इस रोग के मुख्य कारण हैं – मानसिक अवसन्नता तथा दु:ख । इसके साथ ही यकृत-दोष, डिम्बकोष की बीमारी अथवा पेशाब में आक्जेलिक एसिड या कैल्शियम-अक्जालेट के उपसर्ग भी पाये जाते हैं ।
यह रोग मुख्यत: तीन प्रकार का माना गया है :-
(1) सामान्य रोग (Simple) – इसमें मानसिक दु:ख के अतिरिक्त अन्य कोई उपसर्ग दिखाई नहीं देता । यह रोग सहज-साध्य अर्थात् आसानी से दूर हो जाने वाला होता है ।
(2) नया रोग (Acute) – इसमें अवास्तविक-परिकल्पना, भ्रान्त-विश्वास, मति-भ्रम, आत्म-हत्या करने की तीव्र आकांक्षा, भय, बेचैनी, उत्कण्ठा एवं अनिद्रा रोग आदि उपसर्ग प्रकट होते हैं । इस रोग के साथ ही कब्ज, भूख न लगना तथा आँखों का तारा सिकुड़ जाना – ये लक्षण भी रहते हैं । इस रोग का भावी परिणाम शुभ होता है अर्थात् इसे उपचार द्वारा जल्दी ठीक किया जा सकता है ।
(3) पुराना रोग (Chronic) – यह नये रोग की पुरानी अवस्था है । इसमें स्वयं को हेय समझना, आत्महत्या की अत्यधिक प्रबल इच्छा, कोई कष्ट अनुभव न होना, पक्का और जमा हुआ भ्रान्त विश्वास एवं हर समय की मानसिक-अवसन्नता – ये उपसर्ग प्रकट होते हैं तथा कब्ज, अग्निमांध आदि लक्षण भी विद्यमान रहते हैं । इसका भावी परिणाम अशुभ होता है अर्थात् इसे उपचार द्वारा कठिनाई से ही ठीक किया जा सकता है । कभी-कभी इस रोग के कारण रोगी की मृत्यु भी हो जाती है ।
इस रोग के साथ जब गहरी मानसिक-अवसन्नता एवं सभी विषयों में उदासीनता के लक्षण दिखाई दें, रोगी अपने स्थान से हिलना न चाहे, शरीर की गर्मी कम हो जाय तथा उसमें आत्महत्या की प्रबल इच्छा हो तो रोग की भयंकर एवं आशंका-जननक समझना चाहिए ।
बिषाद-वायु रोग की मुख्य औषधियाँ
निम्नलिखित औषधियों को विषाद वायु-रोग में मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है :-
इग्नेशिया 3, 30 – यह नये बिषाद-रोग की सबसे अच्छी औषध है । भय, दुःख अथवा निराशा के कारण उत्पन्न हुआ रोग, जिसमे रोगी रोने में असमर्थ हो, परन्तु दुख के कारण उसका कलेजा फटा जा रहा हो तथा रजोनिवृत्ति के समय स्त्रियों को होने वाला विषाद-वायु रोग, जिसमें एकान्त की आकांक्षा, सहसा ही क्रुद्ध हो जाना, गहरी सुस्ती तथा मानसिक कष्ट को दूर करने के लिए आत्महत्या की इच्छा-ये सब लक्षण दिखाई दें तो यह औषध अच्छा लाभ करती है ।
प्लैटिना 6 – यह औषध स्त्रियों के विषाद-वायु रोग में श्रेष्ठ लाभ करती है। प्रसव के बाद का विमर्ष-भाव, आत्महत्या की इच्छा, सभी वस्तुओं अथवा मनुष्यों के छोटा होने की अनुभूति, कामोन्माद, उददण्डता तथा आत्म-गरिमा का प्राबल्य – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
आर्सेनिक 3x, 30 – इस औषध का रोगी पतले-दुबले शरीर का होता है । घबराहट, बेचैनी, भूख न लगना, बीमारी से कभी भी अच्छा न होने का भय, लोक निन्दा का भय, अपने ही हाथों तथा नखों द्वारा पलकों, खोपड़ी तथा चेहरे को नोंचकर उन पर घाव बना लेना, अपने ही हाथों की अँगुलियों को स्वयं चबा लेना तथा शरीर का लाल एवं कांपना – इन लक्षणों में यह हितकर है।
आरम 6, 200 – आत्महत्या करने की प्रबल इच्छा, मुँह से लार बहना, रात के समय रोग के लक्षणों में वृद्धि एवं पुरुषों में इस रोग के साथ यकृत दोष एवं अण्डकोष की बीमारी के लक्षण रहने पर विशेष लाभकर है ।