परिचय : 1. इसे शरपुंखा (संस्कृत), सरफोंका (हिन्दी), बनतील (बंगला), उन्हाली (मराठी), शरपंखी (गुजराती), कमुविकवेलाई (तमिल), वेंपलि (तेलुगु) तथा टेफ्रीजिया पप्युरिया (लैटिन) कहते हैं।
2. सरफोंका का पौधा 2-3 फुट ऊँचा, झाड़ीनुमा हर वर्ष उत्पन्न होता है। सरफोंका के पत्ते 3-6 इंच लम्बे होते हैं, जिसमें कई (13-21) छोटे पत्रक रहते हैं। फूल लाल रंग के 3-6 इंच लम्बे डंठल पर लगते हैं। फली 1-2 इंच लम्बी तथा 6-10 बीजों से युक्त होती है।
3. लाल तथा सफेद रंग के फूलों के भेद से इसकी दो जातियाँ होती हैं।
4. यह समस्त भारत में, अधिकतर पथरीली भूमि में उत्पन्न होता है। सफेद जाति का पौंधा कम प्राप्त होता है।
रासायनिक संघटन : इसमें क्लोरोफिल, राल, मोम, क्वेर्सेटीन के समान एक पदार्थ, गोंद, कुछ एल्ब्यूमिन, रंजक-द्रव्य, एश (भस्म) 6 प्रतिशत होते हैं।
सरफोंका के गुण : यह स्वाद में कड़वा, कसैला, पचने पर कटु तथा हल्का, रूखा, तीक्ष्ण और गर्म होता है। इसका मुख्य प्रभाव पाचन-संस्थान पर यकृत प्लीहा रोगहर रूप में पड़ता है। यह शोथहर, चर्मरोगहर, कीटाणुहर, घाव भरनेवाला, रक्तशोधक, कफ-निःसारक, मूत्रजनक, गर्भाशय-उत्तेजक, रसायन, ज्वरहर, अग्निदीपक तथा विषहर है।
सरफोंका के उपयोग
1. गुल्मरोग : शरपुंखा का मूल, हरड़ और सेंधानमक समान लेकर 3 माशा चूर्ण खाने से गुल्मरोग एवं उदर-शूल दूर होता है।
2. प्लीहा : शरपुंखा की जड़ को मट्ठे के साथ पीसकर लेने से तिल्ली कितनी भी बढ़ गयी हो, निश्चित ठीक होती है।
3. दन्तरोग : इसकी जड़ से नित्यप्रति दातुन करने पर दाँतों का कोई रोग नहीं होता।
4. शस्त्रक्षत : किसी शस्त्र से कट जाने पर शरपुंखा के मूल को दाँतों से चबाकर बाँध देने से रक्त बन्द हो जाता है।
5. मूषक-विष : चूहे के काटने पर शरपुंखा के बीजों को मट्ठे में पीसकर दें।
6. चेहरे के दाग : सरफोंका के बीजों का लेप चेहरे के दाग पर लगाने से दाग चले जाते हैं।
7. स्किन प्रॉब्लम : सरफोंका के पत्तियों के रस के सेवन से खून साफ़ होता है और सभी प्रकार के स्किन प्रॉब्लम दूर हो जाते हैं।
8. स्तनों की गांठ : सरफोंका के जड़ को पानी के साथ पीसकर उसका लेप बनाकर स्तन पर लगाने से स्तन की गांठ ठीक हो जाती है।
9. दांत के कीड़े : सरफोंका के रस से दांत धोने पर दांतों के कीड़े मर जाते हैं और दर्द भी चला जाता है।
10. खांसी : सरफोंका के धुएँ को सूंघने से सुखी और बलगम दोनों तरह की खांसी ठीक हो जाती है।