पागलपन का इलाज करने से पूर्व, पागल रोगी की मानसिकता पर सूक्ष्मतापूर्वक विचार करते हुये दवाओं का चयन करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं । प्रायः अलग-अलग तरह के पागलपन पर अलग-अलग तरह की दवा दी जाती है परन्तु कुछ दवा ऐसी हैं जो प्रायः समस्त लक्षणों में काम आती हैं । यहाँ पागलपन की मुख्य औषधियाँ प्रस्तुत हैं ।
पागलपन की प्रचंड अवस्था और पाँचों इन्द्रियाँ अति संवेदनशील हो जायें- बेलाडीना- 6, 12, 30- यह सर्द प्रकृति के रोगियों की दवा है । डॉ० सत्यव्रत लिखते हैं कि जब सिर की तरफ रक्त का दौरा बहुत अधिक हो जाता है तब पागलपन की अवस्था आ जाती है । रोगी हाय-हाय करता है, अपना गला घोंटता है व दूसरों से खुद को मार डालने को कहता है। रोगी काफी वाचाल होता है । उसे काल्पनिक व भयानक दृश्य दिखाई देते हैं जिनसे वह बचने का प्रयास करता है । दाँत किटकिटाता है और उसका चेहरा लाल हो जाता है। इसके रोगी की पाँचों इन्द्रियाँ अत्यन्त संवेदनशील हो जाती हैं जिससे उसे प्रकाश, शब्द, स्वाद, गन्ध व स्पर्श आदि की अनुभूति क़ुबूक की अपेचा अधिकती*जिससेववचनेकप्रयास करता रहता हैं |
भयंकर उन्माद, जोर-जोर से गाना या हरकतें करना, बकवास करना – स्ट्रामोनियम 30, 200- इसका रोगी बेलाडोना से भी तीव्र उन्माद व पागलपन का शिकार होता है । वह जोर-जोर से ऊँची आवाज में चिल्लाता है, गाता है, सीटियाँ बजाता है व बकवास करता है। इसका रोगी अँधेरे से डरता है और अकेला नहीं रह सकता है । यह रोगी अँधेरे से डरता है परन्तु चमकीली वस्तु या अधिक रोशनी आदि को देखकर उसे दौरे पड़ जाते हैं और ऐंठन होने लगती है । बहुत अधिक पढ़ने से होने वाले पागलपन में भी यह दवा उपयुक्त है । डॉ० टैलकेट ने कहा है कि इसका रोगी चंचल मति का और डरपोक होता है । यह धतूरे से बनने वाली दवा है । इस औषधि की शक्ति का निर्धारण रोगी की स्थिति के अनुसार होता है ।
निरर्थक गुनगुनाना, प्रचंडता तीव्र नहीं होती, कमजोरी का बढ़ते जाना – हायोसायमस 30, 200- इस दवा के रोगी का पागलपन इतना तेज नहीं होता जितना ऊपर की दो औषधियों में पाया जाता है । यदि प्रारम्भ में प्रचंडता पाई भी जाती है तो वह धीरे-धीरे कम होने लगती है । रोगी शराबियों की तरह मस्त व आनन्दित होकर नाचता है, चिल्लाता है, बेहूदगी भरी बातें करता है । रोगी काल्पनिक वस्तुओं को देखता है। इसके रोगी में एक और विशेषता यह होती है कि वह किसी पर विश्वास नहीं करता । डॉ० केन्ट लिखते हैं कि इसका रोगी निर्लज्ज होकर अपने कपड़े उतार फेंकता है । इसका प्रमुख कारण यह हैं कि उसके ज्ञान-तन्तु अत्यधिक संवेदनशील हो ते हैं, जिससे उसे अपने बदन पर कपड़े तक बर्दाश्त नहीं होते । इस दवा का प्रयोग अपराधियों से सच बुलवाने में भी किया जाता है । इसका प्रमुख कारण यह है कि इसे एक निश्चित मात्रा में सेवन कराने से व्यक्ति की मानसिक अवस्था ऐसी हो जाती है कि वह प्रश्नों की बौछार को अधिक देर तक नहीं झेल पाता व सच बोलने लगता है इसीलिये इसे ‘सत्यता सीरम’ भी कहते हैं ।
पागलपन की प्रत्येक अवस्था में- रोवोल्फिया सपैन्टिना Q, 30, 200, 2x- यह दवा सर्पगन्धा से बनती है । आयुर्वेद चिकित्सा में सर्पगन्धा को पागलपन की स्पेसिफिक (विशिष्ट) दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा में पागलपन या उन्माद आदि रोगों में इसकी जड़ का रस दिया जाता है । अतः होमियोपैथी में भी इससे बनी दवा दी जाने लगी। अनिद्रा, पागलपन, उन्माद आदि बीमारियों में इस दवा का मूल अर्क पानी में दस-दस बूंद की मात्रा में दें या निम्नशक्ति से प्रयोग प्रारम्भ करते हुये उच्वशक्ति तक लक्षणानुसार दे सकते हैं । यह दिमाग को शान्ति प्रदान करती है, मन में उत्साह जगाती है और अच्छी नींद लाती है । यह अकेली दवा ही पागलपन की प्रत्येक अवस्था की अत्युत्तम दवा है । पागलपन के लक्षणों में यह दवा आज तक असफल नहीं हुई है । मानसिक रोगों में इसे अन्य दवाओं के साथ प्रयोग करने पर अच्छे परिणाम जल्दी मिलते हैं ।
अधिक चबाने से बढ़ती है स्मरण शक्ति
उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्मरण शक्ति कम होने की शिकायतें आम होती हैं, लेकिन अगर उम्र बढ़ने के साथ-साथ लोग कुछ न कुछ चबाते रहने की आदत अपना लें तो इस समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। यह निष्कर्ष जापानी वैज्ञानिक मिनोरू ओनोकुजा तथा उनके सहयोगियों ने एक अध्ययन के बाद निकाला है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ न कुछ चबाते रहने से मस्तिष्क को उत्तेजना मिलती रहती है जिससे स्मृति बरकरार रखने में मदद मिलती है तथा डिमेंशिया सरीखे रोग पास भी नहीं फटकते। हालांकि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि ऐसा क्यों और कैसे होता है तथा वैज्ञानिक यह जानने के लिए प्रयासरत हैं। अपने परीक्षणों के दौरान वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि चबाने की प्रक्रिया से मानसिक तनाव में भी कमी आती है।