यह एक प्रकार का तीव्र संक्रामक रोग है। जिसमें तीसरे दिन शरीर पर विशेष प्रकार के दाने निकल आते हैं । यह रोग अधिकतर बच्चों को होता है । इसका कारण भी एक विशेष प्रकार का कीटाणु होता है । एकाएक सर्दी लगकर बुखार चढ़ आता है। बच्चों के हाथ पाँव टेढ़े हो जाते हैं। कमर, सिर और मुख के स्थान पर दर्द होता है । कै, मितली और उबाकाइयाँ आती हैं । भूख कम लगती है। चेहरा गर्म, प्यास की अधिकता व जीभ मैली होती है । ज्वर के उतरते ही दाने निकल आते हैं । यह दाने 3-4 दिन में पानी वाले छाले बन जाते हैं । पाँचवें दिन यह छाले पक-कर फट जाते हैं या उनमें पीप पड़ जाती हैं और छालों के चारों ओर लाल रंग का घेरा सा बन जाता है। रोगी के शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है, 10-12 दिन के बाद (दानों के पक जाने पर) रोगी को तीव्र ज्वर 104 से 105 डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता है। चेचक के दाने हाथ-पाँव और मुँह पर अधिक तथा पहले निकलते हैं। इसके बाद ही बाकी शरीर पर निकलते है । दाने अलग-अलग अथवा आपस में मिले हुए होते हैं, 10-11 दिन में दाने मुरझाने लगते हैं और उन पर कालिमायुक्त अथवा भूरे रंग के खुरण्ड (19 वें दिन) उतरने लग जाते हैं और 1-2 मास तक उतरते रहते हैं। बाद में शरीर पर इन दानों के चिह्न शेष रह जाते हैं ।
चेचक का एलोपैथिक दवा
इस रोग की कोई विशेष चिकित्सा अभी तक ज्ञात नहीं हुई है, केवल रोगी के कष्ट कम करने का प्रयत्न किया जाता है। इस रोग से ग्रसित बच्चे को सल्फाडायजीन प्रथम मात्रा में 2 ग्राम दवा खिलायें । इसके पश्चात् प्रत्येक चौथे घण्टे पर 1 ग्राम की मात्रा में खिलाते रहें । चेचक के दानों में जलन और संक्रमण रोकने के लिए कार्बोलिक लोशन (1 में 40 शक्ति वाला) में स्पंज भिगोकर सारे शरीर को साफ करते रहें। यदि चेचक के दाने भली प्रकार न निकले हों तो रोगी को गर्म पानी में बिठायें । गरम पानी या गरम चाय के साथ 30 मि.ग्रा. कस्तूरी (Musk) खिलायें । ग्लिसरीन को तीन गुना गुलाब जल में घोलकर शुष्क दानों पर लगाते रहें, इससे खुरण्ड सरलता से उतर आते हैं। चर्म को नीम के क्वाथ (काढ़े) से साफ और शुष्क करके चन्दन का तेल अथवा फुरासिन आइण्टमेण्ट (इस्काय लैब कम्पनी) का लगाना भी लाभकारी है। ओरिसूल (सिबागैगी) दो टिकिया और सोडा-बाई-कार्ब एक ग्राम पीसकर ऐसी एक पुड़िया दिन में 2-3 बार पानी के साथ दें। प्रोकेन पेनिसिलीन 4 लाख यूनिट जैसे – क्रिसफोर (साराभाई कम्पनी) का इन्जेक्शन प्रतिदिन माँस में लगाना परम लाभकारी है अथवा राशिलीन (रैनबैक्सी कम्पनी) 100 से 250 मि.ग्रा. का इन्जेक्शन माँस में प्रत्येक 12 घण्टे बाद लगायें । रिडाक्सान (विटामिन सी) इन्जेक्शन 500 मि.ग्रा. (रोश कम्पनी) माँस में लगाने से चेचक का विष निकल जाता है । इन्जेक्शन के स्थान पर विटामिन सी की गोलियां, (टिकिया) भी खिलाई जा सकती हैं ।
