पेट दर्द होना एक आम समस्या है। आम तौर पर पेट दर्द होने पर कोई भी दर्द निवारक गोली खाकर रोगी संतुष्ट हो जाता है, किन्तु पेट दर्द के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे कब्ज होना, पेट में कृमि, पेशाब की थैली में पथरी होना, लिवर में दर्द होना, किसी कारण से पेट में चोट लगना, जिससे अंदर घाव हो गया हो इत्यादि।
पेट दर्द के कारण
कब्ज होना : कब्ज कई बीमारियों को पैदा करने वाली होती है, जिनमें से एक व्याधि है पेट का दर्द करना। 2-4 माह का शिशु जब पेट दर्द के कारण रोता है, तो एकाएक समझ में नहीं आता कि बच्चा क्यों रो रहा है घरेलू इलाज, यथा पेट को रोक देने से, हींग का पानी नाभि के चारों ओर लगा देने से, सरसों का तेल गर्म करके मालिश कर देने से बच्चे को आराम हो जाता है। बच्चे के खान-पान का ठीक से ख्याल न रखने से कब्ज हो जाता है। हम बच्चे को दूध तो पिलाते हैं, पर पानी पिलाने पर ध्यान नहीं देते। 5-6 माह की आयु के बाद मां के दूध के अलावा अन्न आदि खिलाना भी शुरू कर दिया जाता है।
पेट फूलना : यह व्याधि कब्ज होने के परिणामस्वरूप पैदा होती है। कब्ज होने परं आंत एवं मलाशय में पड़ा मल सड़ता है, जिससे गैस बनती है और इकट्टा होने पर पेट फूल जाता है। पेट फूलने से तनाव बढ़ता है, आंतों एवं अन्य अंगों पर दबाव पड़ता है, जिससे दर्द होने लगता है। यदि बच्चे की गुदा के मुंह पर मल कड़ा होकर अड़ा हुआ हो, तो सीधे हाथ की छोटी उंगली में तेल लगाकर आहिस्ता-अहिस्ता बच्चे की गुदा में डाले या साबुन गीला करके गुदा में सरका दें, तो गैस निकल जाती है व रुका हुआ मल भी निकल जाता है।
आंतों में विकृति होना : 1.आतें बलखा गई हों, 2.बच्चे की आंतें जन्मताज रूप से उलझी हुई हों या उनमें कोई विकृति हो, जिससे आंतों पर दबाव पड़ता हो, 3.बच्चे को उल्टी होती हो, जो कि आंतों की विकृति के कारण हो रही हो। यदि उल्टी होती है, तो यह देखना होगा कि उल्टी का रंग कैसा है, उल्टी दर्द के साथ हो रही है या उल्टी होने के बाद दर्द कम हो जाता है।
दस्त होना : यदि पेट दर्द के साथ शिशु को दस्त होते हों, जो कि आम तौर से होता ही है, तो इसका कारण या तो अपच होना होता है या खराब पानी या दूध से संक्रमण होने से होता है।
पेट में कृमि होना : पेट में कृमि होने पर प्रायः बच्चा दर्द की शिकायत करता रहता है। बच्चे को भूख अधिक लगती है, खूब खाता है, फिर भी पतला-दुबला बना रहता है। चेहरे पर हलके सफेद चकते से पड़ जाते हैं। अपनी नाक, मुंह एवं गुदा में बच्चा बार-बार उंगली करता रहता है।
किडनी (गुर्दे) या यूरेटर की व्याधि : यह बच्चों की एक अलग ही व्याधि है, जिसके कारण भी बच्चा रोता है, बेचैन होता है और ख्याल यही होता है कि बच्चे के पेट में तकलीफ है, इसलिए बच्चा रो रहा है, जबकि वास्तव में यह तकलीफ किडनी यानी गुर्दे की या यूरेटर यानी मूत्र प्रणाली की होती है, जो कि गुर्दे से निकलने वाली होती है। उसमें या पेशाब की थैली में या पेशाब के रंस्ते में कोई इंफेक्शन या रुकावट हो जाए, तो जलन होने से या दर्द होने से बच्चा रोता है।
पथरी : बच्चे थोड़े-थोड़े बड़े होने पर चलने-फिरने लगते हैं तब अक्सर मिट्टी या चाक खाने के आदी हो जाते हैं। इस आदत से उनके पेट में मिट्टी, चूना, चाक आदि पहुंचते हैं, जो पथरी का रूप धारण कर लेते हैं। यह पथरी गुर्दे में या पेशाब की थैली में बन जाती है। तब बच्चे को हर वक्त दर्द महसूस होता है, जो पेशाब करते समय अधिकतम होता है।
