इस ज्वर को विषम ज्वर, जुड़ी ताप, जाड़े का बुखार, शीत ज्वर तथा मौसमी बुखार इत्यादि के नाम से भी जाना जाता है । इस रोग के कीटाणु विशेष प्रकार के (मादा) मच्छरों के काटने से मनुष्य के शरीर में पहुँचकर रक्त में अपने वंश की वृद्धि करते रहते हैं। भारतवर्ष में लाखों व्यक्ति प्रतिवर्ष इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। मच्छर के काट लेने से इस रोग के कीटाणु शरीर में पहुँचकर तथा रक्त में बढ़कर, संक्रमण (इन्फेक्शन) फैला देते हैं। सबसे पहले रोगी के शरीर में दर्द होता है। हड्डियाँ टूटती प्रतीत होती हैं । कंपन व सर्दी, पीठ में विशेष रूप से सर्दी लगकर ज्वर चढ़ जाता है। कई बार ज्वर की अधिकता से इतना जाड़ा लगता है कि कई-कई कम्बल अथवा रजाई डालने पर भी सर्दी दूर नहीं होती है। इस अवस्था के बाद सर्दी व कंपन दूर हो जाती है और रोगी का शरीर गरम हो जाता है, तदुपरान्त उसको पसीना आ जाता है । पानी जैसा पतला मूत्र अधिक मात्रा में आता है। दूसरे या तीसरे दिन फिर इस प्रकार ज्वर हो जाता है। ज्वर के समय कई रोगियों को कंपन के अतिरिक्त सिर में दर्द, मितली, कै इत्यादि के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। मलेरिया घातक व पुराना हो जाने पर ज्वर तो अनियमित रूप से कभी-कभी ही चढ़ता है और कभी-कभी बिल्कुल नहीं चढ़ता है, किन्तु इसके विषैले प्रभाव रक्त में बहुत अधिक हो जाते हैं। रोगी के सिर में दर्द रहता है। कै (वमन) आती है। पुराने रोग के संक्रमण से रोगी की तिल्ली (प्लीहा अर्थात् स्पलीन) बढ़ जाती है। मलेरिया बार-बार होते रहने से रोगी का जिगर (यकृत या लीवर) व तिल्ली बढ़ जाती है। पाण्डु रोग, पेचिश, अतिसार, अत्यधिक शारीरिक कमजोरी, नाक से रक्त बहना, तन्त्रिका में दर्द, हृदय अधिक धड़कने लग जाना इत्यादि रोग हो जाते हैं । कई-कई रोगियों को यह ज्वर प्रतिदिन तथा कई रोगियों को दूसरे या तीसरे अथवा 5-7 दिन के बाद हो जाया करता है।
मादा मच्छर एनाफिलीज के काटने से शरीर में प्लाज्मोडियम नामक कीटाणु का संक्रमण हो जाता है, जिसके कारण जाड़ा लगकर मलेरिया बुखार उत्पन्न हो जाता है। बच्चों को भी यह रोग हो जाया करता है । जिसके कारण सिर दर्द करने लगता है और परिणामस्वरूप बच्चा बार-बार अपने सिर पर हाथ फेंकता है, उसके हाथ-पैर ठण्डे हो जाते हैं तथा पेट और माथा गरम हो जाता है । प्राय: सुबह ज्वर कम होता है या एकदम रहता ही नहीं है तथा दोपहर से ज्वर बढ़ते-बढ़ते और रात में ज्वर बहुत बढ़ जाता है। कभी कब्ज और कभी दस्त होते रहते हैं। भूख खत्म हो जाती है। समस्त शरीर में दर्द होता है । थकावट और आलस्य प्रतीत होता है । ज्वर बढ़ जाने के समय बच्चा सुस्त पड़ा रहता है ।
