त्वचा को आकर्षक कैसे बनायें?
त्वचा को मैला करने वाले कारण
त्वचा को मैला करने वाले कारण निम्नलिखित हैं1. धूल-मिट्टी के कण, 2. पसीना, 3. भीतरी चिकनाहट । ऊपर लिखे कारणों से मलीन हुई त्वचा को यदि देर तक मलीन ही रहने दिया जाये, तो उसमें अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे-दाग, धब्बा, अनावश्यक चिकनाहट, झाइयां, थिम्म आदि।
सफाई का तरीका
रात को सोने से पूर्व हल्का-सा साबुन मलकर पानी से चेहरे को अच्छी तरह धो लीजिये। इसके बाद क्लॉजिंग क्रीम चेहरे पर मलिये। दूसरे दिन सवेरे साबुन से मुंह धो लीजिये। फिर क्लीजिंग क्रीम लगाकर पांच मिनट छोड़ दीजिये। अब मुंह धो डालिये। इसके बाद स्नान कीजिये और फिर अपने उपयुक्त क्रीम-पाउडर आदि से चेहरे का प्रसाधन कीजिये। ध्यान रहे कि पाउडर बिल्कुल साफ कपड़े या पफ से लगाना चाहिए।
चीनी का प्रयोग कम कीजिये
चीनी आदि मीठे का अधिक प्रयोग करने वाली महिलाओं का चेहरा कुछ सूजन लिये चकतेदार होता है। उन्हें चाहिए कि चीनी आदि का प्रयोग कम करें। हलवा, पूड़ी, बिस्कुट, चॉकलेट, मिठाई आदि की जगह सलाद, भीगी दाल, उबली सब्जी, ताजा फल, रसदार नीबू-सन्तरा-माल्टा-चकोतरामौसम्बी आदि फल सेवन करें। ऐसा करने पर चेहरा पारदशीं साफ-स्वच्छ हो जायेगा।
भरपूर नीद (सुखद निद्रा)
त्वचा के सौन्दर्य के लिए भरपूर नींद लेना आवश्यक होता है। रात को दस बजे के बाद नहीं जागना चाहिए और सुबह छह बजे के बाद नहीं सोना चाहिए। ठीक समय पर नींद लेने से त्वचा को भरपूर पोषण मिलता है। दिन के भोजन के बाद भले ही पन्द्रह मिनट के लिए लेटकर विश्राम कीजिये, किन्तु है यह अत्यन्त आवश्यक। महिलाओं को घण्टों खड़े रहकर खाना बनाना पड़ता है। यह जहां सामान्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, वहीं त्वचा के लिए भी हानिकारक है। स्टूल बनवाइये या घण्टे-भर बाद कुर्सी आदि पर बैठकर या दो मिनट लेटकर विश्राम अवश्य कीजिये।
खुश्क त्वचा
कुछ लोगों की त्वचा खुश्क होती है। इसके कई कारण होते हैं
1. वंशानुगत-मां-बाप से प्राप्त ।
2. बार-बार धोना।
3. बहुत ठण्डी हवा चलना।
4. भोजन में वसा (चिकनाहट) की मात्रा कम होना।
कोई भी कारण हो, यदि आपकी त्वचा अधिक शुष्क है, तो नाश्ते के साथ थोड़ा-सा मक्खन अवश्य लीजिये। शरीर और चेहरे को तेज साबुनों से और बार-बार मत धोइये। साबुन हल्का लीजिये, जैसे पीयर्स, लिरिल, चन्दन सोप आदि। साबुन का हल्का-सा प्रयोग कीजिये। क्रीम-पाउडर द्वारा प्रसाधन करते हुए यह ध्यान रखिये कि इनका कम-से-कम प्रयोग कीजिये, भारी प्रसाधन मत कीजिये। कई पाउडर भी अधिक खुश्क होते हैं, उनका प्रयोग मत कीजिये। क्लॉजिंग लोशन चिकनाई वाला प्रयोग कीजिये। कोल्ड क्रीम का प्रयोग कीजिये। चेहरे और गर्दन को धोने के बाद फौरन कोल्ड क्रीम का प्रयोग कीजिये। रात को सोने से पूर्व किसी पोषक (नरशिंग) क्रीम का प्रयोग कीजिये।
चिकनी त्वचा (तैलीय त्वचा)
कुछ स्त्रियों की त्वचा अधिक चिकनी होती है। उनकी त्वचा की ग्रन्थियां अधिक चिकनाहट बाहर निकालती हैं। इनकी त्वचा बहुत चमकती है। चाहे चेहरा धो भी लें, फिर भी घण्टे-दो-घण्टे बाद वही चमक आ जाती है। तैलीय ग्रन्थियों के अधिक सक्रिय होने का यह परिणाम होता है। ऐसी नारियों के रोमकूप काली कीलों से बन्द हो जाते हैं। कील-मुंहासे भी अधिक निकलते हैं। आखों के इर्द-गिर्द कालापन लिये झाइयां आ जाती हैं। इनसे अच्छे-भले सौन्दर्य को कलंक लग जाता है। चिकनी त्वचा वाली स्त्रियों की वैनिशिंग क्रीम का प्रयोग करना चाहिए। बहुत ही कम क्रीम लगायें। तीसरी उंगली या अनामिका से जरा-सी क्रीम लगाकर आंखों के नीचे धीरे-धीरे सहलाना चाहिए। चिकनी त्वचा वाली स्त्रियों को दिन में तीन-चार बार चेहरा साबुन से धोना चाहिए।
