इस रोग में गुदा में मस्से निकल आते हैं जो दर्द करते हैं। उनमे खुजली भी होती है। इसके सन्दर्भ में यह भी देखा गया है की कुछ लोगों को खुनी बवासीर हो जाती है। इसमें मल के साथ खून भी आता है। व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़ता है। डॉक्टर बादी तथा खुनी बवासीर के लिए ऑपरेशन का परामर्श देते हैं परन्तु यदि आयुर्वेद चिकित्सा की जाये तो इस कष्ट से छुटकारा पाया जा सकता है।
इलाज़ – (1) दस ग्राम त्रिफला, दस ग्राम भिलावा, दस ग्राम दन्ती तथा दस ग्राम चित्रक लें। इसमें बीस ग्राम सेंधा नमक मिलाएं। इन सब चीज़ों को नारियल के भीतर भरकर आज में फूंक लें। ठंडा होने पर सबको कुटपीसकर चूर्ण बन लें । इसके बाद एक चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी के साथ प्रातः सायं खाएं। दोनों प्रकार के बवासीर में लाभ होगा।
(2) त्रिफला का चूर्ण दो सौ ग्राम, त्रिकुटा का चूर्ण सौ ग्राम, शिलाजीत बीस ग्राम, बायविडंग पचास ग्राम – सब चीज़ों को कूट पीसकर एक शीशी में भर लें। इसमें से एक से दो चम्मच तक चूर्ण प्रातः सायं गरम पानी से लें। पुरानी से पुरानी बवासीर नष्ट हो जाएगी। इस दवा से पेट के अन्य रोगों में अभी लाभ होता है।
(3) बाजार में अभयारिष्ट मिलता है। इसमें से दो चम्मच प्रतिदिन सुबह शाम गरम पानी से लें। बवासीर जड़ से उखड़ जाएगी। इसे घर पर भी बनाया जा सकता है। दो किलो हरड़, एक किलो मुनक्का, आधा किलो बायविडंग, आधा किलो महुआ के फूल – प्रत्येक को जैकुट कर लें। इसे बीस किलो पानी में पकाएं। चार किलो जल रह जाने पर नीचे उतार लें। इसमें दो किलो गुड़ और आधा किलो पिसी हुई सौंफ मिलाएं। इसे पुनः आग पे पकाएं। बाद में छान कर बोतलों में भर लें। इसमें से दो चम्मच रस लेकर भोजन के बाद सुबह शाम सेवन करें। हर प्रकार की बवासीर नष्ट हो जाएगी। यह पेट के अन्य रोग के लिए भी लाभकारी है।
(4) त्रिफला बीस ग्राम, नीम का निबौली पचास ग्राम, गुलाब के फूल दस ग्राम – इन सबको सुखाकर चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण सुबह शाम भोजन के बाद लें।