[ सूखे फल से मूल-अर्क तैयार होता है ] – श्वास-यंत्र पर ही इसकी प्रधान क्रिया होती है। थाइसिस, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े की वायु-स्फीति ( emphysema ) आदि बीमारियों में जब अत्यन्त सड़ी बदबू-शुदा बलगम निकलता है और थाइसिस में – फेफड़े के बिचले भाग ( middle lobes ) पर बीमारी का दौरा होता है, तब इससे बहुत कुछ लाभ होता है। क्षय-ज्वर और उसके साथ ही कमजोरी लानेवाला पसीना और शरीर को क्षय करने वाला अतिसार ( संग्रहणी-रोग ) – इन बीमारियों की भी एक उत्तम दवा है। इसमें रोगी के मुंह का स्वाद मीठा रहता है।
स्तन की बीमारी – स्तन पिलाने के समय स्तन की दुग्धवाही-नली में ( milk ducts ) बहुत दर्द होना और उसका सारे शरीर में फ़ैल जाना और स्तन की घुण्डी में बहुत दर्द रहना। ‘फेलाण्ड्रीयम‘ का एक लक्षण यह भी है कि बच्चे को स्तन पिलाने के समय स्तन से बहुत अधिक दूध निकल जाता है। लैक-कैनाइनम में स्तन में इतना ज्यादा दूध भरा रहता है कि उससे प्रसूता को तकलीफ होती है और स्तन ऊपर की ओर उठाकर बाँध कर रखना चाहती है, किन्तु दर्द के कारण वह कर नहीं सकती।
आँख की बीमारी – आँख से बहुत अधिक पानी गिरना, रोशनी सहन नहीं होना, सिर में दर्द होना, आँख की स्नायु में भी दर्द होना।
फेफड़े की बीमारी – छाती की बीच की हड्डी के पास दाहिनी ओर सुई गड़ने जैसा दर्द, दर्द कंधे के पास और पीठ तक चला जाना, लगातार खाँसी, सवेरे खाँसी बहुत बढ़ जाना, सड़ा बदबूदार बलगम निकलने के साथ खाँसी, सो नहीं सकना, बैठा रहना जैसे लक्षण में फेलाण्ड्रीयम से फायदा होता है।
थाइसिस में – 6 और निम्न शक्ति का उपयोग करें।
क्रम – Q से 6 शक्ति।