(41) Cicuta 200 – सिर, गर्दन रीढ़ का पीछे को मुड़ जाना (धनुष्टकार); हिचकी; कप या खींचन (Convulsions).
(42) Cina 3, 200 – पेट में केंचुए की तरह के कीड़े (सूत की तरह के कीड़ों में ट्युक्रियम); नर्वस बच्चों को 30 या 200 शक्ति की मात्रा दो।
(43) Clematis 30, 200 – सुजाक की पेट की नली में असह्य दर्द; बूंद-बूंद पेशाब होना; अण्डहोष का पत्थर की तरह कड़ा होना।
(44) Cocculus 30 – गाडी आदि की यात्रा की गति से मतली या जी कच्चा-कच्चा होना, नींद की कमी से रोग-चक्कर आदि।
(45) Coffea cruda 200 – शुभ-समाचार से अनिद्रा; दांतो-कमर-प्रसव आदि का दर्द (मुंह में ठंडा पानी रखने से दांत के दर्द में कमी हो जाती तो कॉफिया लाभप्रद है)
(46) Colchicum 30 – किसी भी रोग में रोगी रसोईघर की गंध बर्दाश्त नहीं कर सकता; अफारा-मनुष्य या पशु के पेट में गैस इतनी भर जाती है कि मानो फूट पड़ेगा इसमें 3x उपयोगी है, 200 भी।
(47) Colocynth 6, 30, 200 – पेट-दर्द में सामने की ओर झुकने या पेट दबाने से आराम होना (डायोस्कोरिया में उल्टा है, उस में पीछे की ओर मुड़ने से आराम होता है).
(48) Conium 30, 200 – बुढ़ापे के रोग; टांगों से पक्षाघात शुरू होकर ऊपर को जाना; सिर इधर-उधर घुमाते ही चक्कर आना; आंख बन्द करते ही पसीना आना किसी भी रोग में क्यों न हो; यकायक विधुर या विधवा होने पर सेक्स-संबंधों के छूट जाने पर होने वाले स्नायविक रोग उन्हें जिन्हें सेक्स की आदत हो; नपुंसकता।
(49) Croton tiglium 30 – पानी की तरह पतला दस्त जो गोली के-से वेग के समान एकदम सारा निकल आता है; भोजन के बाद दौड़ कर दस्त के लिये भागना; अण्डकोषों की थैली में बेहद खुजली।
(50) Cuprum met 30 – अकड़न जो हाथ-पैर की अंगुलियों से चलकर सारे शरीर में फैल जाय; अकड़न में अंगुलियां अन्दर की ओर मुड़ती हैं (सिकेल कोर में अंगुलियां बाहर की ओर फैलती हैं); हैजे की प्रतिरोधक है; किसी दबे हुए त्वचा के रोग में जिस के दब जाने से नया रोग उत्पन्न हो गया हो यह त्वचा-रोग को बाहर ले आता है।
(51) Dioscorea 3 – नाभि से दर्द उठकर सारे शरीर में फैल जाता है; पेट-दर्द सामने की ओर झुकने से बढ़ता है, पीछे की ओर होने से घटता है (कौलोसिन्थ से उल्टा); किसी भी दर्द में यह लक्षण हो तो यह दवा दो।
(52) Drosera 12, 30, 200 – हूप खांसी की दवा है, मात्रा दोहरानी नहीं चाहिये; व्याख्याताओं का स्वर-भंग; दमा; टी. बी.।
(53) Dulcamara 30 – तर हवा से, भीजने से दर्द, जुकाम, दमा, दस्त, लकवा आदि कोई भी रोग होने पर दें।
(54) Eupatorium perf Q, 3, 30 – मलेरिया, फ्लु, डेंगू आदि ज्वर में हड्डयों में दर्द मानो वे चूर-चूर हो गई हों।
(55) Euphrasia Q, 6, 30 – आंख के रोग में दो-चार बूंद टिंचर 1 औंस डिस्टिल्ड वाटर (आंख धोने के लिये); जुकाम में आँख से जलनेवाले आंसू पर, नाक से न जलनेवाला पानी (एलियम सीपा से उल्टा); मूल अर्क का बाहरी प्रयोग (कंजक्टिवाइटिस आदि आखों के रोग में 1 भाग टिंचर 8 भाग डिस्टिल्ड वाटर)।
(56) Fagopyrum 12x – आंखों में भयंकर खुजली; पढ़ने से सिर दर्द; हाई ब्लड प्रेशर 12x दो।
(57) Ferrum phos12 – रुधिर में रक्त-कण कम हों तो 3x देना चाहिये, रोगी कमजोर पर चेहरे पर झूठी लालिमा; ज्वर की प्रथम अवस्था जिस में एकोनाइट की-सी तेजी न हो।
(58) Fluoric acid 6, 30 – भगन्दर; आंखों का या दांतों का नासूर; बाल झड़ना; वेरीकोज वेन्ज।
(59) Gelsemium 3, 30, 200 – सिर की गुद्दी में दर्द, ज्वर में निंदासा पड़े रहना; निद्रालुता; चक्कर; कंपन: लकवा; थकावट या नर्वस होने से नींद न आना; भय या बुरे समाचार से दस्त लगना 3 शक्ति का अधिक प्रयोग होता है। जिन रोगों के साथ दिमागी रोग मिले रहें उनमें उपयोगी है। 10-11 बजे रोग बढ़कर शाम तक ढलना।
(60) Glonoine 30 – लू लगना; सिर-दर्द का सूर्योदय के साथ बढ़ना, सूर्यास्त के साथ घटता है। (नैट्रम म्यूर में भी ऐसा है); हाई ब्लड प्रेशर (ऑरम, फैगोपाइरम और ऑरम म्युरियेटिकम नैट्रोनेटम में भी यह है).