मलेरिया ज्वर की तीन अवस्थाएँ होती हैं । प्रथम अवस्था में शरीर दर्द, प्यास, जम्हाईयाँ, पित्तज ज्वर के समय शरीर थर-थर काँपना तथा इन लक्षणों के बाद कभी-कभी हाथ-पाँव ठण्डे भी हो जाते हैं। द्वितीय अवस्था में ठण्ड लगती है और थोड़ी देर के बाद धीरे-धीरे शरीर गरम हो जाता है। अति तीव्र ज्वर में रोगी अनाप-शनाप बड़बड़ाता है तथा बिना पानी की मछली की भाँति छटपटाता और तड़पता रहता है। तृतीय अवस्था में ज्वर पसीना देकर छूट जाता है, परन्तु ज्वर पुन: आ जाता है । अधिक दिनों तक ये तीनों अवस्थाएँ बनी रहने से तिल्ली और यकृत दोनों में वृद्धि हो जाती है ।
यह संक्रामक रोग है ।
मलेरिया का एलोपैथिक चिकित्सा
डाराप्रिम कम्पाउण्ड टिकिया (बरोज वेलकम कम्पनी) – यह स्वादहीन पेटेण्ट औषधि है, इसकी प्रथम मात्रा से ही ज्वर उतर जाता है। इसकी एक टिकिया सप्ताह में केवल एक बार ज्वर से बचने के लिए और 1 से 2 टिकिया दिन में 3 बार प्रतिदिन 2 दिन तक ज्वर दूर करने के लिए खिलायें ।
मलेरिया ज्वर की सबसे सफल चिकित्सा कुनीन मानी जाती है, परन्तु काफी रोगियों को थोड़ी मात्रा में कुनीन खिला देने से कान बजने लगते हैं, सिर में दर्द होने लगता है, दिल अधिक धड़कने लगता है और अनिद्रा इत्यादि कष्ट हो जाते हैं। गर्भवती स्त्रियों की कुनीन कम मात्रा में देनी चाहिए। मलेरिया ज्वर में कुनीन, मेपाक्रीन, क्लोरोक्वीन, नीवाक्वीन आदि औषधियाँ तुरन्त लाभ प्रदान करती हैं। ज्वर उतर जाने पर भी कुछ दिनों कुनीन खिलाना जरूरी है । ज्वर के 4-5 दिन तक केवल 300 मि.ग्रा. कुनीन प्रतिदिन खिलते रहें।
क्राइडाक्सीन एफ. एम. (बिडल सावर कम्पनी) – रोग से बचाव के लिए वयस्कों को एक टिकिया। 1 से 4 वर्ष के बच्चों को आधी टिकिया तथा 4 वर्ष से कम आयु के बच्चों को चौथाई टिकिया सप्ताह में 1 बार दें ।
वयस्कों को दो टिकिया, 4 से 8 वर्ष आयु के बच्चों को 1 टिकिया, तथा 4 वर्ष से कम आयु के बच्चों को केवल आधी गोली प्रात:काल सूर्योदय से पहले दें।
सल्फोनामाइड – यह नव आविष्कृत दवा सावधानी के साथ प्रयोग करें ।
कामाक्वीन टिकिया (पी. डी. कम्पनी) – प्रत्येक प्रकार के मलेरिया ज्वर में उपयोगी है । वयस्कों को 3 टिकिया एक ही बार दें, 6 से 15 वर्ष के बच्चों को 2 टिकिया, 3 से 5 वर्ष तक आयु के बच्चों को 1 टिकिया और 1 से 3 वर्ष तक आयु के शिशु को आधी टिकिया खिलायें । वयस्क रोगी को प्रत्येक 2 सप्ताह के बाद 3 टिकियों की 1 मात्रा खिलाते रहने से मलेरिया ज्वर दोबारा नहीं होता है ।
क्लोरोकुईन डाइफास्फेट – बड़ों को 3 या 4 टिकिया एक बार मधु या पानी से प्रात: भोजनोपरान्त दें, कुनीन का प्रयोग सदैव ही भोजनोपरान्त तथा ज्वर चढ़ने से पूर्व ही करें । दोबारा आक्रमण से बचने के लिए इसके बाद फिर दो टिकिया सप्ताह में 1 बार दें । यह दवा मलेरिया और अमीबिक डिसेन्ट्री के कारण होने वाली यकृत-शोथ में भी लाभकारी है।
कुइनारसोल (सिपला कम्पनी) – प्रथम मात्रा दो टिकिया फिर 1 टिकिया प्रतिदिन 3 बार जब तक ज्वर न उतरे, दें। इसके बाद प्रतिदिन प्रात: 1 गोली की मात्रा प्रतिदिन 1 सप्ताह तक दें ।
