निमोनिया सदीं लगने से होता है। ज्वर में बदपरहेजी या फिर ठंडा पानी पीना, ठंडे पदार्थ खाना, बहुत मेहनत का काम करने से यह रोग हो जाता है। ऋतु-परिवर्तन के समय भी यह रोग ठंडी हवा लगने या फिर सर्दी लगने से होता है।
‘न्यूमोकोक्काइ’ (Pneumococci) नामक कीटाणु द्वारा विशेषत: यह रोग फैलता है। इसके अतिरिक्त स्ट्रेप्टोकोक्काइ, स्टेफायलो कोक्काइ, एच. इन्फलुएँजा, वायरस आदि भी इस रोग के फैलने में मदद करते हैं।
निमोनिया सन्निपात ज्वर की एक अवस्था का नाम है। निमोनिया होने से पहले एकदम बहुत कमजोरी आ जाती है। भूख बन्द हो जाती है। सर्दी लगने से बुखार चढ़ता है। सिर में तेज दर्द होता है। उल्टी होती है। दर्द से रोगी हाथ-पैर पटकता है। जब रोग बढ़ कर पूर्ण रूप ले लेता है, तब छाती को छूते ही दर्द होता है। सांस लेने में कष्ट होता है। खांसी जोर से होती है। मैला और गाढ़ा कफ निकलता है, कभी-कभी कफ के साथ खून भी आता है।
निमोनिया के लक्षण
1. पेशाब और पसीना बहुत आता है।
2. नाड़ी की रफ्तार 90 से 120 तक होती है।
3. टेम्परेचर 103* से 104 तक होता है।
4. फेफड़ों में सूजन आ जाती है।
5. छाती बहुत गर्म होती है।
6. मुंह और नेत्रं लाल हो जाते हैं।
7. सिर में दर्द होता है।
8. प्यास अधिक लगती है।
9. छाती में दर्द रहता है।
निमोनिया का समय पर इलाज होना जरूरी है। यदि समय पर इलाज न हो, तो निमोनिया पुराना होने पर रोगी मर भी सकता है।
पुराने निमोनिया के लक्षण – पसली में खिंचाव होने लगता है। खांसी से निकलने वाले कफ से बड़ी दुर्गन्ध आती है। दुर्गन्ध के कारण रोगी के पास जाना कठिन होता है।
नोट – छोटे बालक, बूढ़े, स्त्री और खास तौर पर गर्भवती स्त्री तथा शराबी को यदि यह रोग हो जाए, तो कठिनता से ही आराम होता है।
निमोनिया के प्रकार और होम्योपैथिक दवा
ब्रांकस निमोनिया होने पर : ‘एकोनाइट’, ‘आर्सेनिक’, ‘एण्टिमटार्ट’, ‘आर्स आयोड’, ‘चेलीडोनियम’, ‘इपिकॉक’, ‘फोस्फोरस’, ‘सिना’, ‘टबेकम’ औषधियां कारगर हैं।
कार्पस निमोनिया होने पर : ‘एकोनाइट’, एण्टिमटार्ट’, ‘बेलाडोना’, ‘ब्रोमीन’, ‘ब्रायोनिया’, ‘फेरमफॉस’, ‘आयोडियम’, ‘कालीकार्ब’, ‘लाइकोपोडियम’, ‘मरंक्यूरियस’, ‘फॉस्फोरस’, ‘सँग्युनेरिया’, ‘सल्फर’।
निमोनिया की तीन अवस्थाएं होती हैं। प्रत्येक अवस्था में भिन्न-भिन्न औषधियां उपयुक्त रहती हैं –
• प्रथम अवस्था : कंजेस्टिव ( फेफड़ों में बलगम संचय व अधिक रक्त प्रवाह होने पर ) अवस्था में – ‘एकोनाइट’, ‘फेरमफॉस’, ‘वेरेट्रम विरीड’ औषधियां।
‘विरीड’ एक घंटे के अंतर पर 30 शक्ति में एवं ‘फेरमफॉस’ 6 x शक्ति में कुछ दिनों तक खिलानी चाहिए।
• द्वितीय अवस्था : कंसोलिडेशन (फेफड़ों में कठोरता आने पर) अवस्था में – ‘ब्रायोनिया’, ‘फॉस्फोरस’ एवं‘आयोडियम’ औषधियां एक-एक धटे के अंतर पर 30 शक्ति में खिलानी चाहिये।
• तृतीय अवस्था : रिसोल्यूशन (रोग की स्थिरता) अवस्था में – ‘एण्टिमटार्ट’ 30, ‘फॉस्फोरस’ 30, ‘काली आयोड’ 30 में लेना हितकर रहता है। साथ ही ‘लाइकोपोडियम’ 200 की भी एक-दो खुराक लेना हितकर है।
इसी अवस्था में ‘हिपर सल्फ’ 200 की तीन खुराक, तत्पश्चात् ‘सँग्युनेरिया’ 30 शक्ति में कुछ दिन लेना लाभप्रद रहता है।
‘क्वायल’ से दमा
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार मच्छर मारने वाली क्वायल (अगरबत्तियों) के धुएं से दमा का प्रकोप बढ़ जाता है। क्वायल में स्थित कुछ रासायनिक पदार्थों का धुआं सांस के माध्यम से जब फेफड़ों में पहुंचता है तो वहां एक प्रकार की एलर्जी उत्पन्न होती है। इस एलर्जी के कारण दमे का प्रकोप बढ़ जाता है। मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का ही प्रयोग करना हितकर होता है।