परिचय : 1. इसे शियु या शोभांजन (संस्कृत), सहजन या मुनगा (हिन्दी), शजिना (बंगला), शेवगा (मराठी), सरगवो (गुजराती), मरूंगई (तमिल), मुनगा (तेलुगु) तथा मांरिगां टेरिगोस्पर्मा (लैटिन) कहते हैं।
२. सहजन का वृक्ष 20 -25 फुट ऊँचा, मुलायम छाल तथा भूरे काण्डवाला होता है। सहजन के पत्ते छोटे, गोल पत्रकों के 6-8 जोड़े, 1 फुट की लम्बी सींक पर लगते हैं। सहजन के फूल गुच्छों में टहनियों के अन्त में नीलापन लिये सफेद रंग के होते हैं। सहजन की फलियाँ 6-18 इंच लम्बी, 6 शिराओं से युक्त, कत्थई या काले रंग की लगती हैं। इसमें पक्षसहित (श्वेत मरिच जैसे) बीज रहते हैं।
3. यह भारत में प्राय: सब जगह होता है।
4. फूलों के भेद से सहजन की दो जातियाँ होती हैं – श्वेत शिग्रु (सफेद-कड़वा सहजन) तथा रक्त शिग्रु (लाल रंग का, कम मिलनेवाला)। इनके अतिरिक्त नील शिग्रु का भी उल्लेख मिलता है, पर वह दुर्लभ है।
रासायनिक संघटन : इसके छाल में एक क्षारतत्त्व, दो राल पदार्थ, एक एसिड, म्यूसिलेज क्षार 8 प्रतिशत होते हैं। जड़ में बहुत कड़वी दुर्गन्धयुक्त उड़नशील तेल होता है। बीज स्वच्छ और गाढ़े तेल से भरे होते हैं।
सहजन के गुण : यह स्वाद में चरपरा, क्षारीय, पचने पर कटु तथा हल्का, रूक्ष, तीक्षण और गर्म होता है। यह त्वचा ज्ञानेन्द्रिय पर स्वेदकारी (पसीना लाने में सहायक : डायफ्रेटिक) मुख्य प्रभाव डालता है। यह पाचक, उदर-कृमिनाशक, वायुसारक, शोथहर, शुक्रवर्धक, हृदय-बलदायक, नेत्रों को लाभकर, व्रण को भरनेवाला, दाहशामक, पीड़ाहर, आर्तवजनक होकर मेद कम करता है।
सहजन के फायदे
1. बादी बवासीर : सहजन के पत्तों के स्वरस का सेवन करने से शुष्कार्श (बादी बवासीर) में लाभ होता है।
2. तिल्ली : तिल्ली (प्लीहा) में सहजन की छाल का काढ़ा बनाकर 2 रत्ती पीपल छोटी, 2 रत्ती चित्रक और 4 रत्ती सेंधा नमक मिलाकर देने से लाभ होता है।
3. विद्रधि : अन्दर के फोड़े (विद्रधि) में सहजन की जड़ की छाल खल में पीस छानकर मधु के साथ चटायें। इससे विद्रधि फूट या बैठ जाती हैं।
4. उदरकृमि : शोभांजन का काढ़ा बनाकर मधु के साथ सेवन करने से उदरस्थ कृमि नष्ट हो जाते हैं।
5. उदरशूल : शोभांजन के मूल के रस को कालीमिर्च, सज्जी और शहद मिलाकर देने से उदर-शूल में लाभ होता है।
6. नेत्ररोग : सहजन के स्वरस में मधु मिला अंजन की तरह लगाने से नेत्ररोग में लाभ होता हैं। पीड़ा होने पर इसके पत्तों का सेंक करें।
7. शिर:शूल : सहजन के फलों का नस्य लेने से टयूमर नष्ट होता और सिर का दर्द बन्द हो जाता है।
8. अचेतनता : सन्निपात ज्वर में जब रोगी बेहोश हो जाता है तो सहजन के मूल के रस में मरिंच मिलाकर नस्य दें। इससे रोगी होश में आ जाता हैं।
सहजन से सावधानी : गर्म-प्रकृतिवाले को इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।