यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है जो जीवाणुओं द्वारा फैलता है। इन जीवाणुओं का संवहन चूहों के द्वारा होता है। यह रोग प्रायः महामारी के रूप में ही फैलता है। यीं तो इस रोग से प्रत्येक उम्र और व्यवसाय का व्यक्ति पीड़ित हो सकता है परन्तु यह रोग पानी में काम करने वाले व्यक्तियों, तेल के व्यवसायियों और गाड़ीवानों को अधिक होता है। इस रोग में ज्वर आना, दुर्बलता, सुस्ती आदि लक्षण रहते हैं। यह अवस्था 5-6 घण्टे से लेकर 5-6 दिन तक रह सकती है। इसके बाद ठण्ड लगकर शरीर का तापमान 110 डिग्री तक हो जाना, शरीर में दर्द, प्रलाप, बेहोशी आदि लक्षण प्रकटते हैं, साथ ही, बगल-गर्दन आदि स्थानों पर गाँठे-सी निकलने लगती हैं। कभीकभी गाँठे पक भी जाया करती हैं। साथ ही पतले दस्त आना, शरीर में काली लकीरों का पड़ जाना, रक्त-स्राव आदि लक्षण भी रह सकते हैं। रोगी को प्यास भी बहुत लगती है। अगर रोगी का उपचार उचित रीति के साथ समय पर न किया जाये तो उसकी मृत्यु निश्चित ही है। जिन दिनों यह बीमारी फैल रही हो, उन दिनों घर के आस-पास के सारे चूहे मरवा दें, घर के आसपास सफाई रखें, डी.डी.टी. का छिड़काव करा दें, पीने का पानी उबालकर ठण्डाकर पीयें, खाने में सावधानी बरतें।
पेस्टिनम 30- जिन दिनों प्लेग की बीमारी फैल रही हो उन दिनों स्वस्थ व्यक्तियों को इस दवा की एक-एक मात्रा प्रति चार घण्टे से लेते रहनी चाहियेइससे रोग से बचाव होगा। यदि रोग हो ही गया हो तो सन्निपातिक ज्वर तथा गाँठ निकलने की प्रारम्भिक स्थिति में उपयोगी है।
इग्नेशिया 30,200- डॉ० होनिंगबर्गर के अनुसार यह दवा भी प्लेग की प्रतिषेधक दवा है। वैसे प्लेग की सभी अवस्थाओं में यह लाभप्रद है।
बेलाडोना 3x,200- रोग के आक्रमण की प्रथमावस्था में जबकि रोगी को तीव्र ज्वर, गले में खुश्की आदि लक्षण हों तो दें। ।
लैकेसिस 30- अत्यधिक दुर्बलता, बेचैनी, सम्पूर्ण शरीर में दुखन- इन लक्षणों में देनी चाहिये ।
नैजा 3x, 6– यह इस रोग की महौषध मानी गई है। डॉ० क्लार्क का तो यह कहना है कि भारत देश के रोगियों को (यहाँ की जलवायु के कारण) लैकेसिस की अपेक्षा नैजा ही अधिक लाभ करती है। सारे शरीर में दर्द, बेचैनी, श्वास लेने में कष्ट, सुस्ती, नाड़ीलोप, शरीर का पीला पड़ जानाइन लक्षणों में उपयोगी है।
पाइरोजिनियम 30,200- यदि बुखार अत्यधिक बढ़ गया हो जिससे मृत्यु है और रोगी को आराम मिलता है ।
इचिनेशिया Q- ज्वर, सुस्ती, पतले दस्त, बेहोशी, दर्द, गाँठों का फूली हुई होना- इन लक्षणों में इस दवा की 10-15 बूंदों की मात्रा प्रतिदिन तीन बार देनी चाहिये ।
काबों एनिमेलिस 30,200– गाँठों में कड़ापन और प्रदाह, सिर में तेज दर्द, सारे शरीर (विशेषकर गाँठों) पर नीले रंग की आभा दिखाई देने में लाभप्रद सिद्ध होती है ।
बैंडियागा 3x- गाँठ निकल आने पर इसका सेवन कराना चाहिये और इसे गाँठों पर लगाना भी चाहिये।