सूर्य का प्रकाश-सूर्य-रश्मि स्नान
आप अपनी त्वचा की अवस्था, रंगत और उसके अन्दर की चर्बी के अनुसार ही सूर्य-रश्मि स्नान कर सकती हैं। त्वचा के अन्दर कोष्ठों (सेल्ज़) की एक तह पाई जाती है। इसमें स्निग्धता (चबी) रहती है। यही तह सूर्यताप से शरीर की रक्षा करती है। स्वस्थ मनुष्य भी कड़ी धूप में बेचैनी का अनुभव करने लगता है। प्रत्येक महिला को अपनी आयु, शरीर-दशा, स्वभाव और शरीर की सहनशक्ति के अनुसार ही सूर्य-रश्मियों में स्नान करना चाहिए।
सूर्य-रश्मियों में स्नान की विधि
शरीर के सभी कपड़े उतारकर केवल अंगिया और अण्डरवीयर रहने दें। पन्द्रह मिनट सूर्य की किरणों में शरीर को खुला रखें। यदि सिर पर धूप तेज लगे, तो सिर पर एक झीना कपड़ा डाल लें। यदि धूप आंखों को तेज लगे, तो रंगीन चश्मा (गौगल्ज़) पहन लें। पन्द्रह मिनट बाद कपड़े पहन लें। सूर्य-रश्मि स्नान के तुरन्त बाद नहाना नहीं चाहिए। थोड़ी देर शरीर को छाया में विश्राम देना चाहिए।
लाभ
सूर्य-रश्मि स्नान से शरीर में रोगों को रोकने की शक्ति बढ़ जाती है। इससे शरीर पर से रोग के कीटाणु सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। छूत की बीमारियों के आक्रमण की आशंका नहीं रहती। सूर्य-रश्मि स्नान से शरीर को विटामिन ‘डी’ मिलता है। इससे त्वचा में स्वाभाविक चमक और आभा झलकने लगती है। कुछ महिलाएं रंग काला हो जाने के भय से सूर्य-रश्मि स्नान नहीं करती, परन्तु यह भूल है। धूप से दूर-दूर रहने पर स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है और चेहरे पर जो सफेदी दिखाई देती है, वह बनावटी और अनाकर्षक-सी दिखाई देती है। विटामिन ‘डी’ की कमी से दांतों में कीड़े लग जाते हैं।
भारतीय योगी लिखते हैं -‘‘हमारे शरीर के सम्पर्क में आकर सूर्य की धूप तीन कार्य करती है। पहले तो यह रक्त-पात्रों को गरम और उत्तेजित करती है, जिससे त्वचा के नीचे रक्त-संचरण बढ़ जाता है और इसके द्वारा नया ‘आर्गोस्टोल’त्वचा के पास आने लगता है। दूसरे, यह धूप ही उस’आर्गोस्टोल’ को विटामिन ‘डी’ में बदल देती है। तीसरे, रक्त के संचरण को उत्तेजित करके यह उस विटामिन ‘डी’ को शरीर के कार्य की पूर्ति के लिए भीतर भेजती है। यही कारण है कि कभी-कभी विटामिन ‘डी’ को ‘सूर्य-धूप का विटामिन’ कहा जाता है। विटामिन ‘डी’ भोजन पचाने वाली आंतों में पहुंचकर ‘एसिड’ (अम्ल) और ‘अल्कली’ (क्षार) की उत्पत्ति को नियमित करता है और इस प्रकार भोजन से चूना (कैल्शियम) तथा फास्फोरस को निकाल लेने का कार्य सम्पन्न करता है।”
मनुष्य की त्वचा को सूर्य-रश्मि स्नान से बहुत अधिक लाभ पहुंचता है, इसमें सन्देह नहीं। परन्तु कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। वे इस प्रकार हैं
1. जब धूप चुभने लगे (चाहे पांच मिनट बाद ही), तो धूप से छाया में चली जाइये।
2. स्नान के बाद भीगे शरीर से धूप में मत घूमिये।
3. सूर्य की सीधी तेज किरणों में बैठकर ताश आदि खेलना, पढ़नालिखना, कशीदा काढ़ना आदि हानिकर है।
4. सुगन्धित पदार्थ या उबटन मलकर धूप में नहीं बैठना चाहिए। इससे त्वचा सूजने का भय होता है।
5. शीतकाल में, धूप में बदन पर तेल की मालिश की जा सकती है।
6. बहुत सफेद तथा बहुत काली त्वचा वालों को धूप का बहुत कम सेवन करना चाहिए।
7. धूप में जब त्वचा लाल हो जाये या चिंगारियां उठने लगें या जलन होने लगे, तो धूप से हट जाना चाहिए।
8. सुबह के सूर्य का सेवन सामने से (छाती से) और दोपहर के सूर्य का सेवन पीठ से कीजिये।
9. सूर्य की ओर खुली आंखों से कभी नहीं देखना चाहिए।
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