लिवर (यकृत) का दर्द : चूंकि यकृत पेट में ही स्थित होता है। अत: इसका दर्द भी पेट का ही दर्द मालूम पड़ता है। लिवर (यकृत) के दर्द के अलावा किसी तरह का इंफेक्शन हो जाने पर भी पेट में दर्द होता है।
चोट लगना : चोट से अंदर जख्म भी हो सकता है, जिससे वहां खून जम जाता है और दर्द होने लगता है।
दर्द का कारण एवं होमियोपैथिक उपचार
• पहले सिर दर्द, चक्कर आना, फिर पेट दर्द –‘कोलोसिंथ’, ‘स्पाइजेलिया’।
• बच्चों को पेट दर्द – ‘एथूजा’, ‘कैमीमिला’, ‘सिना’, ‘मैगफॉस’।
• पित्ताशय में पथरी के कारण दर्द – ‘कैल्केरिया कार्ब’।
• दीर्घ स्थायी पेट दर्द – ‘लाइकोपोडियम’, ‘स्टेफिसेग्रिया’।
• पेट दर्द के साथ अत्यधिक गैस बनना – ‘एलोस’, ‘अर्जेण्टमनाइट्रिकम’, ‘बेलाडोना’, ‘कार्बोवेज’, ‘सिनकोना’, ‘लाइकोपोडियम’, ‘मैगफॉस’, ‘नक्सवोमिका’, ‘रेफेनस’।
• गुस्से के कारण पेट दर्द – ‘कैमोमिला’।
• कार आदि में चलने के कारण – ‘काक्युलस’, ‘काबोंवेज’।
• ठंड लगने से पेट दर्द – ‘एकोनाइट’, ‘कैमोमिला’।
• पनीर खा से पेट दर्द – ‘कोलोसिंथ’।
• सलाद, खीरा आदि खाने के कारण पेट दर्द – ‘सीपा’।
• पेट की गड़बड़ियों के कारण दर्द – ‘काबोंवेज’, ‘चाइना’, ‘पल्सेटिला’ ।
• पेट के ऑपरेशन के बाद दर्द –‘हिपर सल्फ’, ‘स्टेफिसेग्रिया’।• पैर गीले हो जाने के कारण -‘सीपा’, ‘डोलोकोस’, ‘डल्कामारा’।
• पेट में कीड़ों के कारण दर्द – ‘बिस्मथ’, ‘सिना’, ‘इंडिगो’, ‘नेट्रमफॉस’, ‘मर्कसॉल’।
• बवासीर के कारण दर्द – ‘एस्कुलस’, ‘नक्सवोमिका’, ‘कोलोसिंथ’।
• हिस्टीरिया रोग के कारण दर्द – ‘एसाफोइटिडा’, ‘इग्नेशिया’।
• मासिक स्राव संबंधी गड़बड़ियों के कारण दर्द – ‘बेलाडोना’, ‘कैमोमिला’, ‘काक्युलस’, ‘कोलोसिंथ’, ‘पल्सेटिला’, ‘साइक्लामेन’ ।
• नाड़ी संबंधी विकारों के कारण दर्द – ‘एट्रोपीन’, ‘बेलाडोना’, ‘काक्युलस’, ‘कोलोसिंथ’, ‘डायसकोरिया’, ‘मैगफॉस’, ‘नक्सवोमिका’, ‘प्लम्बम मेट’ ।
• गुर्दो की गड़बड़ी के कारण – ‘बरवेरिस’, ‘वल्गेरिस’, ‘लाइकोपोडियम’, ‘टेरेबिंथ सारसापेरिला’, ‘कॅथेरिस’।
• जोड़ों एवं मांसपेशियों की सूजन के कारण पेट दर्द – ‘कॉस्टिकम’, ‘डायसकोरिया’।
• लेड, कॉपर आदि धातुओं की विषाक्तता के कारण पेट दर्द – ‘एलूमिना’, ‘नक्सवोमिका’, ‘ओपियम’।
• कड़ी कब्ज होने पर – ‘एलूमिना’, ‘साइलेशिया’, ‘ब्रायोनिया’ व ‘ओपियम’।
• दस्त होने पर – ‘एलोस’, ‘पीडोफाइलम’, ‘कैमोमिला’, ‘कैल्केरिया’, ‘मैगमूर’।
• बार-बार टट्टी की हाजत होने पर – ‘नक्सवोमिका’।
आम तौर पर पेट में दर्द होने पर रोगी पहले दर्द से छुटकारा पाना चाहता है। इस अवस्था में ‘मैगफॉस ‘6 अथवा 30 शक्ति में एवं ‘कोलोसिंथ’ 30 शक्ति में एक-दूसरे से 10 मिनट के अन्तर पर तीन-चार बार लेने पर आराम मिलता है।
लाभदायक होमियोपैथिक टिप्स
• दांतों में छेद होना, दांत गिर जाना जैसे लक्षणों के लिए – कैल्केरिया फॉस
• मोतियाबिंद की श्रेष्ठ दवा (बाहरी प्रयोग के लिए) – सिनेरिया मेरिटिमा सक्कस
• मुंह, मसूढे और गले के घाव में व बदबू नष्ट करने के लिए (बाहरी प्रयोग के लिए) – काचलेरिया (इस दवा की क्यू शक्ति की 30 बूंद, 1 कप पानी में मिलाकर कुल्ला करना चाहिए)