[ अटलांटिक महासागर के उपकूल पैदा होने वाले 7-8 फुट ऊँचे एक तरह के गुल्म की जड़ या सोर की छाल से टिंचर तैयार होता है ] – होमियोपैथी में यह दवा सिर्फ दो-तीन बीमारियों में ही काम में आती है, जैसे :-
(1) सब तरह का श्लेष्मा या सर्दी का स्राव ( catarrhal discharge ), जब कि बीमारी बहुत दिनों की पुरानी हो चुकी हो।
(2) कामला या पीलिया और उसके साथ सवेरे सिर दर्द।
डॉ फैरिंगटन का कहना है कि इसमें – यकृत की विकृति के कारण ठीक-ठीक पित्त पैदा न होने से बीमारी होती है, पित्त आबद्ध होकर बीमारी नहीं होती, अर्थात functional रोग होता है, organic नहीं।
आँखें पीली, जीभ पर पीला मैल, हाथ-पैरों में ऐंठन, गंदला पेशाब, हरवक्त औंघाई आना – ये ‘माइरिका‘ के लक्षण हैं। ‘डिजिटेलिस‘ के लक्षण – यहाँ बहुत कुछ ‘माइरिका‘ समान हैं, किन्तु इतना याद रखना चाहिए कि डिजिटेलिस में जो कामला होता है वह – organic रोग होता है।
क्रम – Q से 3 शक्ति।