स्नायविक अवसाद, हृत्पिण्ड की उत्तेजना, कोरिया, दाँत निकलते समय शिशुओं का टंकार व स्नायु की उत्तेजना, पेशियों का फड़कना, किसी भावी खतरे का भय, किसी विषय में मन को लगा न सकना, बेचैन नींद और डरावने स्वप्न, निशा भीति, अक्षिगोलक व दाहिनी आँख के ऊपर दर्द, मिचली, खट्टा डकार, हिचकी, अन्त्र में वायु भर जाना, स्वप्नदोष, ध्वजभंग, रोगी के मन में होता है कि उसका रोग कभी अच्छा नहीं होगा जैसे लक्षण में इस दवा से लाभ होता है।
Scutellaria lateriflora का निम्न लक्षण को देखते हुए इस्तेमाल करें :-
मानसिक लक्षण – किसी आने वाले खतरे का डर सताना, किसी चीज में ध्यान नहीं लगा सकना, उतावलापन।
सिर के लक्षण – सिर के आगे वाले भाग में दर्द होना, ऐसा लगना जैसे आँख बाहर को ढकेली जा रही हो। भर्राया हुआ चेहरा, डरावने सपने और अच्छा नींद नहीं होना। रात में इधर-उधर टहलना, डर लगना, अधकपारी, बार-बार पेशाब होना। सिर के आगे और पीछे दोनों भाग में दर्द होना। सिर दर्द का तेज आवाज, रौशनी और तेज गंध से बढ़ जाना।
आमाशय के लक्षण – खट्टी डकार आना, हिचकी, दर्द और मिचली होना जैसे लक्षण में scutellaria lateriflora से लाभ होता है।
पेट के लक्षण – गैस से पेट फूल जाना, पेट में भारीपन, दर्द, कुछ अच्छा नहीं लगना। हल्के हरे रंग का दस्त होना जैसे लक्षण में इसका उपयोग लाभकारी है।
पुरुष के लक्षण – ध्वजभंग और नपुंसकता, रोगी को ऐसा लगना कि वो कभी अच्छा नहीं हो पायेगा।
नींद के लक्षण – डरावने सपने देखना, डर से अचानक जाग जाना, रात में डर सतना जैसे लक्षण भी इसमें दीखते हैं।
अंगों के लक्षण – मांस-पेशियों का फड़कना, शरीर में कमजोरी और दर्द होना, दर्द का दुसरे अंगों में बदलते रहना, शरीर का कांपना, डंक मारने जैसा दर्द होना जैसे लक्षण में scutellaria lateriflora इस औषधि का सेवन करें।
सम्बन्ध – साइप्रिपी, लाइकोपस से तुलना किया जा सकता है।
मात्रा – Q और निम्न शक्ति से विशेष फायदा होता है।