[ क्यूबा देश के जीवित मकड़े से टिंचर और ट्राइटुरेशन औषध तैयार होता है ] – जैसे चेचक में ( वेरियोलिनम ); खसड़ा में ( माॅर्बिलिनम ); हैजा में ( कूप्रम ) काम करती है, उसी तरह प्लेग रोग में – यह tarantula cubensis फायदा करती है।
प्लेग की तरह लरछुत और सांघातिक बीमारी दूसरी नहीं है, यह एक तरह का साक्षात् यम है, प्लेग जब बहुव्यापक रूप में फैलता है, उस समय शहर, गॉंव मानो जन-शुन्य बना देता है, उस गॉंव या शहर के रहने वाले प्राण-भय से दूसरी जगह भाग जाते हैं। गॉंव में किसी को भी यह बीमारी होते-देखते ही प्रत्येक गृहस्थ को घर के चारों ओर आग जलाना, भोजन और पानी, सब गरम कर पीना, ज्यादा मात्रा में निम्बू का रस पीना, मृत जीव-जन्तु को दूर मिट्टी में गाड़ देना, खाने की चीजों पर मक्खी न बैठने देना, इन विषयों पर लक्ष्य रखना कि घर में चूहा न घुसने पाये और tarantula cubensis 30 शक्ति, रोज या दो-तीन दिन के अन्तर से 1 मात्रा सेवन करना, ये नियम पालन करते रहने पर सम्भवत: बीमारी से बहुत छुटकारा मिल सकता है।
इग्नेसिया बीन – बहुतों का कहना है कि उसके बीच वाले भाग में छेदकर, उसमें सूता पहना, हाथ या कमर में पहनने पर प्लेग-रोग का आक्रमण नहीं हो सकता। यह भी प्रतिषेधक रूपमें क्रिया करती हैं। आयोडम – टिंचर से 2री शक्ति तक प्लेग की उत्कृष्ट दवा है।
Operculina turpithum – यह दवा प्लेग, ज्वर-विकार और कमजोर करने वाले उदरामय में व्यवहृत होती है । इसका लक्षण – लसिका ग्रंथियाँ खूब बड़ी और कड़ी हो जाती है, फ़ोड़ा खूब ‘धीरे-धीरे’ पकता है । विकार में – रोगी बहुत बेचैन होता है, लगातार बकता है, बिछावन से उठकर लगातार भागने की चेष्टा करता है । अतिसार में – हैजा की तरह बहुत ज्यादा परिमाण में पानी की तरह पतले दस्त आते हैं, जिससे नाड़ी दब जाती है । प्लेग में – ज्वर गाँठों का फूलना, भूल बकना, विकार-भाव इत्यादि इसके समस्त लक्षण हैं। इसलिये इस बीमारी में इससे फायदा होता है ।
Tarantula cubensis – प्लेग-रोग के आक्रमण से रक्षा करता है और रोग होने पर उसको आरोग्य करता हैं – ये दोनों ही शक्तियाँ इसमें हैं । इस विषय में डॉ बोरिक का कहना है – Bubonic plague, as a curative and preventive specially during the period of invasion अर्थात् गाँठ वाला प्लेग – इसमें यह आरोग्यदायक और प्रतिषेधक दोनों ही है, खासकर आक्रमणावस्था में इसकी बहुत क्रिया होती है।
रक्त विषाक्त होकर और भी कितनी ही बीमारियाँ – जैसे, डिप्थीरिया, नाना प्रकार के भीषण यन्त्रणादायक प्रदाह, सांघातिक प्रकार का फोड़ा, विष-व्रण प्रमृति बहुत लाल रंग के रहते हैं, जलन होती है, डंक मारने की तरह दर्द होता है और पकता है तथा बाघी और कार्बंकल, गैंग्रीन (सड़ने वाले घाव), छाती के कैंसर, वृद्धों का जख्म इत्यादि का यह महौषध है। इस दवा के सेवन से मृत्युकाल की मृत्यु-यन्त्रणा घट जाती है । विस्फोटक मेें – पहले एक व्रण होकर फूल उठता है, जल्द ही वह नीली आभा लिये लाल रंग धारण करता है। इसके बाद बर्रे काटने से पैदा हुए चकत्ते की तरह एक बड़ा जख्म हो जाता है।
अंगुल बेड़ा और कार्बंकल – इसमें रोग वाली जगह नीली आभा लिये लाल हो जाती हैं और वहाँ भयानक जलन, यन्त्रणा और डंक मारने की तरह दर्द रहता है । इसके अलावा – एकोनाइट और आर्सेनिक की तरह शरीर में जलन, छटपटी, तेज प्यास, ज्वर प्रभृति कई आनुषंगिक लक्षण भी रहते हैं, पर इससे विशेष उपकार न होगा, टैरेण्टुला ही इसकी प्रधान दवा है। वृद्धोंका जख्म; गैंग्रीन तथा अन्यान्य दूषित फोड़ों में यह लक्षण रहने पर टैरेण्टुला का प्रयोग करना चाहिये।
टैरेण्टुला हिस्पाना ( tarantula hispania ) – यह एपिलेप्टि- फॉर्म हिस्टीरिया में विशेष लाभदायक है। डॉ० आर्नड का कथन है कि मैंने एक हिस्टेरो एपिलेप्सी के रोगी की बहुत दिनों तक चिकित्सा की, पर कुछ भी लाभ न हुआ । अन्त में टैरेण्टुला के प्रयोग से दी-तीन दिनों में ही बीमारी आरोग्य हो गयी, इस जाति की बीमारी का फिट बहुत समय तक स्थायी होता है, अथवा खूब जल्दी-जल्दी फिट आता है।
टैरेण्टुला क्युबेन्सिस – आर्सेनिक, पाइरोजेन, एन्थ्रासिनम, एचिनेशिया, एपिस, बेलेडोना, क्रोटेलस प्रभृति के सदृश दवा है ।
क्रम – 6, 30 शक्ति।