(121) Sulphur 30, 200, 1M, 10M – जलन; हाथ-पैरों की जलन; मुख तथा सिर की तरफ़ रजोरोध की-सी झलें; प्रात:काल का डायरिया; 11 बजे दोपहर असह्य भूख, जी डूबता-सा होना; कुत्ते की नींद सोना; सवेरे 3 बजे के बाद न सो सकना; खुजली; चुनी हुई दवा से लाभ न होना; देर तक एक जगह खड़े न रह सकना; त्वचा के किसी दबे हुए रोग को जिस से दमा आदि कोई रोग हो गया हो फिर से त्वचा पर बाहर लाना।
(122) Symphytum 200 – हड्डी पर चोट; हड्डी टूटने को जोड़ देती है; आंख पर चोट।
(123) Syphilinum 1M – रात को रोग बढ़ना (मैडोरिनम से उल्टा); अत्यधिक प्रदर-स्राव।
(124) Tellurium 6, 30 – कान से बदबूदार और जख्म करने वाला पीप बहना; दाद।
(125) Terebinthina 6 – किडनी (मूत्र-ग्रन्थि) की बीमारी; पेशाब में खून आना; पेशाब रुकना।
(126) Teucrium marum 6 – पुराना जुकाम जो कभी बहे, कभी न बहे; पेट में सूत के-से कीड़े; चिलूड़ें।
(127) Thiosinaminum 2x – कान में आवाजें (चेनोपोडियम); आंख में जाला; डॉ हार्ड के अनुसार बुढ़ापे को रोकता है।
(128) Thlaspi Q, 6 – जरायु संबंधी दबे हुए रोग में फायदेमंद।
(129) Thuja Q, 30, 200, 1M – मुख, आंख, हाथ, गुदा, जननांग आदि पर फूल-गोभी की तरह के मस्से (बाहर मूल अर्क लगाओ, खाने को 200 शक्ति दो); माथे के अलावा सारे शरीर पर पसीना आना (साइलीशिया से उल्टा); दांतों की जड़ का क्षय या दांत-दर्द, नाखून टूटना या टेढ़े-मेढ़े होना: सवेरे के दस्त; सुजाक; ट्यूमर।
(130) Trillium 30 – जरायु में पिंड (Uterine fibroids) के कारण रक्त-स्राव।
(131) Thyroidinum 6, 30 – लो ब्लड प्रेशर में उपयोगी (कैम्फोरा भी लाभप्रद है)
(132) Urtica urens 3x – माता के दूध कम होना; गठिये में टिंचर दो।
(133) Ustilago 3 – हस्त-मथुन की बीमारी में लाभप्रद है।
(134) Vaccinium or Variolin or Malandrinum, 200 – टीके के दुष्परिणाम, स्नायु-शूल; फुन्सियां जो ठीक होने में न आयें; अजीर्ण, पेट फूलना आदि।
(135) Veratrum album 30 – हैजे में शरीर का ठंडा पड़ जाना; माथे पर ठंडा पसीना आना; वमन; ऐंठन।
(136) Viburnum opulus 6 – स्त्रियों की औषधि; गर्भपात की रोकती है; मासिक देर में, थोड़ा और कुछ ही घंटे रहता है।
(137) Viscum album Q, 3, 6 – शियाटिका में फायदेमंद।
(138) X-ray 12, 30 – डिम्बाशय अण्डकोष आदि ग्रन्थियों का कैंसर।
(139) zincum metallicum 6, 30 – दिमागी थकावट।
नोट – हमने इस प्रकरण में मुख्य-मुख्य होम्योपैथिक औषधियों के मुख्य-मुख्य लक्षण दिये हैं जिनको पढ़ने के बाद विद्यार्थी के मस्तिष्क में प्रत्येक औषधि की एक रूप-रेखा बन जायेगी। इस रूप-रेखा को आधार बना कर विद्यार्थी प्रत्येक औषधि के विषय में विस्तृत जानकारी लेने का प्रयत्न करेगा तो उसके मन में औषधि का चित्र बनने लगेगा, और धीरे-धीरे वह प्रत्येक औषधि की अन्तरात्मा तक पहुंच सकेगा। जो-कुछ हमने इस प्रकरण में दिया है वह औषधि की झलक मात्र लेने के लिये दिया है।