Tonsillitis रोग बच्चों को अधिक होता है। स्ट्रेप्टोकोकस कीटाणु गले में पहुँचकर संक्रमण फैला देता है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे को 104 डिग्री फारेनहाईट (40 सेण्टीग्रेड) तक ज्वर हो जाता है। वयस्क रोगी का गला सूज व पक जाने पर वह स्वयं बता सकता है कि उसके गले में दर्द व कष्ट है परन्तु बच्चा अबोध होने के कारण नहीं बोल पाता है। कई बार बच्चे को लाल ज्वर (स्कारलेट फीवर) डिफ्थेरिया, भोजन निगलने पर कष्ट और यह रोग अभी-अभी अथवा पहले कभी हो चुके होते हैं। बच्चे का निरीक्षण करने पर उसकी गर्दन इधर-उधर घुमाने पर अकड़ी हुई व कठोर प्रतीत होती है (जैसाकि सन्निपात या गर्दनतोड़ ज्वर में हो जाती है) । गले को देखने पर दोनों ओर के टॉन्सिल्स बहुत सूजे हुए तथा उन पर लाल धब्बे पड़े हुए (उनमें पीप भी हो सकती है।) रोगी का गला अन्दर से बहुत सूजा हुआ होता है और टॉन्सिलों में दर्द होता है । निरीक्षण के समय चिकित्सक ध्यान से देखें कि उसके शरीर पर लाल दाने तो नहीं निकले हैं । रोग की अधिकता में ज्वर भी होता है । रोग पुराना हो जाने पर टॉन्सिल बढ़कर कठोर हो जाते हैं, जिसके कारण कानों के भीतरी छेदों पर दबाव पड़ने से रोगी सुनाई भी कम देने लगता है।
टॉन्सिल का एलोपैथिक चिकित्सा
केओलिन पाउडर की गरम-गरम पुल्टिस गले पर बाँधे । ‘बोरो ग्लिसरीन‘ को रुई की फुरेरी से टॉन्सिल पर लगायें। रोग पुराना होने पर फिटकरी (एलम) 2 माशा को 20 तोला पानी में घोलकर गरारें करायें । गले के बाहर बहुत सूजन होने पर जोंक लगाकर रक्त निकालना भी लाभकारी है । पिसी हुई फिटकरी को शहद में मिलाकर अंगुली से टॉन्सिल व गले में प्रतिदिन दो बार मलते रहें।
स्ट्रेप्टो कोक्कस की इन्फेक्शन (संक्रमण) से उत्पन्न टॉन्सिल-शोथ में पेनिसिलिन की 4 लाख यूनिट की 1-1 टिकिया प्रत्येक 4 घण्टे बाद चूसने को दें । (यह प्रयोग 4-5 दिन करें) इससे सूजन दूर होने के साथ ही तीव्र ज्वर भी कम हो जाता है। किन्तु रोगियों में इसके अधिक प्रयोग से बुरे प्रभाव भी हो जाते हैं।)
नोट – पेनिसिलिन से एलर्जी वाले रोगियों में इस औषधि का प्रयोग न करें ।
टॉन्सिल-शोथ के साथ बच्चे के कान में दर्द व सूजन होने पर ‘सेमीसिलीन‘ सीरप (लामेडिका कम्पनी) 1-1 छोटा चम्मच दिन में तीन बार पिलाते रहें।
नींद न आने की दशा में ‘काम्पोज‘ (रैनबैक्सी) 5 से 10 मि.ग्रा की टिकिया रात को सोते समय खिलायें । आवश्यकतानुसार इससे अधिक मात्रा भी दे सकते हैं।
ज्वर तेज होने की दशा में कैम्पीसिलीन (कैडिली कम्पनी) अथवा लौंगासिलीन (एच. ए. एल. कम्पनी) का आयु तथा रोगानुसार इन्जेक्शन लगायें ।
नोट – पेनिसिलिन के एलर्जिक रोगियों में इनका व्यवहार न करें ।
बच्चे के टॉन्सिल बार-बार सूज जाने और बच्चा बहुत कमजोर होने पर उसको शार्क लीवर ऑयल तथा सीरप फ्राई फास्फस 10-10 बूंद को टमाटर अथवा सन्तरे के रस में मिलाकर सेवन कराते रहना अति लाभकारी है ।
गले का दर्द दूर करने के लिए डिस्प्रिन टिकिया बारीक पीसकर नली द्वारा गले में फूंकें । बच्चों को अत्यन्त लाभ प्रदान करती है ।
बच्चों को नींद न आने पर रेस्टिल चौथाई से आधी टिकिया (सिपला कम्पनी) खिलायें । तीव्र ज्वर में बच्चों को ऐण्टेरोमायसिटीन (डेज कम्पनी) 1 मि.ली. का इन्जेक्शन गहरे मांस में लगाएं।
बच्चे का टॉन्सिल बार-बार सूज जाने और शिशु बहुत कमजोर होने पर उसकी शार्क लीवर ऑयल सीरप अथवा टोनीफेरान ड्राप्स (ईस्ट इण्डिया) 10-10 बूंद टमाटर या सन्तरे के रस में पिलाते रहें ।
सेमिपेन (मर्करी कम्पनी) ड्राई सीरप – विधिवत् तरल निर्माण करके बच्चों को 62.5 से 125 मि.ग्रा. (2.5 से 5 मिली.) भोजन से पहले प्रत्येक 6 घण्टे के अन्तराल से मिलायें ! .
नोट – पेनिसिलिन के अति सुग्राही एलर्जी रोगियों में इसका सेवन न करायें ।
सुबामायसिन डिस्पर्सबुल टिकिया (डेज कम्पनी) – बच्चों को इसकी आधी (50 मि. ग्री.) पीसकर मधु में मिलाकर दिन में 2-3 बार चटाना अत्यन्त लाभकारी है। इसके साथ विटामिन बी कॉम्प्लेक्स तथा विटामिन सी वाले योग जैसे – सी. बी. टिना एफ. (कलकत्ता कैमिकल्स) की चौथाई से आधी टिकिया अवश्य प्रयोग करायें ।