यह रोग गन्दगीपूर्ण वातावरण में रहने, दूषित खाद्य-पदार्थ खाने, दूषित पानी पीने आदि के कारण होता है । इस रोग में शीत के साथ प्रबल ज्वर, जीभ का लाल पड़ जाना, वमन, अतिसार, प्लीहा की वृद्धि, रक्त की कमी, बेचैनी आदि लक्षण प्रकटते हैं । रोगी के शरीर पर चमकीले लाल रंग के दाने निकल आते हैं जिनमें खुजली मचती है । गले में घाव-सा हो जाता है। जब रोग बढ़ जाता है तो ज्वर 110 डिग्री तक पहुँच जाता है, बेहोशी आ जाती है, रोगी प्रलाप करने लगता है और लाल रंग के दाने काले पड़ने लगते हैं जो कि एक गंभीर स्थिति है ।
एकोनाइट 3x, 30- यह रोग की प्रथमावस्था की दवा है । इसमें ज्वर के साथ बेचैनी और प्यास रहती है ।
बेलाडोना 6x- यह रोग की प्रतिषेधक औषध है । साथ ही, रोग की प्रथमावस्था में भी दी जा सकती है जबकि तेज ज्वर हो, गले में लाली हो, शरीर पर लाल रंग के दाने हों आदि ।
एपिस मेल 6x, 30x- शरीर के समस्त अंगों पर सूजन आ जाने पर इसका प्रयोग करना चाहिये
आर्सेनिक एल्ब 30, 200– शरीर का कमजोर पड़ते जाना, शरीर का ठण्डा पड़ते जाना, प्यास बढ़ना, बेचैनी, मृत्यु-भय आदि लक्षणों में दें ।
मर्कसॉल 30- मुँह से लार आना, साँस से बदबू आना, मूत्र-ग्रन्थियों में सूजन आ जाना- इन लक्षणों में दें ।
ब्रायोनिया 30- यदि दाने एकाएक बैठते दिखाई दें तो इसका प्रयोग करना चाहिये |
रसटॉक्स 30- दानों का रंग स्पष्ट न हो और बैंगनी रंग के प्रतीत होते हों तो इस दवा का प्रयोग लाभ करता है ।