शरीर के किसी कटे हुये-छिले हुये भाग से एक प्रकार का जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाता है जिससे यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में शरीर में ऐंठन होती और पूरा बदन अकड़कर धनुष की तरह टेढ़ा हो जाता है इसलिये इस रोग को धनुष्टकार के नाम से जानते हैं ।
नक्सवोमिका 30– यह इस रोग की एक अच्छी औषधि है और रोग की किसी भी अवस्था में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
हाइपेरिकम Q,30- किसी भी प्रकार के धनुष्टकार की किसी भी अवस्था में इसका प्रयोग लाभदायक होता है। पुराने रोगों में 1M शक्ति दें ।
एकोनाइट 3x- मौसम ठण्डा होने के कारण, वर्षा-पानी में भीगने के कारण, ठंडी हवा लगने के कारण अगर धनुष्टकार रोग का आक्रमण हो जाये तो इस दवा के प्रयोग से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
हायोसायमस 30- दाँती लग जाना, मुँह में फेन आने लगना, चेहरा काला पड़ जाना आदि लक्षणों में इस दवा का प्रयोग करना चाहिये ।
स्ट्रिक्निया आर्स 30- माँसपेशियों का अकड़ जाना, रह-रहकर आक्षेप, हाथ-पाँव का सुन्न होना, श्वास-कष्ट आदि लक्षणों में इस दवा का प्रयोग करना चाहिये ।
लीडम पाल 200- यदि किसी व्यक्ति को जंग लगी कोल या लोहे की वस्तु से चोट लग जाये तो उसे तुरन्त इस दवा की एक मात्रा दे देनी चाहियेमात्रा देने के बाद हाइपेरिकम 200 की भी एक मात्रा देने को कहते हैं ।