[ सूखी जड़ से मूल-अर्क तैयार होता है ] – साधारणतः पेशाब सम्बन्धी बीमारियों में ही इसका उपयोग होता है। इसके द्वारा मूत्र-पथरी का दर्द, पेशाब में तकलीफ, मूत्राशय का प्रदाह ठीक हो जाता है।
इसमें पेशाब बर्बेरिस की अपेक्षा कम चिकना रहता है, गँदली तली जमती है, दर्द केवल कूल्हे तक उतरता है। यह दवा पथरी के सिवा – मूत्राशय-मुखशायी-ग्रन्थि प्रदाह ( prostatitis ), मूत्रनली-प्रदाह ( urethritis ) और सिस्टाइटिस ( मूत्राशय-प्रदाह ) रोग में उपयोग होती है। पैरिरा ब्रावा में दर्द की वजह से रोगी घुटनों से चलने लगता है, पेशाब का वेग, कूथन, पेशाब हो जाने के बाद भी बून्द-बून्द पेशाब निकलना इत्यादि लक्षण इसमें बहुत ज्यादा है, पेशाब में लिथिक-एसिड और खून रहता है।
पैरिरा ब्रावा का मूत्र सम्बन्धी लक्षण :-
- रोगी का पेशाब बहुत गाढ़ा, खून मिला हुआ, गंदला होता है।
- पेशाब के समय जोर लगाना और दर्द का मूत्र-नली से होते हुए जांघ के नीचे तक जाना।
- पेशाब करने के बाद भी बून्द-बून्द टपकना और जलन होना।
- मूत्र-मार्ग में जलन और दर्द होना।
पैरिरा ब्रावा का पथरी सम्बन्धी लक्षण :-
- गुर्दे में पथरी, रोगी को खराब सपने आना।
- पेशाब करने में दिक्कत होना, बैठने पर नाभि की तरह दर्द होना।
- पथरी के साथ कभी-कभी लिंग पर घाव हो जाना और पेशाब करने में बहुत कष्ट होना।
ऊपर के लक्षण मिलने पर पैरिरा ब्रावा मदर टिंचर की 20 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में तीन बार सेवन करने से समस्या ठीक हो जाती है।
पैरिरा ब्रावा की तीसरी शक्ति भी अच्छा काम करती है।