मेजेरियम के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Mezereum uses in hindi )
(1) त्वचा पर ऐसी फुन्सियां जो सूख कर पपड़ी बन जाती है और जिनके नीचे पस जमा हो जाती है – त्वचा के किसी भाग पर फुन्सियां हो जाती हैं, जो फैलकर एक पपड़ी सी बन जाती हैं, इनके नीचे पस जमा हो जाती है। इस पपड़ी के नीचे सफेद शहद जैसा पस इकट्ठा हो जाता है।
(2) सिर पर पपड़ी जमना जिसके नीचे पस हो, इसमें यह स्पेसिफिक है; त्वचा के रोग के दब जाने से उत्पन्न रोग – कई बच्चों के सिर पर मोटी चमड़े-सरीखी पपड़ी जम जाती है जिसके नीचे सफेद, शहद-सरीखा मवाद जमा हो जाता है। इस पपड़ी में बच्चे के बाल चिपक जाते हैं और बच्चा बहुत गन्दा प्रतीत होता है। इन फुंसियों पर की पपड़ी चॉक जैसी सफेद होती है जिसके नीचे कीटाणु जमा होते हैं। कभी-कभी यह पपड़ी सारे सिर को भर लेती है और सिर पर टोपी-सी लगती है जिसके नीचे पस भरी होती है, उस पर सिर के बाल चिपके होते हैं। इसे अंग्रेजी में केरिओन (Kerion) कहते हैं। सिर की पपड़ी के नीचे मवाद का लक्षण ग्रैफाटिस में भी होता है। डॉ० टायलर का कथन है कि इस रोग में मेजेरियम स्पेसिफिक का काम करता है। यद्यपि होम्योपैथी में स्पेसिफिक नाम की कोई चीज नहीं, तो भी कई ऐसे रोग हैं जिनमें सब रोगियों में लक्षण एक-से होते हैं। हनीमैन का कथन था कि कीटाणुओं के रोगों में जिनमें रोग का कारण सबमें एक-समान हो, लक्षण एक ही हों, रोग की प्रगति भी एक समान हो, उनमें होम्योपैथी के स्पेसिफिक को ढूंढना चाहिये। उक्त रोग में मेजेरियम स्पेसिफिक ही समझना चाहिये।
इस प्रकरण में डॉ० डनहम के अनुभव का उल्लेख करना असंगत न होगा जिससे स्पष्ट होता है कि त्वचा का रोग दब कर अनेक प्रकार के नये रोगों को उत्पन्न कर देता है और इस प्रकार के रोगों में मेजेरियम लाभप्रद है। एक रोगी 4 वर्ष की अवस्था से बहरा था। बड़े होने पर, उसके बहरेपन के कारण, कोई उसे नौकरी नहीं देता था। वह अपने बहरेपन से इतना दु:खी था कि घरवालों से भी जुदा-जुदा रहता था, किसी से मिलता-जुलता नहीं था। डॉ० डनहम के पास वह इलाज के लिये गया। उसके ऐसे कोई लक्षण नहीं थे जिनके आधार पर दवा को चुना जा सकता था। हनीमैन का कथन है कि जब रोगी के लक्षण स्पष्ट न मालूम पड़े तब उसके इतिहास को जानने का प्रयत्न करना चाहिये। इस इतिहास में रोग का कारण छिपा हो सकता है जिसके आधार पर दवा का निर्वाचन किया जा सके। जब इस रोगी का इतिहास पूछा गया तब पता चला कि बचपन में उसके सिर में फुंसियां होती थीं, पपड़ी जम जाती थी, उसके नीचे मवाद भरा रहता था, एलोपैथिक इलाज से उसके सिर पर तारकोल की टोपी चढ़ाई गई। जब तारकोल ने खोपड़ी के बालों को जकड़ लिया तब जोर से उसे उतारा