबावं उत्पन्न होने के कारण।
रक्त में कोलेस्ट्राल नामक तत्त्व की मात्रा सामान्य स्तर से ज्यादा हो जाने पर या शरीर में चर्बी ज्यादा बढ़ने से (मोटापा होने से), पैतृक प्रभाव से, वृद्धावस्था के कारण आई निर्बलता से, गुदे या जिगर की खराबी होने आदि कारणों से उच्च रक्तचाप होने की स्थिति बनती है। ये सब शारीरिक कारण होते हैं।
मानसिक कारण : मनुष्य का मन बड़ा संवेदनशील होता है, उस पर जो व्यक्ति स्वभाव से भावुक भी होते हैं, उनकी संवेदनशीलता और भी ज्यादा बढ़ी हुई रहती है। ऐसे में यदि उनको कोई चिंता, शोक, क्रोध, ईष्र्या या भय का मानसिक आघात लगे, तो उनके दिल की धड़कन बढ़ जाती है, स्नायविक संस्थान तनाव से भर उठता है। अत:इस प्रकार के अनेकों मानसिक वेगों से बचना आवश्यक है।
उच्च रक्तचाप का लक्षण
सिरदर्द, सिर में भारीपन, तनाव एवं चक्कर आना, थकावट होना, चेहरे पर तनाव मालूम देना, हृदय की धड़कन बढ़ना, सांस लेने में असुविधा होना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन होना, अनिद्रा, घबराहट, बेचैनी होना आदि लक्षण उच्च रक्तचाप के कारण हो सकते हैं।
बचाव
शारीरिक कारण उत्पन्न करने वाला गलत आहा रविहार न करके उचित और निश्चित समय पर सादा सुपाच्य आहार लें, पाचन शक्ति ठीक रखें, शरीर पर मोटापा न चढ़ने दें, ऐसे पदार्थों का सेवन न करें, जो रक्त में कोलेस्ट्राल और मोटापा बढ़ाते हों। श्रम के कार्य किया करें या व्यायाम अथवा योगासनों का नियमित अभ्यास किया करें। वजन घटाने के लिए फल, सलाद आदि का प्रयोग अधिक करें।
मानसिक कारण उत्पन्न करने वाले कारणों से बचकर रहें। चिन्ता न करके ‘चिन्तन’ करना चाहिए। ‘चिन्ता’ और ‘चिन्तन’ में बहुत फर्क होता है। मन की इच्छा के विपरीत और पीड़ादायक सोच-विचार करने को चिन्ता करना कहते हैं। योगासनों में ‘शवासन’ सर्वोत्तम रहता है।
उच्च रक्तचाप का उपचार
प्राकृतिक चिकित्सा में तुलसी की पत्ती, नीम की पांच पत्ती एवं तीन काली मिर्च आपस में मिलाकर गोली बनाकर नित्य सेवन करें।
अमेरिका की एक महिला डाक्टर ए. विगमोर ने गेहूं के छोटे-छोटे पौधों का रस पिलाकर असाध्य से असाध्य उच्च रक्तचाप के रोगियों को ठीक करने का दावा किया है।
प्रात: काल मौन होकर भ्रमण करना फायदेमंद रहता है, किन्तु अधिक तेजी से न घूमें, वरना उच्च रक्तचाप बना रहेगा। उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए ‘शवासन ‘बहुपयोगी है।
सिमिलिमम के आधार पर निम्नलिखित होमियोपैथिक औषधियां प्रयुक्त की जा सकती हैं-
