आँखों के नीचे पलक की थैली में सूजन – एपिस मेल 30, 200 – यह सूजन की अच्छी दवा है। इसमें निचली पलक में सूजन रहती है । डॉ सत्यव्रत लिखते हैं- वैसे तो एपिस मेल की शोथ सब अंगों में हो सकती है परन्तु मुख्य तौर पर इसका प्रभाव गुर्दे पर पड़ता है, इसीलिये शरीर में जहाँ-जहाँ सेल्स हैं वहाँ पर पानी भरने के कारण शोथ हो जाता है । परन्तु इस दवा के रोगी की सूजन प्रमुख रूप से आँखों के नीचे की पलकों की थैली में अधिक होती है। इसका शोथ प्रमुख रूप से दाँयी तरफ अधिक होता है और यदि पेट में सूजन होगी तो वह दाँयी तरफ अधिक होगी ।
ऊपरी पलक की सूजन में- काली कार्ब 2x, 6x- जिस प्रकार एपिस मेल में निचली पलक में सूजन देखी जाती है ठीक उसी के विपरीत इस दवा में ऊपर की पलकों में सूजन देखी जाती है। इसमें भी एपिस की तरह मूत्रावरोध आदि लक्षण होते हैं । यह दवा शोथ रोग में निम्न शक्ति में ही दी जाती है, उच्च शक्ति में नहीं ।
गिर जाने, घाव, कैंसर आदि की सूजन पर- कोनियम 200- कैन्सर के कारण सूजन हो या गिरने, घाव आदि की वजह से सूजन हो तो इस दवा का प्रयोग करना चाहिये ।
पैरों का सूजन- पैरों की सूजन पर लैथाइरस सैटाइवस 3x दवा उपयुक्त है । ऐसी ही स्थिति जिसमें रोगी धड़ से कमजोर हो जाये, परन्तु उसके पाँवों में सूजन हो रही हो तो ऐसे रोगी को डिजिटेलिस 3x के बाद एसीटिक एसिड को निम्नशक्ति (6, 30) में प्रयोग कराने से आशातीत सफलता मिलती है ।
शोथ रोग- ईगलफोलिया Q- डॉ० सिन्हा ने लिखा है कि बिल्व-पत्र नामक वनस्पति से निर्मित यह दवा शोथ रोग की एक सफल औषधि है। यह समस्त शरीर के शोथ में कारगर है । चरित्रगत लक्षणों में पलकों के ऊपर और नीचे पानी की थैली की तरह सूजन होती है । हाथ-पैरों और चेहरे के शोथ के साथ हृदय और यकृत की गड़बड़ी पायी जाती है । ऐसी स्थिति में इस दवा की 5 बूंदें रोज दो बार पानी में देनी चाहिये ।
हृदय की मंद गति के कारण शोथ- काली कार्ब 30, 200- हृदय-गति के मंद प्रवाह की वजह से यदि शोथ रोग हुआ हो तो यह दवा देनी चाहिये। हृदय-गति धीमी होने से पैर, अंगुलियों व पीठ आदि में सूजन हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह दवा अच्छा कार्य करती है ।
सब प्रकार के शोथ- बोराविया डिफ्यूजा Q- यह दवा श्वेत पुनर्नवा से बनती है । यह सभी प्रकार के शोथ रोग की एक प्रमुख व अच्छी दवा है। इसकी 5 से 10 बूंद दिन में दो बार देने से पेशाब ज्यादा होने लगता है व शोथ रोग अच्छा हो जाता है ।
शोथ की हर अवस्था में- फैरम फॉस- डॉ० केन्ट लिखते हैं कि शोथ की प्रथम अवस्था में यह दवा निम्नशक्ति में एवं पुराने शोथ में उच्चशक्ति में देनी चाहिये । यह बायोकैमिक दवा है जो डॉ० शुसलर द्वारा सन् 1875 में आविष्कृत हुई थी । डॉ० शुसलर का कहना है कि शरीर को बनाने के लिये आवश्यक प्रोटीन, चर्बी, कार्बोहाइड्रेट्स आदि की जरूरत होती है । इन तत्वों को उचित स्थान तक ले जाने का काम फैरम फॉस का है । इस दृष्टि से शरीर में आई कई खराबियों के निदान हेतु इस दवा की जरूरत पड़ती है । अतः शोथ की प्रथम अवस्था में (जिसमें मूत्राशय का शोथ आदि हो तो भी) इसका इस्तेमाल करना अति श्रेयस्कर है । शक्ति के विषय में कुछ मतभेद अवश्य हैं, कुछ चिकित्सक इसको निम्नशक्ति में बायोकैमिक सिद्धान्त के अनुसार देने के पक्ष में हैं तो कुछ चिकित्सक होमियोपैथिक सिद्धान्त के अनुसार 30 या फिर इसके ऊपर की शक्ति में देने के पक्ष में है । फैरम फॉस की कमी अर्थात् लौहकणों की कमी या असमायोजन से माँसपेशियों में शिथिलता आने लगती है । यदि इस वजह से शोथ हो तो इसका इस्तेमाल अवश्य ही करना चाहिये ।
