गर्भावस्था में टांगें सूज जाने और शिराओं में शोथ होने पर निम्नलिखित औषधियाँ हितकर हैं :-
एपिस 3 – टांगों तथा पावों का सूजकर कड़ा हो जाना, सूजन वाली जगह का फूल कर मोम जैसा दिखाई देना तथा अंगुलियों के सिरों का सुन्न होने लगना-इन लक्षणों में दें ।
फेरम-मेट 6 – टांगों का सख्त तथा भारी हो जाना, पावों में सूजन तथा चलते समय पाँवों में दर्द होना।
ब्रायोनिया 30 – टांगों से सूजन आरम्भ होकर पाँवों तक पहुँचना तथा चलते समय अथवा कुछ देर खड़े रहने पर टांगों में सुस्ती आने के लक्षणों में ।
चायना 30 – टांगों में बेचैनी, पाँवों में सूजन तथा सख्ती, टांगों को लगातार हिलाते रहने की इच्छा तथा इन लक्षणों के साथ पेशाब का गहरे रंग का होना ।
आर्सेनिक 30 – पाँवों का फूलना, सूजना, कड़ा होना तथा टांगों एवं पाँवों में हर समय थकान का अनुभव होना ।
पल्सेटिला 30 – यह शिरा-शोथ की मुख्य औषध है । यह ‘प्रतिषेधक’ का काम करती हैं। शिरा-शोथ की आशंका में विशेष लाभ करती है।
हैमामेलिस Q, 6 – शिरा-शोथ हो जाने पर इसका प्रयोग करें तथा इसके मूल-अर्क के लोशन में पट्टी भिगोकर शोथ-स्थान पर रखें। इसके मूल-अर्क की 5-10 बूंदें दो-दो घण्टे के अन्तर से 5-6 सप्ताह तक देते रहने से भी रोग दूर हो जाता है । लाभ होने के साथ ही औषध देने के समय का अन्तर भी बढ़ाते जाना चाहिए।
वाइपेरा 12 – टांगें लटका कर बैठने पर असह्य दर्द तथा उनके फट पड़ने जैसा अनुभव, पक्षाघात का नीचे से ऊपर को आना ।
नक्स-वोमिका 30 – अधिक खाने-पीने अथवा मद्यपान आदि के कारण होने वाले शिरा-शोथ में हितकर है ।
पाइरोजेन 200 – शिरा-शोथ के कारण टांगों में अल्सर हो जाना और अल्सर से स्त्राव बहना तथा बन्द होना इन लक्षणों में दें ।
बेलाडोना 30 – रक्त-वाहनियों में अधिक रक्त होने के कारण शिरा-शोथ में हितकर है ।
ग्लोनायन 30 – ‘बेलाडोना‘ की भाँति हितकर है ।
आर्सेनिक-ऐल्ब 30 – शिरा-शोथ में आग जैसी जलन तथा रात के समय कष्ट बढ़ने के लक्षण में ।
फॉर्मिका 6, 30 – यदि शिरा-शोथ से टांगें बेहद कमजोर हो गई हों तथा जोड़ों में दर्द होता हो तो इसे दें।
फ्लोरिक-एसिड 6, 30 – स्त्रियों के शिरा-शोथ के पुराने रोग में लाभकर है । किसी अन्य औषध से फायदा न होने पर इसे दें ।
लैकेसिस 30 – शिराओं के बदरंग हो जाने, नीली पड़ जाने पर इसे देना चाहिए।