कारण – वमन अथवा उल्टी एवं मिचली के अनेक कारण हो सकते हैं । अधिक पानी पीना, अधिक भोजन करना, अग्निमान्द्य, स्नायु-मण्डल सम्बन्धी दोष, यकृत् तथा जरायु-सम्बन्धी दोष, गर्भावस्था, कृमि-दोष, शारीरिक दुर्बलता तथा नाव, गाड़ी, बस, रेल आदि में यात्रा करने आदि कारणों से भी उल्टी हो जाती है । हिस्टीरिया अथवा गर्भावस्था में वमन होना आशंका-जनक रहती है तथा मिर्गी आदि मस्तिष्क रोगों में वमन होना शुभ लक्षण नहीं माना जाता ।
लक्षण – वमन में खाई-पी गई वस्तुएँ मुख-मार्ग से बाहर निकल जाती हैं तथा जी मिचलाता है और ऐसा लगता है कि उल्टी होने ही वाली है, परन्तु होती नहीं है। कभी-कभी जी मिचलाने के बाद उल्टी हो भी जाती हैं ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
इपिकाक 3, 30, 200 – भोजन करने, खाँसी उठने अथवा खट्टी वस्तुओं का सेवन करने के बाद वमन होना तथा अधिक जी मिचलाना – इन लक्षणों में लाभकारी है। जी मिचलाने तथा उल्टी (वमन) की यह मुख्य औषध है। गर्भावस्था की वमन तथा मिचली में बहुत लाभ करती है । पानी जैसी लार बहना, हरी अथवा काली श्लेष्मायुक्त वमन, खट्टी वमन, पाकस्थली में खालीपन का अनुभव तथा बराबर मिचली आना – इन सब लक्षणों में इसका प्रयोग करना चाहिए ।
एण्टिम-क्रूड 3, 6 – पाकस्थली में भार का अनुभव, जीभ मलिन तथा सफेदी चढ़ी, अरुचि अथवा मिचली के लक्षणों में हितकर है । अपच पदार्थ खाने, पेट को अधिक भर लेने, खट्टी वस्तुओं का सेवन कर लेने अथवा शराब आदि पीने के कारण उल्टी आने पर यह बहुत लाभ करती है। बच्चों तथा बड़ों की उल्टी की यह भी एक मुख्य औषध है ।
क्रियोजोट 3, 6, 30 – यकृत्-रोग, क्षय-कास, अथवा मूत्राशय के रोग से उत्पन्न वमन, गर्भावस्था की वमन, हिस्टीरिया के कारण वमन, प्रात:काल मिचली, केवल ओकाई आना-वमन न होना, अधिक देर तक वमन का जारी रहना, रोगी की पाचन-शक्ति का इतना दुर्बल होना कि वह भोजन को पेट में रख ही न सके तथा खाना खाने के कुछ घण्टे बाद ही बिना पचे भोजन की वमन हो जाना-आदि लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । यह जीर्ण वमन-रोग में भी हितकर है ।
आर्सेनिक 3x, 30 – पेट में बेचैनी रहने के कारण पेट में पानी तक न टिक पाना, जीभ पर लाली, आमाशय में घाव के कारण मिचली अथवा वमन, पाकस्थली में जलन अथवा गर्मी का अनुभव, अजीर्ण के कारण भोजनोपरान्त छाती में जलन के साथ वमन और पतले दस्त, रह-रहकर वमन करने की इच्छा तथा इसी कारण शरीर का कमजोर हो जाना आदि लक्षणों में लाभकारी है ।
इथूजा 3, 30 – शिशुओं की वमन में यह औषध विशेष प्रभावकारी है । जी मिचलाना, दूध उलट देना, उल्टी होते ही भारी थकावट के कारण नींद आ जाना, उल्टी करने के तुरन्त बाद ही फिर दूध पीने लगना अथवा उल्टी करके सो जाना और फिर उल्टी कर देना एवं दाँत निकलते समय के कष्टों में यह बहुत लाभ करती है । .
