नक्स मॉस्केटा का होम्योपैथिक उपयोग
( Nux Moschata Uses In Hindi )
(1) स्नायु-संस्थान के शारीरिक रोग-लड़खड़ाना – डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि यह औषधि मुख्य औषधियों में नहीं है, हम प्राय: ‘अनेक-कार्य-साधक’ (Polychrests) औषधियों से अपना काम चलाया करते हैं, परन्तु जहां इस औषधि के लक्षण हों, वहां इसी से काम चलता है। इस औषधि का स्नायु-संस्थान (Nervous system) पर विशेष प्रभाव है, इसलिये स्नायविक रोगों में इसका उपयोग होता है। स्नायु-संस्थान के रोग शारीरिक तथा मानसिक हो सकते हैं। शारीरिक रोगों में हाथ-पैर का ठीक-से न चलना, लड़खड़ाना, कांपना, थकावट, सुस्ती आदि लक्षण ऐसे हैं जो इस औषधि के अधिकार-क्षेत्र में आते हैं। ये शारीरिक कमजोरी के रोग आर्सेनिक की-सी कमजोरी को नहीं सूचित करते। आर्सेनिक में तो शारीरिक कमजोरी से रोगी इतना पस्त हो जाता है कि उसमें बल ही नहीं रहता। नक्स मॉस्केटा का रोगी स्नायु-शक्ति (Nervous force) की हीनता के कारण अपने को दुर्बल अनुभव करता है, थका रहता है, इस थकावट से उस पर सुस्ती चढ़ी रहती है, लेटा रहता है। कभी-कभी इस स्नायविक-दुर्बलता से उसे बेहोशी के दौरे पड़ जाते हैं।
(2) स्नायु-संस्थान के मानसिक रोग-मृगी, स्मृति-लोप, रोगी जो कर रहा है उसे छोड़ आगा-पीछा भूल जाता है – मानसिक-दृष्टि से रोगी जो कुछ कर रहा होता है उसे तो किये जाता है, परन्तु उसे किसी बात का आगा-पीछा याद नहीं रहता। दिन भर रोगी अपने पुत्र से बात करता रहे, परन्तु उसे इतना भी स्मरण नहीं रहता। भूतकाल की किसी घटना को वह याद नहीं कर सकता, जो कुछ वह कर रहा है उसे वह जानता है, परन्तु थोड़ी देर बाद ही उस सब किये को वह भूल जाता है। एक तरह से वह वर्तमान काल में जीता है, भूत-काल से उसका नाता टूट जाता है, वह अपने काम को किये जाता है, परन्तु जी ऐसे रहा होता है मानो किसी स्वप्न में जिन्दगी बिता रहा हो। अपने मित्रों तक को भूल जाता है। ऐसी मानसिक-अवस्था प्राय: हिस्टीरिया रोग ग्रस्त पुरुष-स्त्रियों की हुआ करती है। इस औषधि के निर्वाचन में रोगी की मानसिक अवस्था चिकित्सक के लिये निर्देशन का काम करती है।
(3) रोगी तन्द्रा में रहता है, उसे जगाये रखना कठिन होता है – रोगी हर किसी समय सोने के लिये तैयार रहता है। उसे जगाये रखने के लिये बड़ा प्रयत्न करना पड़ता है। समय-कुसमय, जिस किसी भी समय वह झट सो जाता है, बहुत प्रयत्न करने पर भी वह नींद का दमन नहीं कर सकता। उस पर नींद की खुमारी चढ़ी रहती है, मानो नशे में हो। ‘तन्द्रा’ की यह हालत ओपियम में भी है, परन्तु ओपियम में ‘तन्द्रा’ की जगह ‘बेहोशी’ (coma) होती है, रोगी जोर-जोर से खुर्राटें भरता है, मल-मूत्र अपने आप निकल जाता है, इन्द्रियां शुरू में तो बेहद तीव्र होती हैं, परन्तु पीछे जाकर कुंठित हो जाती हैं, ओपियम की ये अवस्थाएं नक्स मॉस्केटा में नहीं होतीं।
(4) कभी रोना, कभी हँसना जैसी हिस्टीरिया की-सी मानसिक-अवस्था – रोगी क्षण भर पहले हँसता था, खेलता था, क्षणभर बाद रोने बैठ जाता है, या अभी रोता था, कुछ देर बाद हँसने लगता है। इस प्रकार की मनोवृत्ति हिस्टीरिया में होती है, और इसीलिये हिस्टीरिया में लक्षणानुसार इसका उपयोग होता है। इग्नेशिया में भी ऐसा होता है।
(5) जरा-सी बात पर बेहोशी (Fainting fits) – किसी जरा-सी बात से रोगी को मूर्छा का दौरा पड़ जाता है। खून देख लेना, देर तक खड़े रहना, तेज गंध, कोई उद्वेगात्मक घटना, किसी भी बात से रोगी को मूर्छा आ जाती है।
(6) मुख सूखे होने पर भी प्यास न होना – रोगी का हर अंग सूखा होता है। त्वचा सूखी, आंखें सूखी, नाक, होंठ, गला सब सूखा रहता है। जीभ इतनी सूख जाती है कि तालु में चिपक जाती है, परन्तु इस सारे सूखेपन में अद्भुत-लक्षण यह है कि रोगी को प्यास नहीं लगती। जीभ इतनी सूखी होती है कि उसमें से लार न निकलने के कारण भोजन गले के नीचे नहीं उतरता। एपिस, पल्स, लैकेसिस में भी प्यास नहीं है।
(7) जो कुछ खाता है उसका गैस बन जाता है; बदहजमी (Dyspepsia) – बदहजमी में यह उत्तम औषधि है। रोगी को गैस की शिकायत रहती है। जो कुछ खाता है सब गैस बन जाता है। पेट गैस से इतना फूल जाता है कि गैस का दिल और फफड़ों पर दबाव पड़ने से रोगी को दिल की धड़कन और श्वास कष्ट होने लगता है। नक्स मॉस्केटा में खाना खाते ही पेट-दर्द हो जाता है; नक्स वोमिका में खाने के बाद पेट भारी हो जाता है या हल्का दर्द शुरू हो जाता है, खाना हज़्म होने तक बना रहता है, एनाकार्डियम में पेट खाली होने पर पेट-दर्द शुरू हो जाता है, खाना खा लेने पर पेट-दर्द ठीक हो जाता है।
(8) पसीना न आना – इस औषधि का एक विचित्र लक्षण यह है कि उसे पसीना नहीं आता।
(9) शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है)