[ ताजी कली से तैयार होती है ] – पुरुष जननेन्द्रिय पर इसकी प्रधान क्रिया होती है। सुजाक (gonorrhoea) और शुक्रमेह (spermatorrhoea) इन दोनों बीमारियों में ही इसका अधिक व्यवहार होता है।
सुजाक – इस बीमारी की नई और पहली अवस्था में हमलोग साधारणतः कैन्थरिस, कैनाबिस, मर्क्यूरियस, टेरिबिन्थ वगैरह कई दवाओं का प्रयोग करते हैं। सुजाक का प्रधान उपसर्ग – पेशाब में जल जाने की तरह जलन का रहना, थोड़ा पेशाब, पेशाब की राह से कभी खून निकलना, पतला या गाढ़ा धातु का स्राव, लिंग-मुण्ड का फूलना, दर्द, पेशाब की नली में दर्द, सुरसुरी, तकलीफ देने वाला लिंग का कड़ापन (chordee) प्रभृति।
इनमे आखिर वाला लक्षण – बहुत अधिक लिंग का कड़ापन, यह कैनाबिस और कैन्थरिस दोनों में ही अधिक निर्दिष्ट है। यदि इन दोनों से यह लक्षण न घटे, तो सैलिक्स नाइग्रा का प्रयोग करें। सैलिक्स नाइग्रा शुक्रमेह की बीमारी की ( पेशाब-पखाने के समय काँखने पर वीर्य निकल जाना व स्वप्नदोष होना ) बढ़िया दवा है। अगर इस बीमारी का कारण हस्त-मैथुन हो तो सैलिक्स नाइग्रा से और भी ज्यादा फायदा होता है। इसके अलावा अगर किसी की शक्ति घट जाय, स्त्री-संसर्ग की इक्छा बहुत प्रबल रहे, तो इसके प्रयोग से प्रबल इक्छा का ह्रास होगा। कमर में दर्द, इसी कारण से जल्दी-जल्दी चल न सकना और अण्डकोष का दर्द भी इससे घटता है।
स्त्री रोग – ऋतु के पहले और ऋतु के समय स्नायविक दर्द, डिंबकोष का दर्द, ऋतुस्राव के समय तकलीफ में भी इससे फायदा होता है।
मुंह और आँख की बीमारी – मुंह खासकर नाक की ठोर का लाल होना और फूलना, आँख लाल ( blood shot ), छूने और आँख हिलाने पर दर्द।
क्रम – 2x शक्ति, 10 से 30 बून्द लेने से रोग ठीक हो जाता है।