• सल्फाडायजीन एक टिकिया, सेलिन (विटामिन सी) 500 मि.ग्रा. की आधी टिकिया (निर्माता : ग्लैक्सो) पीसकर ऐसी 1 मात्रा प्रतिदिन ताजा पानी से बच्चों को खिलाना भी लाभकारी है। यदि चेचक के दाने फटकर घाव बनने लग गये हों तो इस मरहम ‘नेबा सल्फ आइण्टमेण्ट’ (निर्माता : फाइजर) को लगायें अथवा इसी नाम से प्राप्य पाउडर घावों पर छिड़कें ।
• स्वस्थ बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए सायनामाक्स कैपसूल (साराभाई कंपनी) एक कैपसूल दिन में एक बार दें। बच्चों को 100 मि.ग्रा. सेलिन (विटामिन सी) के चार इंजेक्शन मांस में एक इंजेक्शन प्रत्येक चौथे दिन लगाएं। बच्चों को चेचक होने का डर हो, तब भी विटामिन सी की टिकिया अथवा इन्जेक्शन का आयु के अनुसार प्रयोग करें। चेचक के रोगी के बिस्तर पर नीम की हरी ताजी पत्तियाँ बिछायें। चेचक के संक्रमण, दानों की खुजली, पीप आदि को कम करने के लिए ट्राइसिन (मर्कशाप एण्ड जेम कम्पनी) 250 मि.ग्रा. के कैपसूल चेचक निकल आने के छठे दिन से 13वें दिन तक प्रत्येक 6 घण्टे बाद दिन में तीन कैपसूल पानी से खिलाते रहें। इसके प्रयोग से चेचक के कष्ट और रोग बढ़ने नहीं पाते हैं ।
डेटॉल 15 बूंद को कैलेमिन लोशन में मिलाकर रुई की फुरैरी से चेचक के दानों पर नर्मी से लगाते रहने से उनमें होने वाले दर्द, जलन और खुजली को आराम आ जाता है। (रोगी को दानों को खुरचने न दें तथा उसके बढ़े हुए नाखूनों को काट दें) । चेचक के दानों में, दर्द व खुजली कम करने के लिए डेटॉल 15 बूंद, मेन्थॉल 30 मि.ग्रा., दालचीनी का तेल आधी बूंद तथा नारियल का तेल 30 मि.ली. को मिलाकर सुरक्षित रख लें तथा रुई की फुरैरी से लगाते रहें। हाइड्रोजन-पर-ऑक्साइड को 2 गुना पानी में मिला लें । इससे रोगी का मुँह, जीभ, गला प्रतिदिन साफ कराते रहना चाहिए तथा शक्ति प्रदान करने वाले पेय यथा कच्चे नारियल का पानी, मौसम्मी अथवा मीठे सन्तरे का रस (जूस) रोगी को पिलाते रहना चाहिए। ठोस भोजन कदापि न दें ।
• सेप्ट्रान (बी. डब्ल्यू.) – यह दवा चेचक के दानों का जोर कम करने और पीप पड़ जाने पर उनको सैप्टिक (विषैलेपन) से बचाने के लिए विशेष प्रभाव रखती है।
• पेनिसिलीन क्रिस्टेलाईन जी 1 लाख यूनिट का (वयस्कों को) इन्जेक्शन प्रतिदिन माँस में लगाना उपयोगी है ।
• चेचक के जोश, संक्रमण, दानों की खुजली, पीप आदि को कम करने हेतु आयु तथा रोगानुसार टेट्रासाइक्लिन के कैपसूल खिलाना लाभप्रद है ।
• अन्य एण्टीबायोटिक की पेटेण्ट औषधियों में – सुबामायसिन, होस्टासायक्लिन, सिनर-मायसिन आदि का प्रयोग कराया जा सकता है। इनके प्रयोग से रोग की तीव्रता कम हो जाती है ।
पेनिसिलीन के एलर्जिक रोगियों में पेनिसिलीन का प्रयोग कदापि न करें।