मौस्कस के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Moschus uses in hindi )
(1) हिस्टीरिया की अमोघ-औषधि – जो लड़कियां माँ-बाप की बहुत लाडली होती हैं, जिनकी हर इच्छा को पूरा किया जाता है, जिन्हें आज्ञापालन जैसी किसी सीख का ज्ञान ही नहीं होता, उन्हें अपनी इच्छा को मनवाने की ऐसी आदत होती है कि स्वार्थपन और हठ-धर्मिता उनके चरित्र का अंग बन जाती है। जब वे बचपन से 18 वर्ष की आयु तक देखती आ रही होती हैं कि उनकी हर इच्छा को पूरा किया जाता रहा है, तब वे मौस्कस, ऐसाफेटिडा, इग्नेशिया, तथा वेलेरियन के रोगों की सहज शिकार होने लगती है। उनमें अनेक असली तथा काल्पनिक मानसिक-लक्षण प्रकट होने लगते हैं। वे अपनी इच्छाओं को पूरा कराने के लिए ऐसे-ऐसे मानसिक-लक्षण दिखलाने लगती हैं कि अपनी इच्छाओं को पूरा करा कर ही हटती हैं। कितना ही वे कहें कि उनके लक्षण असली हैं, परन्तु उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। वे अपनी बनावटी लक्षणों को दिखाकर इतनी देर तक अपनी इच्छाओं को पूरा कराती रही हैं कि यह समझना कठिन हो जाता है कि वे जो कुछ कह रही हैं उसमें कितना सच है और कितना बनावटी है। चिकित्सक के लिये ये लड़कियां एक समस्या बन जाती हैं क्योंकि उसे औषधि का निश्चय करते हुए यह निर्णय करना होता है कि कहां तक रोगिणी की शिकायतें बनावटी न होकर यथार्थ हैं।
हिस्टीरिया की यथार्थ शिकायतें हैं : पेट से गोल गेंद का-सा उठना, त्वचा का स्पर्श न सह सकना, मांस-पेशियों की कंपन; अनिद्रा; हृदय की धड़कन; मन की उत्तेजित अवस्था; बेहोशी; मूर्छा; संपूर्ण शरीर का कांपना; सारे शरीर में भयकर पीड़ा; सिर की तरफ खून का दौर; हाथ-पैर में अकड़न; सारे शरीर की अकड़न आदि। रोगिणी कभी हंसती है, कभी रोती है। हिस्टीरिया के लक्षणों में यह औषधि लाभप्रद है।
(2) हिस्टीरिया के शारीरिक-लक्षणों का आधार मानसिक-विकृति है – ऊपर हिस्टीरिया के जिन शारीरिक-लक्षणों का वर्णन किया गया है, उनका आधार कोई मानसिक-विकास होता है। हिस्टीरिया में रोगी शरीर से जो भिन्न-भिन्न संवेदन (Sensations) अनुभव करता है, और शरीर जिस प्रकार की असाधारण क्रियायें (Abnormal functions) करता है, उनके आधार में कोई-न-कोई मानसिक-कारण होता है। उदाहरणार्थ, हिस्टीरिया रोगी की अगर एक गाल लाल और ठंडी है, दूसरी पीली और गर्म है, तो समझ लेना चाहिये कि उसके मन का कोई विकार इस शारीरिक-विकृति का कारण है क्योंकि लाल गाल को ठंडा न होकर गर्म और पीली गाल को गर्म न होकर ठंडा होना चाहिये था। शारीरिक-विकृतियों को देखकर यह कल्पना कर लेना उचित ही है कि रोगी के मन में कोई विकार है। मानसिक-विकार के ठीक होने से शारीरिक विकार अपने-आप जाता रहता है।
(3) हिस्टीरिया की मूर्छा अर्थात् बेहोशी के आते समय ठंड, थरथराहट और कंपन अनुभव करना – इस औषधि का निर्देशक-लक्षण रोगी का बार-बार बेहोश, मूर्छित हो जाना है। बेहोशी के लिये यह मुख्य दवा है। अगर रोगी बेहोशी के आक्रमण या मिर्गी के दौरे पड़ने के शुरू में ठंड महसूस करने लगता है, थरथराने और कांपने लगता है, तो समझ लेना चाहिये कि इस औषधि से लाभ होगा। दौरे पड़ने से पहले और दौरे के दौरान में इस प्रकार की ठंड और कंपन बना रहता है। गला रुंध जाता है, छाती में ऐंठन पड़ जाती है। रोगी के गले को रुंधते देखकर आस-पास के लोग समझने लगते हैं कि वह मर जायेगा, बचेगा नहीं। रोगी भी ‘मरा-मरा’ चिल्लाता है।
बेहोशी में मुख्य-मुख्य उपयोगी औषधियां
एकोनाइट – अगर कोई डर से बेहोश हो जाय।
ओपियम – यह भी डर से बेहोश होने पर दी जाती है।
पल्सेटिला – जब बन्द कमरे में हवा न होने से बेहोशी हो।
सल्फ़र – 11 बजे दोपहर खाना न मिलने से बेहोशी, खाना मिलने से ठीक।
फॉस्फोरस – 11 बजे दोपहर खाना न मिलने से बेहोश, खाना मिलने पर ठीक (सल्फर की तरह)।
मैग्नेशिया म्यूर – भोजन के लिये बैठने पर मुँह में झाग आते रहने के साथ बेहोशी (सल्फ़र और फॉस्फोरस का उल्टा)।
एलूमिना – अगर देर तक खड़े रहना पड़े, बैठे रहने पर ठीक।
कोनायम, पोडो, सल्फ़र – टट्टी जाने के बाद बेहोशी।
म्यूरेक्स, लाइको, थूजा – महीना भर ठीक, परन्तु महावारी आने से पहले बेहोशी।
एसाफेटिडा – वीर्यपात के बाद बेहोशी।
एगैरिकस – मैथुन के बाद बेहोशी।
सीपिया – ज्वर में शीतावस्था के बाद या परिश्रम के बाद बेहोशी।
(4) ऊंचाई से गिरने और सिर में कील गड़ जाने का-सा अनुभव – रोगी को ऐसा अनुभव होता है कि वह किसी ऊंची जगह से नीचे गिर रहा है, यह अनुभव होता है कि सिर की गुद्दी में कील गड़ा जा रहा है।
(5) शक्ति – 1, 3, 6 या उच्च-शक्ति