Syphilinum का व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) सिफिलिस के दब जाने से होने वाले रोग – यह सिफिलिस के मवाद से बना नोसोड है। प्राय: देखा जाता है कि सिफिलिस (गर्मी) में त्वचा पर जो फोड़े आदि हो जाते हैं उन्हें पारे से बनी हुई दवाओं से दबा दिया जाता है। ये घाव ठीक नहीं होते, इनका विष शरीर के भीतर दब जाता है, और इन रोगियों को गले के रोग या त्वचा के अन्य प्रकार के रोग होने लगते हैं। जब तक चिकित्सक को पता नहीं होता कि रोगी को सिफिलिस हुई थी तब तक वह उसका अपनी समझ से सुनिर्वाचित औषधि से इलाज करता रहता है, परन्तु रोग ठीक होने में नहीं आता। जब अचानक या खोद-खोद कर पूछने पर उसे पता चलता है कि रोगी को सिफिलिस हुई थी, तब रोग की जड़ उसके हाथ में आ जाती है। डॉ. एलन लिखते हैं कि जो रोगी सिफिलिस से पीड़ित हैं, या जिन्हें सिफिलिस (गर्मी) का घाव हो चुका है और बाहर के लेप आदि से जिन्होंने इलाज कराया है, उन्हें सालों गले या त्वचा के रोग सताते रहते हैं।
ऐसे रोगियों को syphilinum औषधि से विशेष लाभ होता है। डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि जब कहने को सिफिलिस वाह्य-लेपों से दब गया होता है और उसका कोई प्रत्यक्ष चिन्ह नहीं दीखता, घाव मिट जाता है, तूफान निकल जाने के बाद कमजोरी आदि उसके अवशेष रह जाते हैं-अवशेष भी कैसे-रोगी कमजोर होने लगता है, टाइफॉयड आदि कोई बीमारी आ घेरती है तो पनप नहीं पाता, नींद नहीं आती, सिर-दर्द सताने लगता है-तब syphilinum की एक मात्रा देने से प्राय: दबा हुआ रोग उभर आता है, गले के घाव, फोड़े आदि निकल पड़ते हैं, और रोगी इनके निकलने पर तन्दुरुस्त होने लगता है, कमजोरी जाने लगती है, नींद आने लगती है, दर्द कम होने लगता है। इस से भी स्पष्ट है कि वाह्य-लेपों से रोग गया नहीं था, दबा था, नहीं तो अब उभर क्यों आता। इस दवा से दबा रोग उभर कर रोग के अन्य लक्षण जहां ठीक हो जाते हैं, वहां ये दबे हुए लक्षण उभर आने के बाद दबने के बजाय मिट जाते हैं।
(2) खांसी, दमा, स्नायु-पीड़ा, हड्डियों में दर्द आदि की रात को वृद्धि – सब प्रकार के लक्षण दिन ढलते ही शुरू होने लगते हैं, और सूर्योदय के साथ समाप्त होते हैं। खांसी शाम से शुरू होती है, रातभर चलती है, सवेरे हट जाती है; दमा सूर्य के ढलते ही जाग जाता है, रातभर परेशान करता है, सुबह शान्त हो जाता है; स्नायु-दर्द तथा हड्डियों के दर्द का भी यही किस्सा है। सिफिलिस के रोगियों को अक्सर रीत को हड्डियों में दर्द हुआ करता है। रात को रोग बढ़ने का यह लक्षण इतना प्रबल और निश्चित है कि रोगी रात का नाम लेते ही डरता है। डॉ चौधरी अपनी ‘मैटीरिया मेडिका’ में लिखते हैं कि रोगी के रात से डरने का लक्षण इतना प्रधान है कि ज्यों-ज्यों रात के आने में घंटे पर घंटा, मिनट पर मिनट बीतता है, त्यों-त्यों उन्होंने रोगी को आनेवाले लक्षणों के भय के कारण कांपते देखा है। रात का अन्धेरा उनका महान् शत्रु है। प्राय: ये लक्षण सिफिलिस के रोगी में पाये जाते हैं, परन्तु अगर रोगी में सिफिलिस का कोई चिन्ह न भी मिले, तो भी रोग की रात में वृद्धि के लक्षण पर syphilinum औषधि अपूर्व काम करती है।