गया। इससे सिर की सारी पपड़ी निकल आयी। उसके बाद सिर पर सिलवर नाइट्रेट लगा दिया गया। इसी से सिर का मवाद तो चला गया, परन्तु बालक तब से निपट बहरा हो गया। सिर की मवाद-भरी पपड़ी के इस इतिहास के आधार पर डॉ० डनहम ने उसे मेजेरियम 30 की एक मात्रा दी। इस एक मात्रा का प्रभाव यह हुआ कि 21 दिन बाद उसे थोड़ा-थोड़ा सुनाई पड़ने लगा। फिर 6 दिन बाद इस औषधि की 30 शक्ति की दूसरी मात्रा दी गई, फिर कई महीने के बाद तीसरी मात्रा। अन्त में रोगी बिल्कुल ठीक हो गया। इससे स्पष्ट है कि कितने ही साल क्यों न बीत जायें, रोग की शुरूआत में रोगी को जो दवा दी जानी चाहिये थी, उसके देने से, सालों बाद भी ठीक हो जाता है। इस रोगी को 4 वर्ष की अवस्था में जब सिर पर पपड़ी जमने, उसमें मवाद पड़ने की शिकायत हुई थी तब मेजेरियम दिया जाना चाहिये था, वह नहीं दिया गया, तेज दवाओं से उसका रोग दबा दिया गया, परन्तु सालों बाद मेजेरियम से ही उसका नया रोग दूर हो गया। अस्ल में, दब जाने पर रोग जो नया रूप धारण करता है, वह रंग रूप में भिन्न होने पर भी पुराने रोग का ही नया रूप होता है, इसलिये इस नये रूप में भी उसे वही दवा ठीक करती है जो शुरू-शुरू के रोग को दूर करती। फोड़े-फुंसी त्वचा के रोग दबने पर अनेक रोग खड़े हो जाते हैं, दिमाग तक पर उनका असर हो जाता है, उनमें यह दवा लाभप्रद है।
(3) एक्जिमा की दवा – ऐसा एक्जिमा जो जमी हुई पपड़ी-सरीखा हो, जिसके नीचे मवाद जमा हो जाय, वह कहीं भी हो, उंसमें मेजेरियम लाभ करता है।
(4) त्वचा में स्नायविक खुजली (Nervous feelings of itching) – कभी-कभी किसी प्रकार की फुंसी आदि के न होने पर भी रोगी को त्वचा में जबर्दस्त खुजली होने लगती है। रोगी बिस्तर में गया नहीं, या गर्म कमरे में पहुंचा नहीं कि उसे खुजली शुरू हो जाती है। वह एक जगह खुजलाता है, खुजली दूसरी जगह होने लगती है। जितना खुजलाता है उतना खुजली बढ़ती जाती है। खुजलाते-खुजलाते त्वचा लाल और, नर्म पड़ जाती है। यह स्नायविक खुजली होती है। जहां खुजलाता है वहां लाल चकते पड़ जाते हैं। इस औषधि का त्वचा पर विशेष प्रभाव है। इसीलिये यह खुजली तथा ऊपर जिन फुसियों का वर्णन किया गया है उनमें यह औषधि उपयोगी है।
(5) घुटने के नीचे की हड्डी टीबिया में दर्द – इस औषधि का जैसे त्वचा पर प्रभाव है वैसे हड्डियों के दर्द पर भी प्रभाव है, घुटने के नीचे की हड्डी ‘टीबिया’ के दर्द पर इसका विशेष प्रभाव है।
(6) दांतों का एकदम क्षय – इसके दांत निकलते ही सड़ने लगते हैं। पहले दांतों का इनेमल खुरदरा हो जाता है, फिर उतर जाता है। दांतों की जड़ सड़ने लगती है। दांतों के रोग में स्टैफिसैग्रिया, क्रियोजोट तथा थूजा पर भी ध्यान देना चाहिये।
(7) शक्ति – 6, 30, 200