टैरिबिन्थिना – तारपीन का तेल
Terebinthina का व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) इसका मुख्य-प्रभाव गुर्दे, मूत्राशय तथा मूत्र-नली पर है – Terebinthina के प्रभाव का मुख्य-क्षेत्र गुर्दे, मूत्राशय तथा मूत्र-नली है। गुर्दे, मूत्राशय तथा मूत्र-नली की शिकायतों के साथ कमर में दर्द भी रहता है। ये सब लक्षण बरबेरिस में भी पाये जाते हैं, परन्तु इनमें भेद यह है कि टैरिबिन्थिना में मूत्र बूंद-बूद करके निकलता है, और जलन के साथ निकलता है, और मूत्र में रुधिर की मात्रा बरबेरिस की अपेक्षा अधिक होती है। अगर पेशाब को शीशी में रख दिया जाय, तो वह भूरा, काला, धुएं के-से रंग का, रुधिर-मिश्रित होता है। जहां तक जलन का संबंध है टैरिबिन्थिना की जलन कैन्थरिस और कैनेबिस सैटाइवा की जलन के अधिक निकट है, बरबेरिस के निकट नहीं। कमर-दर्द हो, मूत्र में रुधिर का अंश अधिक हो, मूत्र बूंद-बूद करके आये, जलन हो और मूत्र में कष्ट हो, तो Terebinthina औषधि की तरफ ध्यान जाना चाहिये। पेशाब की बीमारियों में चाहे एलब्यूमिनोरिया हो, ब्राइट्स डिज़ीज हो, गुर्दे की सूजन-नेफ्राइटिस हो, इन सब में उक्त लक्षण होने पर Terebinthina से लाभ होता है।
(2) मूत्र में बनफशे की गन्ध या मीठी गन्ध आती है – इसका अद्भुत-लक्षण यह है कि रोगी के पेशाब में से बनफशे की गन्ध आती है। इस लक्षण को ‘मीठी’-गन्ध भी कहा जाता है। पेशाब की गन्ध के विषय में कहा जाता है कि नाइट्रिक ऐसिड तथा बेनजोइक ऐसिड – इन दोनो में घोड़े के पेशाब की-सी गन्ध आती है।
(3) जीभ लाल और बिल्कुल चिकनी होती है – इस औषधि का किसी भी रोग में मुख्य-लक्षण जीभ का लाल होना और बिल्कुल चिकनापन है। जीभ के कांटे सब मिट जाते हैं, जीभ एकदम चिकनी हो जाती है।
(4) शक्ति –1, 6, 30