टैरेन्टुला हिस्पैनिका – मकड़ी का विष
Tarentula Hispanica के व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) बेचैनी और घबराहट (Restlessness and anxiety) – डॉ कैन्ट लिखते हैं कि मकड़ी के विष से बनी tarentula hispanica औषधि के ‘व्यापक-लक्षण’ (General symptoms) बेचैनी तथा घबराहट है। यह बेचैनी रोगी के हर अंग में दिखलाई देती है – कभी मन में बेचैनी, कभी सारे शरीर में बैचेनी, कभी शरीर के किसी अंग में, कभी पेट में बेचैनी। रोगी अपने हाथ, पैर, गर्दन को हिलाता रहता है। डॉ. कैन्ट लिखते हैं कि रोगी के लक्षण आर्सेनिक के-से होते हैं-एक जगह टिकता नहीं, एक कुर्सी पर बैठता है, उसे छोड़ दूसरी पर जा बैठता है, एक बिस्तर से दूसरे बिस्तर पर जाता है, कमरे में घूमता रहता है, कहीं टिक कर नहीं बैठ सकता।
(2) बेचैनी में टैरेन्टुला और आर्सेनिक की तुलना – Tarentula hispanica में अत्यन्त बेचैनी आर्सेनिक की तरह पायी जाती है, आर्सेनिक की तरह ही यह गहराई में जाने वाली औषधि है। जब आर्सेनिक के लक्षण स्पष्ट दीख पड़े और उस से लाभ न हो, तब इस से लाभ होता दिखाई दिया है। घबराहट, बेचैनी, हाथ-पैर की लगातार गति, गर्दन तथा सिर की हरकत, रात को सोने के लिये जाने से पहले अंगों में बेचैनी इस के लक्षण हैं।
(3) बैचेनी में सिर को तकिये पर इधर-उधर हिलाना – रोगी के हर अंग में हरकत के लक्षण पर एक रोगी को कब्ज में यह दवा दी गई और कब्ज ठीक हो गया। डॉ. कैन्ट अपनी ‘न्यू रेमेडीज़’ में लिखते हैं कि एक रोगी को सख्त कब्ज थी, तेज दवाओं से भी उसे पाखाना नहीं होता था। अपनी परेशानियों में वह लेट कर तकिये पर सिर इधर-उधर हिलाता था और कराहता था, कहता था-ओह, मेरा क्या होगा। तकिये पर इस प्रकार सिर की हरकत के लक्षण पर उसे यह औषधि दी गई और उसके बाद उसका कब्ज ही जाता रहा। इस लक्षण का भी मुख्य-आधार घबराहट और बेचैनी में अंगों का हिलाना ही था।
(4) हृदय में घबराहट; एन्जाइना पेक्टोरिस – जैसे रोगी के मन में और शरीर में बैचेनी होती है, वैसे यह बेचैनी हृदय में घबराहट का रूप ले लेती है। हृदय जोर-जोर से गति करने लगता है, ऐसा धड़कता है जैसे डर के मारे हृदय धक-धक किया करता है। रोगी डरा न भी हो, तो भी हृदय जोर-से धक-धक करता है। इसमें ‘एन्जाइना पेक्टोरिस’ (Angina pectoris) के भी लक्षण पाये जाते हैं, यह रोग भी इस से ठीक हुआ है।
(5) हिस्टीरिया के लक्षण; संगीत से लक्षणों में कमी; रोगी अपने को तथा दूसरों को चोट पहुंचाता है – Tarentula hispanica औषधि में हिस्टीरिया के-से लक्षण पाये जाते हैं। रोगी हँसता है, उछलता है, कूदता-फांदता है; नाचता है। ये सब हिस्टीरिया के-से लक्षण हैं। गाने से, संगीत से उसके लक्षणों में कमी आ जाती है। संगीत का उस पर विशेष प्रभाव दिखाई पड़ता है। कभी-कभी संगीत सुनकर वह उत्तेजित हो जाता है। प्राय: संगीत से लक्षणों में कमी आती है, परन्तु कभी-कभी लक्षण बढ़ भी सकते हैं। संगीत उसे पागल बना देता है। हंसते-गाते-उछलते हुए रोगी को कभी पागलपन का दौर भी पड़ जाता है, वह अपने को ही पीटने लगता है, कपड़े फाड़ डालता है। इस पागलपन में वह दूसरों पर भी चोट कर सकता है।
डा० फैरिंगटन ने इसी प्रकार के एक पागल के इस औषधि से ठीक होने का उल्लेख किया है जिसने अपनी माता के किसी बात पर जरा-सा एतराज करने पर घड़ा उठाकर उसके सिर पर दे मारा था। खैरियत हुई कि वह घड़ा उसकी माता के सिर पर न लगकर एक दर्पण पर जा टकराया जिस से वह चूर-चूर हो गया, नहीं तो उसकी माता का ही सिर फूट जाता। इस औषधि से वह ठीक हो गया।
(6) कम्पन, झटकन, ऐठन, बांयटा, तांडव-नृत्य – हिस्टीरिया प्रबल रोग है, उसके मृदु रोग में शरीर की मांस-पेशियों में कंपन होता है, हाथ-पैर हिलते रहते हैं, झटके लगते हैं, ऐंठन पड़ती है, बांयटा पड़ जाता है और इस प्रकार के उग्र-रोग में रोगी बिना होश-हवास के अजीब तरह से हाथ-पैर की नाचने की-सी हरकत करता है। डॉ. नैश का कहना है कि मांसपेशियों की फुदकन और झटकन में इस औषधि को सदा ध्यान में रखना चाहिये।
