यह औषधि अनेक हिस्टीरिया, स्नायविक लक्षण और स्नायुशूल जैसे उपसर्गों, विकारयुक्त हृदय सम्बन्धी रोगों में प्रयोग की जाती है।
स्नायविक हृद्स्पन्दन, दमा जैसे लक्षण, ठण्डे हो जाने पर सुन्नपन, जरा सी मेहनत करने पर श्वास फूल जाना। सकम्प प्रलाप के कारण होने वाली अनिद्रा। ऐसा लगता है जैसे मेरुदण्ड से पानी चू रहा हो। सुबह उठते ही आलस का भाव, नाक से लसीला, पीला श्लेष्मा निकलना। जोड़ने और लिखने में गलतियाँ , करना, आमाशय से गैस-युक्त डकारें, निरंतर थूक निगलते रहना, गले में बलगम जमा होना, दम घुटने जैसी अनुभूति, पेशाब में तेलयुक्त टुकड़े, पेट भारी हवा से फूला हुआ। स्त्रियों को डिंबग्रंथियों का स्नायुशूल, रजोनिवृत्ति कालीन आवेश इत्यादि लक्षणों में इस औषधि से लाभ होता है।
नाड़ी कभी तेज कभी बहुत सुस्त चलना, थोड़े से मेहनत का काम करने पर सांस फूल जाता है। दिल में किसी रोग के कारण सांस लेने में परेशानी होना, बाईं तरह के हाथ में सुन्नपन, दर्द और भारीपन महसूस होना। ऊपर के सभी लक्षण में सुम्बुल फेरूला सुम्बुल के सेवन से लाभ होता है।
सम्बन्ध – मास्कस, असाफी।
मात्रा – इस औषधि का मूलार्क या 3 शक्ति का इस्तेमाल ज्यादा अच्छा रहता है।