मैग्नम के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Manganum Aceticum uses in hindi )
(1) रक्तशून्य, पीले चेहरे की क्षय-रोगिणी-जैसी लड़कियां – मुख्य तौर से यह औषधि उन लड़कियों के लिये लाभप्रद है जो रक्तशून्य, पीले चेहरे की दीखती हैं, जिनका शरीर पनपने के बजाय क्षय-रोग की आशंकाओं को सूचित करता है। उनके जीवन का इतिहास पूछा जाय, तो पता चलेगा कि 18-20 वर्ष की आयु तक उन्हें रज-स्राव नहीं हुआ। उनकी छाती सिकुड़ी होती है, पेट में दर्द रहता है, परीक्षा करने से पेट में छोटी-छोटी चने-जैसी गिल्टियां प्रतीत होती हैं। शाम को हल्का ज्वर आ जाता है, खून नहीं बनता, भूख नहीं लगती। ऐसा लगता है कि रोगिणी क्षय-रोग से जल्दी या देर में ग्रस्त हो जायेगी। ऐसी अवस्था में यह औषधि लाभप्रद है।
(2) शरीर का हड्डियों तक दुखना – इस रोगी का सर्व-प्रधान लक्षण यह है कि उसके शरीर का प्रत्येक भाग छूने से दर्द करता है। प्रत्येक अंग बड़ा नाजुक होता है, दर्द करता है, ठीक ऐसे जैसे आर्निका में शरीर की मांस-पेशियां दर्द किया करती हैं। इन दोनों में भेद यह है कि मैग्नम का मांस-पेशियों का ही दर्द नहीं, बहुत गहरा दर्द होता है, ऐसा लगता है मानो हड्डियों के परिवेष्टन तक दर्द पहुंच गया है। घुटने के नीचे की हड्डी के परिवेष्टन में विशेष तौर से दर्द हुआ करता है। शरीर के सब अंगों में धीमा दर्द (Soreness) होता है। चलते हुए हड्डियों में दर्द होता है। आर्निका से तो एक या दो दिन के लिये ही फायदा होता है, यह औषधि बहुत गहराई में जाती है और इसका प्रभाव देर तक होता है।
(3) लेटने से सब तकलीफों में आराम आ जाता है – रोगी का मन भय, घबराहट और परेशानी से बेचैन होता है। उसे घबराहट होती है कि न जाने क्या होगा। व्यापार की या किसी तरह की चिंता या परेशानी हो सकती है, रोगी बेचैन और घबड़ाया हुआ रहता है, मकान में इधर-उधर चक्कर लगाता है, और जितना ही चक्कर लगाता है उतनी ही उसकी परेशानी और बेचैनी बढ़ती जाती है। इस औषधि का विचित्र-लक्षण इस बात में है कि वह इस बेचैनी और परेशानी से निकलता कैसे है। वह हार कर बिस्तर पर लेट जाता है, और क्षण भर में सारी बेचैनी काफूर हो जाती है। यह कैसी विलक्षण बात है। यह इस औषधि का अनहोना व्यापक-लक्षण है। इस लक्षण में औषधि का स्वरूप चित्रित हो जाता है। अभी उसका सारा जीवन उत्तेजना से खिन्न था, लेटते ही चैन पड़ जाता है। रोगी सोचने लगता है मुझे पहले यह क्यों नहीं सूझा। लेटने के बाद अब वह बिल्कुल परेशान नहीं। वह उठता है, और फिर परेशानी उस पर सवार हो जाती है। रस टॉक्स में चलने-फिरने से रोगी की परेशानी दूर होती है, आर्सेनिक इतना परेशान होता है कि कभी इस कुर्सी पर कभी उस पर बैठता है, कभी इस चारपाई पर कभी उस चारपाई पर, आराम से बैठ नहीं सकता क्योंकि जब भी आराम से बैठने की सोचता है तभी परेशानी उसे बेचैन कर देती है, परन्तु मैग्नम में बैठने या लेटने से परेशानी जाती रहती है। जब तक चलता-फिरता है परेशान रहता है, जब आराम से लेट जाता है तब शांत हो जाता है, कितना विचित्र-लक्षण है परन्तु ऐसे विचित्र लक्षणों को ढूंढ निकालने से ही चिकित्सक चमत्कारपूर्ण चिकित्सा कर सकता है।
(4) खांसी लेटने से नहीं आती, चलने-फिरने से आती है – जैसा अभी कहा गया, इस औषधि का विचित्र-लक्षण यह है कि लेट जाने से रोग काफूर हो जाता है, यह बात बेचैनी और परेशानी तक ही सीमित नहीं, खांसी में भी इसका विचित्र-लक्षण यह है कि जब तक रोगी चलता-फिरता रहता है तब तक खांसी भी बनी रहती है, जब लेट जाता है तब खांसी बन्द हो जाती है। प्राय: खांसी लेटने से बढ़ा करती है, परन्तु इस औषधि में लेटने से यह घट जाती है। युफ्रेशिया में भी लेटने से खांसी घट जाती है, परन्तु उसकी खांसी का प्रारम्भ जुकाम से होता है। स्नायु-प्रधान लड़कियों को लेटने से खांसी हुआ करती है, जो हायोसाइमस से ठीक हो जाती है।
(5) रोगी के सब कष्ट कान में केन्द्रित हो जाते हैं – शरीर के ऊपरी हिस्से के सब दर्दों का केन्द्र-स्थान कान हो जाता है। गले में कष्ट हो तो वह कान तक टीस मारता है, दांतों का दर्द हो तो वह भी कान की तरफ़ जाता है, आँखों के दर्द का केन्द्र भी कान ही होता है। कान के शोथ से होने वाले बहरेपन में, युस्टेकियन ट्यूब के शोथ तथा उसमें टीस पड़ने में, निगलते समय कान में शब्द होने में इस औषधि से लाभ होता है।
(6) शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है)