(3) इसके लक्षण सिर्फ सिफिलिस के साथ ही बंधे हुए नहीं हैं – यह समझना भूल है कि इस औषधि के लक्षण उन्हीं रोगियों में प्रकट होते हैं जिन्हें सिफिलिस है या हो चुका है। किसी भी रोग में उक्त प्रकार के लक्षण मिलने पर यह औषधि लाभ करती है-सिफिलिस हुई हो या न हुई हो। यह बात ठीक है कि सिफिलिस के रोगी को अगर अन्य सुनिर्वाचित औषिधयों से लाभ न हो, तो इस से लाभ हो जाता है।
(4) सोकर उठने के बाद भयंकर कमजोरी – रोगी जब सोकर उठता है तो उसे शारीरिक तथा मानसिक कमजोरी महसूस होती है, ऐसी कमजोरी कि रोगी मर जाना अच्छा समझता है। उसे रात भी इसीलिये भयावह लगती है क्योंकि उसे मालूम होता है कि रात बीतने के बाद सवेरे नींद से उठने पर उसका क्या हाल होगा। सोने के बाद लक्षणों का बढ़ना लैकेसिस में भी पाया जाता है।
(5) रात को सिर-दर्द के कारण नींद नहीं आती – जब रोगी को सिर दर्द के कारण रात भर नींद न आये, वह बेचैन रहे, लेट न सके, घूमता रहे, तब इस से लाभ होता है। तेज सिर-दर्द में घूमते रहना इस औषधि का मुख्य-लक्षण है। सिर-दर्द 4 बजे शाम से शुरू होता है, रातभर रहता है।
(6) दोनों कनपटियों से दर्द समानान्तर चलकर सिर के पीछे के हिस्से को जाता है (Linear headache) – ऐसा सिर-दर्द जो सिर की दोनों कनपटियों से शुरू होकर रेखा की एक सीध में समानान्तर चल कर पीछे की तरफ़ एक कान से दूसरे कान तक जाये, रात भर रहे, उस में यह उपयोगी है।
(7) दर्द धीरे-धीरे बढ़ता, धीरे-धीरे घटता है – हम सल्फ्यूरिक ऐसिड के प्रकरण में पहले लिख आये हैं कि स्टैनम, प्लैटिना और सिफ़िलीनम का दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है और धीरे-धीरे घटता है।
(8) फोड़े-फुन्सियों का एक-दूसरे के बाद लगातार निकलते रहना – रोगी को फोडे-फुन्सी लगातार होते रहते हैं, एक-दूसरे के बाद आते रहते हैं, उनका कहीं अन्त नहीं होता। फोड़ों से भरा शरीर इसका विशेष लक्षण है।
(9) शराब के लिये प्रबल इच्छा को दूर करता है – डॉ क्लार्क लिखते हैं कि ग्रीक लोगों का शराब का देवता बाक्कुज तथा काम की देवी वीनस का निकट का संबंध है, शराबी कामी होता है, कामी शराबी होता है। सल्फ़र, सलफ्यूरिक ऐसिड तथा सिफिलीनम शराब पीने की इच्छा को दूर करते हैं। एसरम से भी शराब पीने की उत्कट इच्छा दूर होती है।
(10) प्रदर का इतना स्राव होता है कि टांगों तक बह जाता है – प्रदर का इतना स्राव बहता है कि कपड़ा सोखकर एड़ी तक बह जाता है। एलूमिना में भी यह लक्षण है। यह रोग syphilinum से दूर होता है।
