इस लेख में हम भेंगापन की कुछ मुख्य होम्योपैथिक दवा के बारे में जानेंगे।
भगवान न करे कि भेंगापन ( squinted eye ) जैसा आँख का रोग किसी पुरुष या स्त्री को हो। जिंदगी जीने का सारा रस ही नीरस और चौपट हो जाता है। भेंगापन आदमी के लिए अकसर कहा जाता है “Looking here and seeing there” यानी नजरें कहीं और निशाना कहीं। यही Squint है, नजर का तिरछापन, टेढ़ी आँख और डॉक्टर के लिए स्ट्रेबिसमस ( strabismus )
सामान्यतौर पर व्यक्ति जिस किसी चीज को देखना चाहता है उसकी दोनों आँखें उसी दिशा में घूम जाती है। दोनों आँखें सदा समानांतर होती है। चाहे वो किसी भी डायरेक्शन में क्यों न देखे। लेकिन किसी-किसी लोग में दोनों आँखों का आपसी तालमेल ठीक नहीं बैठता। स्वस्थ आँख की दिशा तो वही होती है जहाँ उसका लक्ष्य होता है पर दूसरी आँख लक्ष्य से भटककर किसी और दिशा में चली जाती है। यही नजर का तिरछापन है। इसमें भेंगी आँख किसी भी दिशा में भटक सकती है, भीतर की तरफ, बाहर की तरफ, ऊपर या नीचे।
हरेक मामले में भेंगापन की तीव्रता भी अलग-अलग होती है। किसी में दोनों आँखों के कोण का फर्क 5 डिग्री से भी कम होता है, तो किसी में 45 डिग्री या इससे भी ज्यादा।
भेंगी आँख की दृष्टि धीरे-धीरे कम होती जाती है। एक उम्र के बाद अंधापन आ सकता है। भेंगापन के कारण बच्चा द्विनेत्रिय दृष्टि का सुख भी नहीं भोग सकता। वह अच्छा व्यवसायी, अच्छा खिलाड़ी नहीं बन सकता। उसकी उम्र के बच्चे उसकी हंसी उड़ाते हैं। बच्चा या तो दब्बू हो जाता है या रौब जमाने के लिए हिंसक प्रवृत्ति का हो जाता है और दोनों ही स्थितियाँ एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए ठीक नहीं है। फिर एक अच्छे कैरियर के लिए तथा जीवन साथी तलाश के लिए यह स्थिति एक बड़ा प्रश्न चिन्ह बनकर रह जाता है।
भेंगापन के प्रकार : – यह दो तरह का होता है :-
अधरंगी भेंगापन ( paralytic squint ) :- अधरंगी भेंगापन में नेत्र गोलक को घुमाने वाली 6 में से किसी एक या अधिक नेत्र मांसपेशी के काम न कर पाने से होता है। यह कई कारणों से हो सकता है।
- नेत्र मांसपेशी की तंत्रिका काम करना बंद कर दे।
- नेत्र मांसपेशी चोट खा बैठे।
इन दोनों स्थितियों में नेत्र मांसपेशी शक्तिहीन हो जाती है और नेत्र गोलक इसलिए उस दिशा में घुमने के काबिल नहीं रहता।
अधरंगी भेंगापन में आने वाली की परेशानी :- रोगी को एक चीज का दो-दो बिम्ब दीखने की परेशानी होती है। ऐसे में रोगी की गर्दन की मुद्रा विचित्र हो जाती है। वह सिर एक तरफ झुकाए रखता है। उसे आसपास रखी चीजों का अंदाज ठीक नहीं बैठता । कभी-कभी उससे टकरा जाता है। सीढ़ियां उतरना इसके लिए बेहद मुश्किल होता है। इन परेशानियों से बचने के लिए रोगी एक आँख बंद कर लिया करता है। यह रोग बचपन में नहीं, किसी भी उम्र में हो सकता है।
सहवर्ती भेंगापन ( concomitant squint ) :- इसमें सारे जो 6 नेत्र मासंपेशियां हैं उनकी तंत्रिकाएं एवं तंत्रिकाओं के मस्तिष्क में स्थित रिले-केंद्र बिलकुल सामान्य होते हैं। इसलिए नेत्र गोलक सक्रियता में कोई कमी नहीं होती। तब भी दोनों आँखों का ध्रुव मेल नहीं खाता इसलिए दोनों आँखें अलग-अलग बिंदु पर केंद्रित रहती है। दोनों का दिशा अंतर हर दिशा में एक जैसा ही रहता है यानि आँखों के बीच हमेशा एक निश्चित कोण का भेद होता है। सहवर्ती भेंगापन आँखों की फोकसीय प्रणाली ठीक से न पनप पाने के कारण होता है।
सहवर्ती भेंगापन के इलाज की पूरी गुंजाईश होती है। इसमें आँखों की जांच कर चश्मा दिया जाता है जिसे हर समय पहनना होता है। अभिभावकों को इस भम्र में नहीं पड़ना चाहिए कि बच्चा छोटा है और चश्मा नहीं लगा पायेगा। कुछ मामलों में तो चश्मा पहनने से ही भेंगापन सुधर जाता है। चश्मा लगाने के बाद भी भेंगापन की कोण 10 डिग्री से अधिक हो तो ऑपरेशन की जरूरत हो जाती है।
