टांसिल का कारण
गले के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मांस की एक गांठ होती हैं, जो लसिका ग्रंथि के समान होती है, इसे टांसिल कहते हैं। टांसिल बढ़ने का मुख्य कारण मैदा, चावल, आलू, चीनी, अधिक ठंडा, अधिक खट्टा आदि का आवश्यकता से अधिक प्रयोग करना है। ये सारी चीजें अम्ल बढ़ा देती हैं जिससे कब्ज की शिकायत बढ़ जाती है। सर्दी लगने की वजह से भी टांसिल बढ़ जाते हैं। खून की अधिकता, मौसम गर्म से अचानक ठंडा हो जाना, आतशक (गर्मी), वायु का बुखार, दूषित वातावरण में रहना तथा अशुद्ध दूध पीना आदि कारणों से भी टांसिल बढ़ जाते हैं।
टांसिल के लक्षण
इस रोग के कारण गले में सूजन आ जाती है। गले में दर्द, बदबूदार श्वास, जीभ पर मैल, सिर में दर्द, गरदन के दोनों तरफ लसिका ग्रंथियों का बढ़ जाना, उनको दबाने से दर्द, सांस लेने में कष्ट, शरीर में दर्द, स्वर भंग, बेचैनी, सुस्ती आदि के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। रोग के लगते ही ठंड लगकर बुखार आ जाता है, गले पर मारे दर्द के हाथ नहीं रखा जाता, थूक निगलने में तकलीफ आदि मालूम पड़ती है।
टांसिल का घरेलू उपचार
- लहसुन की एक गांठ कुचलकर पानी में गर्म करें। फिर उस पानी को छानकर गरारे करें।
- टांसिल बढ़ जाने पर अनन्नास का जूस गर्म करके पिएं।
- शहतूत का शरबत एक चम्मच की मात्रा में गर्म पानी में डालकर गरारे करें।
- गर्म पानी में चुटकीभर फिटकिरी और इतना ही नमक घोलकर गरारे करें।
- कच्चे पपीते के हरे भाग में चीरा लगाकर उसका दूध निकाल लें। एक चम्मच दूध को एक गिलास गुनगुने पानी में डालकर गरारे करें।
- एक गिलास पानी में पान का पत्ता, 2 लौंग, मुलेठी आधा चम्मच, पिपरमेन्ट 4 दानें। इन सबका काढ़ा बनाकर पिएं।
- एक चम्मच अजवाइन को एक गिलास पानी में डालकर उबालें। फिर पानी को हल्का ठंडा करके उससे कुल्ली तथा गरारे करें।
- रात में सोते समय दो चुटकी पिसी हुई हलदी, आधी चुटकी पिसी काली मिर्च, अदरक का ताजा रस एक चम्मच । सबको मिलाकर आग पर गर्म करें और शहद मिलाकर पी जाएं। यह दवा दो ही दिन में टांसिल की सूजन दूर कर देती है।
- गर्म पानी में गिलिसरीन मिलाकर कुल्ली करने से भी काफी लाभ होता है।
- गिलिसरीन को फुरेरी से टांसिल पर लगाएं। इससे सूजन कम होगी।
- गर्म पानी में एक चम्मच नमक डालकर कुल्ली करने से काफी लाभ होता है।
- तुलसी के चार-पांच पत्ते पानी में डालकर उबालें। फिर इस पानी से गरारे करें।
- तुलसी की एक चुटकी मंजरी पीसकर शहद के साथ चाटने से टांसिल में गला खुल जाता है।
- टांसिल होने पर सिंघाड़े को पानी में उबालकर उसके पानी से कुल्ली करें।
- दालचीनी पीसकर शहद में मिला लें। फिर इसे उंगली से टांसिल पर लगाएं।
गले के अंदर कौड़ियां या कौवा बढ़ जाए, नज़ला-जुकाम, बेचैनी, थूक तक निगलने में दर्द हो। इन सब लक्षणों में एक सप्ताह तक उपवास करें और शाम के समय ताजे फलों का रस गुनगुना करके सेवन करें, कमर तक टब में बैठकर नित्य स्नान करें, गले को नीम के गर्म पानी से भाप दें। यदि टांसिल पक गए हों, तो नीम के पानी से दिन में चार बार कुल्ली या गरारे करें।
टांसिल का आयुर्वेदिक चिकित्सा
- निर्गुण्डी की जड़ चबाने, नीम के काढ़े से कुल्ली करने या थूहर का दूध लगाने से टांसिल खत्म हो जाते हैं।
- कूट, काली मिर्च, सेंधा नमक, पीपल, पाढ़ तथा केवरी मोथा। इन सबको समान मात्रा में पीसकर एक शीशी में रख लें। इसके बाद शहद में मिलाकर बाहरी गालों तथा कंठ पर लेप करें।
- माल कांगनी, हल्दी, पाढ़, रसौत, जवाखार, पीपल। इन सबको बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें। फिर शहद में मिलाकर बेर के बराबर की गोलियां बना लें। रोज दो गोली चूसें।
- दारू हल्दी, नीम की छाल, रसौत तथा इन्द्र जौ को बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें। इस बात का ध्यान रखें कि काढ़ा चार चम्मच से ज़्यादा न हो, क्योंकि अधिक काढ़ा खुश्की पैदा करता हैं।
- कड़वी तोरई को चिलम में रखकर तम्बाकू की तरह उसका धुआं पिएं, फिर लार टपका दें। गले की सूजन दूर हो जाती है।
- तालीशादि चूर्ण 2 ग्रा, कफ़केतु रस 2 गोली, अभ्रक भस्म (शतपुटी) 120 मि. ग्रा. तीनों मिलाकर ऐसी एक खुराक तीन बार शहद से लें।
- खदिरादि वटी 1 गोली चार पांच-बार दिन में चूसें।
- तुण्डिकेरी रस 1 गोली तीन बार शहद से लें।
- सेप्टिलिन टेबलेट 1 गोली तीन बार 10 दिन तक लें।
गले के अंदर कौड़ियां या कौवा बढ़ जाए, नज़ला-जुकाम, बेचैनी, थूक तक निगलने में दर्द हो। इन सब लक्षणों में एक सप्ताह तक उपवास करें और शाम के समय ताजे फलों का रस गुनगुना करके सेवन करें, कमर तक टब में बैठकर नित्य स्नान करें, गले को नीम के गर्म पानी से भाप दें। यदि टांसिल पक गए हों, तो नीम के पानी से दिन में चार बार कुल्ली या गरारे करें।