(11) सिर के बाल झड़ने लगते हैं – सिर के बाल झड़ने के लक्षणों में syphilinum से लाभ होता है।
(12) कन्धे के जोड़ों में गठिये के दर्द को दूर करता है
(13) रोगी पहाड़ पर ठीक रहता है – इसका रोगी पहाड़ पर ठीक रहता है, मेडोराइनम का रोगी समुद्र-तट पर ठीक रहता है।
(14) वर्षों पुराना कब्ज दूर करता है – मल-द्वार में ऊपर की तरफ एक तरह की ‘सिकुड़न’ (Stricture or contraction) होती है जिस से कब्ज बनी रहती है।
पाख़ाने के रास्ते के इस प्रकार सिकुड़ा होने के अनुभव के कारण कब्ज होने में syphilinum औषधि उपयोगी है।
मल-द्वार की ‘सिकुड़न’ के कारण कब्ज में मुख्य-मुख्य होम्योपैथिक औषधियां
सिफिलीनम – ऐसा अनुभव होता है कि मल-द्वार ऊपर की तरफ़ सिकुड़न से बंधा हुआ है।
चेलिडोनियम – सिकुड़न के साथ मल-द्वार में अत्यन्त खुजली होती है।
ग्रैफ़ाइटिस – मल-द्वार के किनारे या अन्दर की तरफ़ फटने (Fissure) के कारण सिकुड़न अनुभव होती है। जब भी रोगी पाखाना जाता है, अत्यन्त काटने वाला दर्द होता है। पाख़ाने के बाद घंटों सिकुड़न का अनुभव होता है। मल-द्वार के फटने और उसमें सिकुड़न के कारण ही मल नहीं उतरता।
लैकेसिस – इस औषधि में मल-द्वार की सिकुड़न और कब्ज का कारण गुदा-प्रदेश में बवासीर के अनेक मस्सों का होना है जो बाहर निकलें होते हैं।
लाइकोपोडियम – गुदा-प्रदेश की सिकुड़न के कारण टट्टी आना असंभव-सा हो जाता है। टट्टी जाने की इच्छा होते ही मल-द्वार में सिकुड़न होने लगती है।
मेजेरियम – सिकुड़न के कारण गुदा-प्रदेश में ही नहीं, गुदा और जननेन्द्रिय के बीच के भाग-सीवन-में भी दर्द होता है जो मूत्र-प्रणाली तक पहुंचता है। इस दर्द के कारण पाखाना नहीं उतरता।
नैट्रम म्यूर – गुदा-द्वार की ‘सिकुड़न’ (Contraction of rectum) की शिकायतों को दूर करने की यह महौषध है। पाखाना जाने के बाद मल-द्वार में जलन और खराश होती है। मल खुश्क, कड़ा होता है और फटे हुए गुदा में से टूट-टूट कर गिरता है। रोगी जोर लगाता है, उस से खून निकलता है।
नाइट्रिक ऐसिड – पाखाना जाने के बाद घंटों तक सिकुड़न होती रहती है। गुदा के फटे हुए स्थान से पनीला-स्राव रिसता रहता है। गुदा में इस कदर दर्द होता है मानो किसी ने छुरी से काटा हो।
नक्स वोमिका – आंतों के क्रियाशील न होने के साथ मल-द्वार की सिकुड़न का संबंध होता है। पाख़ाने की हाजत होती है परन्तु मल निकलता नहीं है, थोड़ा-बहुत निकलता है, तो भी यही अनुभव होता रहता है कि अभी कुछ बाकी रह गया।
(8) शक्ति तथा प्रकृति – Syphilinum औषधि की उच्च-शक्ति 200, 1000 दी जाती है, बार-बार नहीं दी जाती। रात को-सूर्यास्त से सूर्योदय तक रोग बढ़ता है, रोगी न ज़्यादा ठंड, न ज़्यादा गर्मी बर्दाश्त करता है। पहाड़ पर तबियत ठीक रहती है।