भेंगापन की होम्योपैथिक चिकित्सा ( Homopathic Treatment For Squint Eyes )
दोनों आँखों का आंतरिक भेंगापन, मांसपेशी में असंतुलन की हालत में – Gelsemium 30Ch की 2 बून्द दिन में 3 बार लेना है। इसमें रोगी सीधा देखता है तो उसे किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होती परन्तु अगल-बगल देखने में उसे परेशानी महसूस होती है। कभी-कभी चीजें धुंधली दिखाई देती है या एक के दो दिखाई देते हैं। आँखें फैली हो पर प्रकाश सहन न कर सके। एक पुतली फैली दूसरी सिकुड़ी हुई ऐसे में भी यह दवा लाभ देता है। बच्चे में ऐसी समस्या है तो आप एक चम्मच पानी में इस दवा की 2 बून्द डाल कर दिन में 3 बार दे सकते हैं।
Cyclamen 30 – Gelsemium से लाभ न मिलने पर हम Cyclamen 30 का इस्तेमाल करते हैं। इसमें एक आँख ठीक रहता है दूसरी नाक की तरफ केंद्रित हो जाता है या दोनों आँखें भी नाक की तरफ केंद्रित रहती है, मतलब convergent squint or esotropia जिसमे inwards या नाक की तरफ आँखें किन्द्रित हो जाता है और ऐसे लक्षण में Cyclamen उपयोगी है। इसके अलावा आंख के अनेक रोगों के लिये यह उत्तम है। आंख के सामने भिन्न-भिन्न रंग दिखाई देने लगते हैं, कभी पीला कभी हरा, कभी स्फुलिंग, कभी धुंआ, कभी प्रकाशमान वस्तु के चारों तरफ गोला-सा, काले धब्बे, आंख के सामने पर्दा, धुंध, एक चीज का दो दिखाई देना, आंख में जलन, खुजली-ये सब आंख के लक्षण इस दवा में हैं। ऐसे में हमें Cyclamen 30 की 2 बून्द दिन में 3 बार लेना है। बच्चे में ऐसी समस्या है तो आप एक चम्मच पानी में इस दवा की 2 बून्द डाल कर दिन में 3 बार दे सकते हैं।
अगर मस्तिष्क रोग के कारण भेंगापन हुआ है, मांसपेशी में फड़कन है तो ऐसे में hyoscyamus 6 की 2 बून्द सुबह-शाम और hyoscyamus 6 लेने के 15 मिनट बाद Belladonna 6 सुबह-शाम लेना है। अगर 6ch न मिले तो दोनों दवा की 30 ch ले कर सेवन कीजियेगा। hyoscyamus के आँख के लक्षण को आप देखेंगे तो पुतली फैली हुई, चटकीली, टकटकी बँधी हुई । रोगी को सभी चीजें लाल दिखाई पड़ती है। किसी चीज का सही आकार या एक की दो दिखाई पड़ना भी hyoscyamus का लक्षण है।
आंतरिक भेंगापन, दाहिनी आँख का भेंगापन, माँसपेशी की शक्ति में कमी ऐसे में Alumina 30 की 2 बून्द दिन में 3 बार। आँखों के सम्बन्ध में Alumina के अन्य लक्षण हैं कि सब चीजें पीली दिखायी देती है। आँखें ठंडी मालूम पड़ती है । पलक भारी हों, जलन और दर्द करें । पलक मोटी हों, ऊपरी पलक का पक्षाघात, वक्र दृष्टि अर्थात गोलाकार दिखाई दे तो भी Alumina लाभ देता है। आंतरिक भेंगापन में शुरू में Alumina 30 और बाद में hyoscyamus 30 दिया करें।
किसी-किसी केस में भेंगापन कभी-कभी ही हुआ करती है, किसी खास मौसम में या किसी खास कारण से तो हमें cicuta virosa 30 का इस्तेमाल करना है। आँखों के सम्बन्ध में cicuta virosa के अन्य लक्षण हैं कि पढ़ते समय अक्षर लोप हो जायें । पुतली फैली हुई, चीजें पीछे हटें, निकट आयें और एक की दो दिखाई दें, आँखों का पथरा जाना, कभी-कभी आँखों के सामने रखी चीज का एकदम से नजर न आना जैसे लक्षण में cicuta virosa लाभ देता है।
भेंगापन जिसमे आँखें धंसी हुई, Eyeball बाहर निकली हुई प्रतीत होती है उसमे Stramonium 30 लाभ देता है। Stramonium के आँखों के अन्य लक्षण में रोगी रौशनी में बैठे हुए भी कहता है कि कमरे की लाईट जला दो, रोगी को सभी छोटी-छोटी चीजों का बड़ा दिखाई देना, तिरछा दिखाई देना, रोगी को सारी चीजें काली नजर आती हैं, इस तरह के लक्षण में भी Stramonium लाभदायक है।