प्रोस्टेट ग्लैंड मूत्राशय की गर्दन के पास होती है । उसके बढ़ जाने से कई रोग हो जाया करते हैं । बुढ़ापे और बड़ी आयु में इसके बढ़ जाने से रोगी को बार-बार परन्तु रुक-रुक कर मूत्र आता है। रात को मूत्र आने का कष्ट बढ़ जाता है, और जोर लगाने पर भी मूत्र नहीं आता है। यह ग्लैण्ड बढ़ जाने से मूत्राशय से मूत्र दूषित होकर अमोनिया की भाँति हो जाता है । मूत्राशय पर (पुरानी) शोथ आ जाती है तब मूत्र में लेसदार बलगम या पीप उत्पन्न हो जाती है ( जो शीशी में मूत्र के नीचे बैठ जाती है) लिटमस पेपर से मूत्र की परीक्षा करते रहना चाहिए । प्रोस्टेट ग्लैंड लगभग 50 वर्ष की आयु के बाद बिना किसी कारण के ही बड़ा होने लग जाता है । घुड़सवारी, मोटर साइकिल आदि की सवारी करने वालों को भी प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ जाती है । क्योंकि इन सवारियों से तथा भारी वाहनों (ट्रक, बस) आदि चलाने वालों के मूत्राधार क्षेत्र (जो गुदा और अण्डकोष के बीच स्थित होते हैं) में झटके लगते रहने से प्रोस्टेट ग्लैंड सूज जाते हैं । युवकों तथा कामी पुरुषों के मन में कामोत्तेजना उत्पन्न हो जाने के बाद भी स्त्री समागम (संभोग) का अवसर न मिलने के कारण प्रोस्टेट ग्लैंड वायु विकृति से सूज जाता है । प्रोस्टेट ग्लैंड के बढ़ने से मूत्र मार्ग और मूत्राशय की ग्रीवा दबकर संकीर्ण होती चली जाती है जिससे मूत्र आना बन्द हो जाता है ।
लक्षण – मूत्राशय के अन्दर एक टापू के रूप में उभार प्रतीत होता है । मूत्राशय कभी मूत्र से खाली नहीं होता है। रोगी को हर समय अपना मूत्राशय भरा-भरा सा भारी लगता है जिसके कारण मूत्र त्याग की इच्छा हर समय बनी रहती है । रोगी मूत्र त्याग हेतु जाता है तो मूत्र बहुत बूंद-बूंद करके निकलता है । रात्रि में मूत्र त्याग के लिए बार-बार उठना पड़ता है। अधिक प्रोस्टेट ग्लैंड वृद्धि से मूत्र एकदम रुक जाता है जो कैथेटर डालकर निकलना पड़ता है ।
प्रोस्टेट ग्लैंड वृद्धि से मूत्र रुकने की कुछ अंग्रेजी दवा
रोगी को एक गरम टब में हल्का गरम जल भरकर 10-15 मिनट तक इस प्रकार बैठना चाहिए कि लिंग-मुण्ड से थोड़ा ऊपर तक का भाग जल में डूबा रहे । इससे बस्ति प्रदेश की ओर रक्त संचार होने से समस्त सूजन कम हो जायेगी।
शल्य क्रिया द्वारा बढ़े हुए भाग को काटकर निकाल देने से कष्ट कम हो जाता है । फिर घाव ठीक हो जाने पर मूत्र खुलकर आने लग जाता है । इससे रोगी को तुरन्त आराम व शान्ति मिलती है ।
स्पीमन फोर्ट टैबलेट (निर्माता हिमालय ड्रग) – 1 से 2 टिकिया दिन में 3-4 बार खिलाना लाभकारी है ।
स्पास्मो प्रोक्सीवोन कैप्सूल (वाकहर्डट) – दर्द की अवस्था में 1 कैपसूल हल्के नाश्ते के बाद खिलायें तथा सेप्ट्रान (बरोज बेलकम) टिकिया 1 से 2 तक साथ में दिन में 1-2 बार खिलायें।