(7) जब रोगी की तरफ ध्यान जाता है तब हिस्टीरिया का आक्रमण होता है या वह रोगी होने का बहाना करता है – जब तक रोगी की तरफ कोई ध्यान नहीं देता तब तक वह भला-चंगा बना रहता है, जब उसकी तरफ ध्यान केन्द्रित किया जाता है, उसे मालूम होता है कि उसे देखा जा रहा है, तब उसके शरीर की मांसपेशियों में फुदकन होने लगती है। इसी से रिपर्टरी में इसका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि रोगी रोग का बहाना करता है। असल में चंगा होते हुए ही नहीं, रोगी रोगी होते हुए भी चंगा होने का बहाना कर सकता है। डॉ. टायलर एक लड़की का उल्लेख करते हुए लिखती हैं कि वह कोरिया से पीड़ित थी। जब डॉ रोगियों को देखने के लिए जाता था वह भली-चंगी नजर आती थी, परन्तु ज्योंही वह देखती थी कि उसे कोई देख नहीं रहा वह उठकर किताबें लेकर फाड़ने लगती थी और जो खिलौने उसके हाथ में आते थे उन्हें तोड़ डालती थी। रोगिणी कभी-कभी बेहोशी का बहाना करके पड़ जाती है और सब लोगों के चले जाने पर छिप-छिप कर देखती है कि लोगों पर उसका क्या प्रभाव पड़ा।
(8) लक्षणों का प्रतिवर्ष या निश्चित समय पर प्रकट होना; मलेरिया-ज्वर में पसीना न आना – समय-क्रम (Periodicity) इस औषधि का विशेष लक्षण है। कई लक्षण प्रतिवर्ष निश्चित समय पर प्रकट होते हैं, उनमें इस औषधि से लाभ होता है। कई रोग प्रतिवर्ष तो नहीं, परन्तु निश्चित समय पर प्रकट होते हैं। मलेरिया-ज्वर में अगर बुखार निश्चित समय पर आये, शरीर के अंगों में बेचैनी हो, हड्डियों में दर्द हो, घबराहट हो-अगर इस ज्वर में पसीना न आये-तब इससे लाभ होता है।
(9) पुरुष तथा स्त्री में विषय-भोग की उत्कट इच्छा – इस औषधि में ‘उत्कट-इन्द्रिय-संवेदन’ (Hyperesthesia) हो जाता है, जरा-सा भी छू जाने से उत्तेजना हो जाती है, इसलिये पुरुष तथा स्त्री दोनों में कामोत्तेजना हद से बाहर चली जाती है, न पुरुष अपनी काम-वासना पर काबू पा सकता है, न स्त्री। स्त्री के कामोन्माद (Nymphomania) को शान्त करने के लिये इस से लाभ होता है।
(10) हर बात में जल्दी की इच्छा – डॉ० मैकाडोनो ने एक लड़की का उल्लेख करते हुए लिखा है कि उसके मानसिक-रोग के लक्षण में जल्दबाजी ने इतना घर कर लिया था कि वह हर काम में जल्दबाज़ी दिखलाती थी। चलती थी तो जल्दी-जल्दी, तेजी से; हर समय काम में लगी रहती थी, ऐसा लगता था कि कोई भूत उस में घुस गया है जो उसे चैन से बैठने नहीं देता। वह अपने पिता से कहती थी कि घर में निठल्ले मत बैठो, भागते रहो, स्वयं भी हर समय तनी रहती थी। सोती तक नहीं थी। हर समय काम, हर काम में जल्दी और तेजी। उसे कई औषधियां दी गई, किसी से ठीक न हुई। अन्त में, डॉ० कैन्ट को उसके लक्षण लिखकर पूछा गया कि उसे क्या औषधि दी जाय। हर बात में जल्दी के लक्षण के आधार पर उन्होंने तार दिया कि लड़की को tarentula hispanica 1OM दिया जाय। इसके देते ही रागिणी का नक्शा बदल गया। कहां सब सोचते थे कि वह पागलखाने में जा पहुंचेगी, कहां वह स्वस्थ होकर घर का काम-काज करने लगी।
(11) जलनवाले दूषित घाव, कार्बंकल, गैंग्रीन आदि त्वचा के रोग में टैरेन्टुला क्युबेनसिस उत्तम है – डॉ० नैश लिखते हैं कि हम सोचा करते थे कि सड़े, दूषित घावों में जिन में जलन हुआ करती है आर्सेनिक और ऐन्थ्रेसीनम ही दो दवाएं हैं, परन्तु अनुभव ने सिद्ध कर दिया कि ऐसे घावों में टैरेन्टुला क्युबेनसिस आश्चर्यजनक लाभ करता है। डॉ० बेनथैक का कहना है कि किसी भी फोड़े या घाव में जिस में अत्यन्त दर्द हो, टैरेन्टुला क्युबेनसिस उनके हाथ में अमोघ-शस्त्र का काम करता है। उनका कहना है कि पहले वे सोचा करते थे कि दूषित, जलन वाले घावों में आर्सेनिक और ऐन्थ्रेसीनम ही एकमात्र दवाएं हैं, परन्तु अब उन्होंने अनुभव किया है कि इन घावों में टैरेन्टुला की 30 शक्ति की मात्रा उक्त दोनों से भी अच्छा काम करती है। टैरेन्टुला हिस्पैनिका और क्युबेनसिस दोनों मकड़ी के विष से बनी औषधियां हैं।
(12) शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (रोगी ‘सर्द’-Chilly-प्रकृति का होता है)