सिर, कान, गला, किडनी, लिवर, प्रभृति पर इसकी क्रिया होती है।
रक्तस्राव – नाक के रक्तस्राव की यह एक उत्कृष्ट औषधि है। सिर चकराने के साथ मध्य कर्ण के रोग में बहरा हो जाना, कान में टुनटुन शब्द, आँख में रेटिनल हेमरेज, श्वास कृच्छता, शब्दयुक्त निःश्वास ( noisy ), असमान नाड़ी, सम्पूर्ण ज्वर लोप इत्यादि की भी यह उत्तम औषधि है। एलोपैथिक मात्रा में इससे बाधक का दर्द घटता है व ऋतुस्राव की वृद्धि होती है।
इनके अलावा नैट्रम लैक्टिक – वात, गठिया वात ; नैट्रम नाइट्रोसम – एंजाइना पेक्टोरिस, चमड़ा नीले रंग का होना ( cyanosis ), मूर्च्छा, रात को अति मात्रा में पतला पाखाना।
नेट्रम सेलिनिकम – पुराना लैरिनजाइटिस व लैरिनजियल थाइसिस; नेट्रम सिलिको फ्लोर – अस्थि झंझरा, केरिज, कैंसर, मुख नाक व ओठ व पलक का ल्युपस,ट्यूमर प्रभृति।
नेट्रम सल्फो-कार्बल – पायमिया, पीबमय प्लूरिसि – 3 से 5 ग्रेन हर तीन घण्टों के अन्तर से दें।
नेट्रम टेेलुरिकम – साँस में लहसुन की गंध, थाइसिस में रात को अत्यधिक पसीना होने इत्यादि में व्यवहार होता है।
मात्रा – 3 शक्ति ।