पेशाब की खराबियों से आई शोथ पर-नैट्रम म्यूर 3x, 6x, 12x- इस दवा का बायोकैमिक दवाओं में विशेष स्थान है | इस लवण का कार्य शरीर में पानी को सीखना है जबकि नैट्रम सल्फ का कार्य अवांछनीय बेकार पानी को बाहर फेंकना है । नैट्रम म्यूर की कमी से शरीर में पानी का उचित समायोजन नहीं होता भले ही व्यक्ति ऊपर से कितना भी नमक खाये । नैट्रम म्यूर के रोगी को इसीलिये नमक की अधिक चाह होती है । इस नमक के असमायोजन से शरीर में पानी अधिक हो जाता है । नैट्रम म्यूर के रोगी को ठंड अधिक लगती है क्योंकि उसके शरीर में पानी जब्त न होकर भिन्न-भिन्न अंगों में भरा रहता है । अतः जब मूत्र में एल्बूमेन आने लगे, पेशाब कम हो तो इस दवा का प्रयोग अवश्य करें, इससे नमक का समायोजन उचित होता है । इस सम्बन्ध में कुछ विद्वान लेखकों व चिकित्सकों का अनुभव देना नितान्त आवश्यक है ताकि वस्तु-स्थिति और अधिक स्पष्ट हो सके ।
(1) डॉ० कौनेलियस ओल्डेनवुर्ग ने अपने अनुभव में लिखा है कि उन्होंने दीर्घ वृक्क-प्रदाह के रोगी को, जिसके मूत्र में एल्बूमेन आता था व आपेक्षिक गुरुत्व 1016 था, अत्यधिक दुर्बलता के साथ सिर-दर्द में नैट्रम म्यूर 6x दिया, इससे रोगी को शीघ्र लाभ हुआ । डॉ० वोरिस का अभिमत है कि नैट्रम मयूर के साथ कल्केरिया फॉस देने से इस रोग में ज्यादा सफलता प्राप्त |
(2) डॉ० सी० ई० फिशर, एम० डी० का सन्दर्भ देते हुए डॉ० बोरिक ने कहा है कि डॉ० फिशर ने ऐसे दो वृक्क-प्रदाह के शोथ रोगियों को, जिनके मूत्र में एल्बूमेन आती थी और पूरे शरीर में सूजन थी, मात्र कल्केरिया सल्फ 6x देकर रोगी को जल्दी ही ठीक कर दिया था ।
(3) डॉ० डब्लू० एम० प्रेक्ट, एम० डी० ने एक चार वर्ष के लड़के को, जिसे आरक्त ज्वर के पश्चात् शोथ रोग हुआ और मूत्र-त्याग कम होता था, होमियोपैथी की निर्देशित दवायें (एपिसमेल, आर्सेनिक एवं एपोसाइनम) दीं जो फेल हो गई । इस अवस्था पर उन्होंने नैट्रम म्यूर 6x प्रति दो-दो घण्टे के अन्तर से दिया जिससे रोगी को 24 घण्टे में पर्याप्त पेशाब हुआ व उक्त रोग में फायदा नजर आया ।
(4) डॉ० मेनिगर ने एक स्थान पर लिखा है कि नैट्रम म्यूर वृक्क-प्रदेश में चाप, ताप, इष्टकचूर्ण-संचय, रक्त-मूत्र, मूत्र में एल्बूमिन घटाने, मूत्राम्ल का निष्कासन बढ़ाने तथा क्लोराइड भी निकालने में सुनिश्चित तथा अव्यर्थ औषध है । वृक्क रोग में इससे अवश्य लाभ होता है । अतः इस रोग में इस दवा का अवश्य ही प्रयोग करना चाहिये ।
(5) मूत्र में एल्बूमिन अधिक होने पर कल्केरिया फॉस 3x या 6x को नैट्रम म्यूर 6x के साथ पर्यायक्रम से प्रयोग करने से अच्छे परिणाम विद्वान लेखकों को मिले हैं । अतः उक्त दोनों दवायें इस रोग की श्रेष्ठ औषधि साबित हुई हैं ।
(6) जिस प्रकार से हमने नैट्रम म्यूर के बारे में लिखा है कि नैट्रम म्यूर साधारण नमक से बनी एक ऐसी शक्तिकृत दवा है जिसका शोथ, वृक्कदोष, पेशाब कम होना या पेशाब में एल्बूमिन अधिक जाने पर प्रयोग करने से अपेक्षित परिणाम मिलते हैं । इसी प्रकार से बायोकैमी में नैट्रम सल्फ का उपयोग भी अद्वितीय है । नैट्रम सल्फ की कमी से शरीर का बेकार पानी नहीं निकलता और इसी वजह से शरीर में जगह-जगह पानी का संचय होने लगता है । शरीर में सूजन भी आने लगती है । इसलिये नैट्रम सल्फ का प्रयोग मोटापा, शरीर में अत्यधिक जल-संचय होने जैसी स्थिति में सफलतापूर्वक होता है । मूत्र में पथरी हो जिसकी वजह से भी यदि मूत्र न निकल पा रहा हो इस दवा के प्रयोग से मूत्र निकलने लगता है एवं पथरी भी मूत्र-मार्ग से निकल जाने के कारण आराम मिलता है । नैट्रम सल्फ पेशाब में आने वाली शक्कर को भी रोकती है ।