‘बेलाडोना’, ‘ग्लोनाइन’, ‘ओरम’। अत्यधिक तीव्र स्फुरण (कम्प), हृदय में बेचैनी, छाती में जकड़न, कैरोरिड एवं टेम्पोरल धमनियों में धड़कन स्पष्ट दिखाई पड़ती है, रोगी में आत्महत्या की इच्छा उठती है, तो ‘ओरममेटेलिकम’ औषधि 30 शक्ति में फायदेमंद रहती है, इसमें नाड़ी तीव्र व अव्यवस्थित हो जाती है। साथ ही, अचानक रक्तचाप बढ़ जाता है, चेहरा लाल पड़ जाता है, गर्दन में कैरोटिड धमनी की धड़कन बढ़ जाती है, सिरदर्द एवं आंखों में दर्द होने लगता है, रोगी को प्यास कम लगती है, नींद में डरावने सपने दिखाई पड़ते हैं, तो ‘बेलाडोना’ उच्च शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए। रक्तचाप अचानक बढ़ जाता है, अचानक कम हो जाता है, रोगी सूर्य की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता, सिरदर्द होने लगता है, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, शरीर की सभी धमनियों में धड़कन दिखाई पड़ती है, तो ‘ग्लोनाइन’ 6 अथवा 30 शक्ति में लेनी चाहिए। ‘सरपेंटाइना औषधि’ मूल अर्क में, उच्च रक्तचाप में फायदा करती`है।
निम्न रक्तचाप : कारण और लक्षण
जब हृदय से धमनियों में प्रवाहित रक्त का दबाव कम होता है (सामान्य से कम), तो इसे निम्न रक्तचाप कहते हैं। इसके लक्षण हैं कमजोरी महसूस होना, मिचली आना और कभी-कभी जब रक्तचाप बहुत कम हो जाए, तो बेहोश मरीज को कम्पन भी महसूस होती है। निम्न रक्तचाप चोट के कारण रक्त बहने, पेट में अल्सर के फट जाने, नाक से गम्भीर रक्तस्राव हो जाने, विषाक्त भोजन खा लेने, रक्तक्षीणता होने आदि कारणों से हो सकता है।
निम्न रक्तचाप का उपचार
निम्न रक्तचाप के उपचार का पहला कदम उसका मूल कारण पता लगाना है। अगर रक्तचाप अचानक घट जाता है, तो इसका कारण रक्तस्राव होगा, जैसा कि जख्मी होने पर होता है। ऐसी हालत में सर्वश्रेष्ठ यही है कि मरीज को अस्पताल ले जाया जाए और वहां उसे खून चढ़ाया जाए। अगर यह रक्तक्षीणता के कारण है, तो इसका उपचार रक्तक्षीणता दूर करके ही हो सकता है। 15-15 मिलि. ब्रांडी में गर्म जल मिलाकर लेने से तात्कालिक रूप से रक्तचाप बढ़ जाता है।
निम्न रक्तचाप के मरीज को संतुलित पौष्टिक आहार देना चाहिए, जिसमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त हों। सूखे फल, पनीर, काला चना, आम, केला, सेब, अंगूर जैसे फल और सब्जियां, सभी प्रकार की फलियां मरीज को देना उत्तम रहता है। निम्न रक्तचाप के मरीज को कठोर श्रम वाले व्यायाम से बचना चाहिए।
होमियोपैथिक औषधियों में ‘विस्कम एल्बम’, ‘डिजिटेलिस’ आदि औषधियां लाभदायक एवं प्रभावी हैं।
बाई करवट लेटने पर दम घुटता है, सांस फूलना, धीमी नाड़ी, रक्तचाप कम, जोड़ों में दर्द, दोनों टांगों एवं नितम्बों में ऐंठन, दर्द, पूरा शरीर आग में जल रहा है ऐसा महसूस होना, बिस्तर में अधिक परेशानी (लेटने पर, मुख्य रूप से बाईं तरफ), जाड़े का मौसम अधिक कष्टप्रद आदि लक्षण मिलने पर ‘विस्कम एल्बम’ दवा का मूल अर्क 5-10 बूंद दिन में दो-तीन बार लेना चाहिए।
हिलने-डुलने पर हृदयगति रुक जाएगी, तो निम्न रक्तचाप के रोगी को ‘डिजिटेलिस’ औषधि निम्नशक्ति में प्रयोग करनी चाहिए। एड्रीनेलीन 6 निम्न रक्तचाप की उत्तम औषधि है।