नीवाक्वीन (एम. बी. कम्पनी) – 4 टिकियों की 1 मात्रा नाश्ते के बाद दें। पूर्णरूप से रोगमुक्त होने के लिए कुल 10 टिकिया खिलाना काफी है।
कुनीन सल्फेट कैप्सूल्स (अपजान कम्पनी) – 1 से 2 कैपसूल दें जब तक ज्वर पूर्णरूपेण दूर न हो जाये ।
क्लोरोक्वीन – पहले 4 टिकिया खिलाकर बाद में दो टिकिया-प्रतिदिन सात दिन वक खिलाते रहैं ।
सिपलाक्वीन – इसकी टिकिया तथा शीघ्र लाभ हेतु मांस में लगाने के लिए इन्जेक्शन भी मार्केट में उपलब्ध है। पत्रक के अनुसार प्रयोग करें। गर्भावस्था, तीव्र आमाशय-आन्त्र अथवा रक्त की विकृति में इसका प्रयोग न करें ।
मेटाकालफिन (वाल्टर वुशनेल) – वयस्कों को दो टिकिया 1 मात्रा के रूप में प्रात:काल सूर्योदय से पहले पर्याप्त जल से दें । आवश्यकता पड़ने पर 1 सप्ताह के बाद दोबारा प्रयोग करायें ।
नोट – सल्फोनामाइड के अति सुग्राही रोगियों में इसका प्रयोग न करें।
मेलोसाइड (टारेण्ट कम्पनी) – पुराने मलेरिया तथा क्लोरोक्वीन से अवरुद्ध मलेरिया में यह गुणकारी है । यही दवा मैलेक्सिन के नाम से (सिन्थिको कम्पनी) भी बनाकर बेचती है। औषधि के साथ प्राप्त पत्रक के निर्देशानुसार प्रयोग करें।
अन्य औषधियाँ – रेसोचिन (बायर कम्पनी की टिकिया), लारिगो टिकिया और इन्जेक्शन (इपका कम्पनी), नीवाक्वीन टिकिया और इन्जेक्शन (मे एण्ड बेकर), बासोक्विन सस्पेंशन (पार्कडेविस), ओनली 2 टैबलेट (कोपरान कम्पनी), लिवरजेन लिक्विड (स्टैण्डर्ड), रेजिज (प्लेथि को कम्पनी), अमालेर टैबलेट (ब्राउन एण्ड बुर्क), कैल्फीप्रिम (वाल्टर वुशनेल), केनोक्विन टिकिया (पी. डी., रिमोडार टैबलेट (ए. एफ. डी.), मेलूब्रिन गोली (रैनवैक्सी), एस्प्रीन (एसीटिल सैलीसिल्कि एसिड से विभिन्न कम्पनियों द्वारा निर्मित टिकिया) तथा सोडियम सैलीसिलेट से निर्मित टिकिया, फिनेसेटीन से निर्मित टिकिया तथा एमिडो पायरीन से निर्मित टिकिया भी लाभकारी रहती है। औषधि के साथ मिले पत्रक पढ़कर तथा आयु एवं रोगानुसार प्रयोग करें ।
मलेरिया के रोगी को यदि उल्टी (कै) आती हो तो उसको थोड़ा गरम पानी पिलाना चाहिए । इससे एक तो रोगी की प्यास मिट जाती है तथा उसकी उल्टियों पर भी विराम लग जाता है। मलेरिया के रोगी को टायफायड, न्यूमोनिया तथा क्षय रोग का भी उपद्रव हो जाता है । मलेरिया के रोगी को गरम दूध पिलाना उत्तम रहता है। यदि रोग पुराना हो तो – दूध और भी अधिक लाभकारी है। (रोगी औषधियाँ चाहे किसी भी पद्धति की दवाएं सेवन कर रहा हो, उसे दूध अवश्य पिलाना चाहिए।) मलेरिया के रोगी को-मूंग की दाल का पानी पिलाना श्रेष्ठ रहता है। बकरी के दूध के झाग से भी मलेरिया ज्वर नष्ट हो जाता है। कटेरी, सोंठ तथा गिलोय का काढ़ा बनाकर 10-12 दिनों तक यदि रोगी को पिलाया जाये तो मलेरिया ज्वर शर्तिया नष्ट हो जाता है।