कैल्केरिया-कार्ब 30 – बच्चों के दस्त, उल्टी में जमे हुए दही जैसी फुट्टियाँ निकलना, अत्यन्त खट्टी गन्ध वाली उल्टी होना तथा दूध न पचना आदि लक्षणों में हितकर है। यदि बालक मोटा एवं थुलथुल हो तो विशेष लाभ करती है ।
फास्फोरस 3, 6 – पेट में जलन होना, जो कि ठण्डे पानी में शान्त हो जाती हो; परन्तु पेट में पानी के गर्म होते ही उल्टी आ जाये-ऐसे लक्षणों में पुराने अजीर्ण के रोगियों के लिए यह औषध श्रेष्ठ लाभ करती है। पेट के अल्सर अथवा कैंसर में जब खून की उल्टी आती हो, तब इस औषध का प्रयोग विशेष हितकर सिद्ध होता है। सामान्य उल्टी में यह औषध काम नहीं करती ।
कॉक्युलस 3, 30 – गाड़ी, नाव, जहाज आदि में यात्रा करते समय जी मिचलाना अथवा उल्टी होने में यह लाभकारी है। इस औषध के रोगी को भोजन की गंध भी पसन्द नहीं होती ।
कोलचिकम 3, 30 – रसोई की गन्ध से ही जी मिचलाने लगना, मछली, अण्डा, चर्बी वाले खाने की गन्ध को भी बर्दाश्त न कर पाना – इन लक्षणामें हितकर है ।
फेरम-मेट 3, 6 – मुख का भरा-भरा रहना, उल्टी में खाई हुई वस्तु का निकलना, खाना खाते ही या पानी पीते ही जी मिचलाने तथा उल्टी आ जाने के लक्षणों में विशेष लाभ करती है ।
सिपिया 30, 200 – गर्भावस्था में प्रात:काल खाना खाने से पूर्व जी मिचलाना, खाने के बाद उल्टी करने की इच्छा, भोजन की गन्ध अथवा उसे देखते ही जी मिचलाने लगना तथा खट्टी वस्तुएँ खाने की इच्छा-आदि लक्षणों में हितकर है।
नक्स-वोमिका 1x तथा एण्टिम-क्रूड 6 – गर्भावस्था की वमन को रोकने के लिए इन दोनों औषधियों को एक-एक घण्टे के अन्तर से पर्यायक्रम से देना चाहिए। गर्भिणी को खाना खाने के बाद एकदम उल्टी हो जाती हो तो इसका सेवन हितकर रहता है ।
आइरिस-वार्स 6 – अम्ल अथवा तिक्तं वमन अथवा खाई हुई वस्तु की वमन, सिर में दर्द तथा डकारें आने के साथ ही अम्ल एवं पित्त की वमन का होना – इन लक्षणों में लाभकारी है ।
ऐपोमार्फिया 3 – मनोद्वेग के अतिरिक्त अचानक वमन होते रहने पर हितकर है । शराबी तथा अफीमचियों के वमन में विशेष लाभ करती है ।
सिकेलि 3 – खट्टे श्लेष्मा की वमन के साथ ही दुर्गन्धित डकारें आना तथा पुराने वमन रोग में हितकर है।
जिंकम 6 – बिना जी मिचलाये ही अचानक वमन होने लगना तथा शरीर का कमजोर होते जाना – इन लक्षणों में लाभकर है ।
एण्टिम-टार्ट 6 – शराबियों की वमन तथा मिचली एवं वमन होने के पश्चात् मिचली बन्द हो जाना आदि में हितकर है ।
आर्निका 6 – माथे में चोट लगने के कारण होने वाली वमन में लाभकर है ।
पेट्रोलियम 6, केलिफॉस 12x वि० अथवा नेट्रम-फॉस 12x वि० – गाड़ी, नाव, जहाज आदि में यात्रा करने के कारण होने वाली वमन में। ‘काक्युलस’ भी इसी लक्षण में प्रयुक्त की जाती है, जिसके विषय में पहले लिखा जा चुका है ।
इपिकाक 3x अथवा मिलिफोलियम 1x – चमकीले लाल रंग के रक्त की वमन में हितकर है ।
हैमामेलिस 1x – काले रंग की रक्त की वमन में लाभकारी है।
आइरिस-वर्स 3, पोडोफाइलम 6, ब्रायोनिया 3, अथवा मर्क-सोल 6 – पित्त के वमन में हितकर है।
विशेष – (1) यदि किसी विषैली वस्तु के पेट में पहुँच जाने पर वमन होने लगे तो उस विष को तुरन्त ही पाकस्थली से बाहर निकालने का प्रयत्न करना चाहिए।
(2) पाकाशय अथवा किसी अन्य यंत्र की उत्तेजना के कारण वमन होने पर गरम पानी पीने से विशेष लाभ होता है । बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े चूसने तथा सोडावाटर के साथ समभाग दूध भली-भाँति मिला कर, सेवन करने से भी वमन होना बन्द हो जाता है ।
(3) अग्निमान्द्य के कारण होने वाले वमन में कच्चे नारियल का पानी पिलाना अत्यन्त हितकर है।
(4) पाकाशय को विश्राम देने (उपवास करने) अथवा अल्प-भोजन करने पर भी कभी-कभी वमन होना बन्द हो जाता है ।