[ भूमध्य सागर में पाये जाने वाले एक तरह के जीवित शम्बूक ( घोंघा ) की गर्दन के रंगीन अंश से यह दवा तैयार होती है ] – साधारणतः स्त्रियों की बीमारी के लिए ही इसका व्यवहार होता है। ‘म्यूरेक्स‘ के प्रधान चरित्र गत लक्षण तीन है – (1) ऐसा मालूम होना कि जरायु बाहर निकल पड़ी है; (2) जरायु के दाहिनी ओर नया दर्द, जो सारे शरीर में घूमता-फिरता है और छाती के बाईं तरफ चला जाता है ; (3) प्रबल कामेच्छा, स्नायुप्रधान और अभिमानिनी स्त्रियों पर ही इसकी विशेष क्रिया होती है । मानसिक लक्षण – हर वक्त उदास, उद्वेगपूर्ण और भयभीत रहना ।
जरायु का बाहर निकलना – जरायु में दबाव और ऐसा अनुभव होना कि वह बाहर निकल पड़ेगी और साथ ही जरायु में दर्द – जो कलेजे तक परिचालित होता है । सिपिया में भी-यह लक्षण थोड़ा-बहुत पाया जाता है, किन्तु ‘सिपिया‘ में प्रबल कामेच्छा नहीं रहती, ऋतुस्राव ‘सिपिया‘ की अपेक्षा ‘म्यूरेक्स‘ में ( परिमाण में ) अधिक होता है। डॉ० डनहम का कहना है – म्यूरेक्स का ऋतु बहुत देर से होता है और कुछ दिनों तक लगातार स्राव होकर अचानक एक दिन बन्द हो जाता है, और फिर 12 घंटे तक बंद रहने के बाद फिर होने लगता है। ‘म्यूरेक्स‘ में जरायु बाहर निकल पड़ने की आशंका इतनी अधिक रहती है कि रोगिणी जब बैठती है तो दोनों जाँधों को जोर से एक साथ दबाकर बैठती है; इसके सिवा बैठने पर जरायु-ग्रीवा का स्पन्दन और दर्द भी बढ़ जाता है।
कामोत्तेजना – जरा सा स्पर्श करते ही रोगिणी की काम-प्रवृत्ति जाग उठती है; और वह कभी-कमी इतनी बढ़ जाती है कि उसका होश-हवाश और बुद्धि तक लुप्त हो जाती है।
प्रदर – ऋतू बन्द होने के बाद हरे-पीले रंग का या खून-शुदा श्वेत-प्रदर का स्राव हुआ करना।
पेशाब की बीमारी – रात में जब कि नींद में सोती रहती है ; तब अचानक पेशाब लग आता है, तो चट से जाकर उठ बैठती है; उस समय पेशाब परिमाण में अधिक होता है और उस में बदबू रहती है । रात में बहुत पेशाब होता है ।
इसके सिवा – गर्भावस्था में गांठो में दर्द, मस्तिष्क की जड़ता की वजह से अकर्मण्य हो जाना, माथे में बराबर दर्द बना रहना ; शाम के वक्त मन चंचल हो उठना, किसी के साथ बात करने की तबीयत न होना इत्यादि उपसर्गो और लक्षणों में म्यूरेक्स फायदा करती है l
सदृश – सिपिया, लिलियम, क्रियोजोटम इत्यादि।
क्रम – 3 शक्ति ।