क्लोम (Pancreas) यकृत से छोटी होती है और उदर की पिछली दीवार से जुड़ी रहती है । इसका सिर पक्वाशय के घेरे में रहता है और इसकी पूँछ का सिरा प्लीहा (Spleen) से जुड़ा रहता है। इसका भार 60 से 100 माशे तक और लम्बाई 5 से 6 इंच तक होती है तथा इसकी चौड़ाई डेढ़ से दो इंच तक होती है। इसके अनेक भागों से छोटी-छोटी नलियाँ निकलती हैं जिन्हे ‘क्लोम स्रोत’ (Small Ducts of Pancreas) कहते हैं। इन्ही म स्रोतों के मिल जाने से एक बड़ी नली बन जाती है जिसे क्लोम प्रणाली (Pancreatic duct) कहते हैं। इनसे एक प्रकार का रस बनता है जिसे ‘क्लोम-रस’ कहते हैं।
एक दिन में 500 से 800 सी०सी० क्लोम रस बनता है। इसकी प्रक्रिया क्षारीय होती है। इसमें जलीयांश 97.4% होता है। कुछ सेन्द्रिय लवण और कुछ निरिन्द्रय लवण होते हैं। क्लोम रस में निम्नलिखित एंजाइम होते हैं, जो पाचन क्रिया में सहायक होते हैं :-
1. ट्रिपसिन (Trypsin) – क्लोम में ट्रिपसनोजाइन (Trypsinogen) के रूप में रहता है, जो कि निष्क्रिय है। आन्त्र रस में एन्टेरोकाइनेज एंजाइम इसको ‘ट्रिपसिन’ में परिवर्तित कर देता है।
ट्रिपसिन पेप्सीन के द्वारा पचाये हुए पदार्थों को आगे पचाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि पेप्सीन प्रोटीन पर क्रिया करके उसे पेपटोन में बदल देता है। अब इस पेपटोन पर ट्रिपसिन कार्य करता है और उसको पोलीपेपटाइड (Polypeptide) में परिवर्तित कर देता है । ये पुन: टूटकर एमिनो एसिड (Amino acid) में बदल जाते हैं।
2. कीमोट्रिपसिन (Chymotrypsin) – इसका कार्य भी ट्रिपसिन की तरह से होता है।
3. कारबोक्सी (Carboxypeptidase) – यह Polypeptides को Peptides तथा एमिनो एसिड में तोड़ देता है।
4. एमायलेज (Amylase) – यह लाला-स्राव में उपस्थित टायलीन की तरह ही कार्य करता है, परन्तु उससे अधिक क्रियाशील होता है। यह बिना पके हुए स्टार्च पर भी क्रिया करके उसे मालटोस (Maltose) में बदल देता है।
5. लाइपेज (Lipase) – यह वसा को Fatty acid और Glycerol में तोड़ता है।
6. मिल्क कर्डलिंग एंजाइम (Milk Curdling Enzyme) – यह दूध के Caseinogen को Casein में बदल देता है।
इस प्रकार पित्त और क्लोम रस पाचन में सहायक होते हैं।