(61) Graphites 30, 200, 1M, 10M – एग्जीमा में शहद के समान चिपचिपा निकलना; (पेट्रोलियम में पनीला स्राव); कान के पीछे गीली फुन्सियां, मुंह पर लाल-लाल धब्बे (Red bloches).
(62) Hamamelis 6 – नाक, फफडे, पेट, मूत्राशय, जरायु, मल-द्वार आदि से जमा हुआ और काला (Veinous) खून निकलना; बवासीर में नीले मस्से।
(63) Hepar sulph 6, 200, 1M – फोड़े में पीप हो तो निम्न-शक्ति उसे पका कर फोड़ देती है, पीप पड़ने से पहले उच्च-शक्ति दी जाय तो पीप को सुखा देती है; अगर बच्चे से खट्टी बू आती हो तो कान बहने में दो; गर्म मौसम में भी ठंड अनुभव होना मानो जिस्म पर ठंडी हवा लग रही है, कपड़े से लिपटे हुए भी ठंड अनुभव होना।
(64) Hydrastis Q, 30 – गला, पेट, जरायु, मूत्र-नली-कहीं से भी गाढ़ा, पीला, लेसदार, सूत की तरह स्राव; गले में रेशा गिरना; पेट का अल्सर या कैंसर; श्वेत-प्रदर; सुज़ाक (उक्त सब रोगों में गाढ़ा लेसदार स्राव इसका विशेष लक्षण है)। कैलि बाईक्रोम में भी – जिस में सूतदारपना बहुत अधिक होता है-ये लक्षण हैं।
(65) Hyoscyamus 30, 200 – सन्देहशीलता, पागलपन, प्रसूता का उन्माद; टेटुए के बढ़ने से लेटने से खांसी बढ़ना तथा उठ बैठने से दब जाना।
(66) Hypericum Q, 3, 1M – स्नायुओं की चोट जिस में अंगुली, नख आदि में कांटा, आलपिन आदि गड़ जाय।
(67) Ignatia 30, 200, 1M – चित्त-वृत्ति की दवा (हिस्टीरिया); शोक, भय, क्रोध से उत्पन्न रोग; अनिद्रा; कांच निकलना; गले में गोला उठना; परस्पर-विरोधी लक्षण-वृत्ति जैसे दर्द वाली करवट लेटने से दर्द घटना; भोजन करने पर पेट खाली लगना; खांसने पर खांसी बढ़ना; घूमने पर बवासीर का कष्ट घटना; ज्वर में शीतावस्था में प्यास; गाने-बजाने से कर्णनाद घट जाना आदि। 200 शक्ति लाभप्रद है।
(68) Iodum 1M – राक्षसी-भूख के साथ शरीर दुबला होते जाना; प्रदर इतना तेज कि जहां स्राव लगे वहां जख़्म हो जाय; ठंड से बार-बार जुकाम होने की शिकायत।
(69) Ipecac 3, 30, 200 – लगातार मिचली और कय; टाइफ़ॉयड के बाद थोड़ा-थोड़ा बुख़ार बने रहना; दमा जो हर साल एक ही समय उभरे; जरायु से रुधिर रिसते रहने के साथ समय-समय पर उसमें से खून की ‘फुहार’ (Gush) छूटे और मिचली हो।
(70) Kali bichromicum 30, 200, 1M – लेसदार, सूत की तरह लटकने और चिपटने वाला श्लेष्मा।
(71) Kali carb 200 – आंख के ऊपर की पलक सूज जाना (एपिस से उल्टा); प्रसव के समय अत्यन्त तेज दर्द, सूई बेधने या कतरने की तरह का दर्द। गठिये, टी० बी० या बाइटस डिजीज में देते हुए सावधानी बरतनी चाहिये। कई बार नहीं देना चाहिये। कोई भी शिकायत सवेरे 3 बजे बढ़ जाती है। कूल्हे से घुटने तक जाने वाला शियाटिका का दर्द या किसी भी रोग में ऐसा दर्द।
(72) Kali hydriodide 30, 200 – न्यूमोनिया के बाद बच रहनेवाली, तंग करने वाली सूखी या तर खांसी।
(73) Kali mur 12 – श्वेत प्रदर; जुकाम; मध्य-कर्ण की शोथ; कान में कड़क का-सा शब्द होना; कर्णनाद; कर्णनाद में थियोसिनेमाइन 2x.
(74) Kali phos 30, 200, 1M – स्नायु-रोग; कमजोरी; चक्कर आना।
(75) Kali sulph 12 – फोड़े, जुकाम, कान का पकना, प्रदर आदि में स्राव का पीलापन इसका मुख्य लक्षण है।
(76) Kalmia latifolia 6 – वात-रोग (रुमेटिज्म); वात-रोग का ऊपर से नीचे को – जाना (लीडम से उल्टा)
(77) Kreosote 30, 200 – बच्चों के काले, भुरभुरे दांत; दांतों में कीड़े लगना; मसूड़ों से खून आना।
(78) Lachesis 8, 30, 200, 1M – स्त्रियों के मासिक बन्द होने के समय के रोग; वाचालता; गले पर स्पर्श जैसे बटन लगाने, टाई बांधने आदि से सांस रुकने लगना; कमर में भी कुछ बांध न सकना; नींद से जागने पर सब तकलीफ़ों का बढ़ जाना; बाईं तरफ से तकलीफ का दाईं तरफ जाना, जैसे टांसिल आदि बाईं तरफ़ से शुरू हो दाईं को जाय (लाइको से उल्टा); कड़ी वस्तु निगल सकना परन्तु तरल के निगलने में कष्ट होना; मुर्दे जैसा नीला पड़ जाना।
(79) Ledum pal 30, 200 – गठिये में ठंड से आराम (यह विलक्षण-लक्षण है); वात-रोग का पैर से शुरू होकर ऊपर को जाना (कैलमिया से उल्टा); पैर फर्श पर रख कर न चल सकना।
(80) Lycopodium 30, 200, 1M – पेट फूलना, पेट की गड़गड़ाहट, नाभि से नीचे वायु; रोग का दायें से बायें को जाना (लैकेसिस से उल्टा); टांसिल का दायीं तरफ होना या पहले दायीं तरफ होकर बायीं को जाना; दाहिनी ओर का हर्निया; नपुंसकता; बुखार आदि किसी रोग का 4 से 8 सायंकाल बढ़ना; बच्चा दिनभर रोता रातभर सोता है (जैलेपा और सोरिनम से उल्टा); पसीना बिल्कुल न आना।