इस दवा की कई श्रेणियाँ हैं, पर – (1) ट्राइफोलियम प्रेटेन्स ( trifolium pratense ) ; (2) ट्राइफोलियम रिपेन्स ( trifolium repense ) – ये दो तरह के ट्राइफोलियम होमियोपैथिक में उपयोग होते हैं। इन दोनों दवाओं की क्रिया प्रायः एक ही प्रकार की है। ताजे फूल से इनका टिंचर तैयार होता है। लार निकलने वाली ग्रंथियाँ ( लालाग्रंथि ), हूपिंग खाँसी और मम्प्स ( कर्ण-मूल का फूलना ) – इन तीन बीमारियों में ही इसका साधारणतः उपयोग होता है। निम्न जबड़े और कर्णमूल की गाँठ का फूलना, गाँठ का कड़ा हो जाना और उसमे दर्द, मुँह से बहुत ज्यादा लार निकलना, गले में जख्म, गला फँस जाना, हूपिंग खाँसी का या अन्य किसी प्रकार की खाँसी में रात को आक्षेपिक खांसी का बढ़ना प्रभृति कई बीमारियों में और उपसर्गों में इससे बहुत फायदा होता है। हमारी पोलिक्रेस्टस दवाओं से फायदा न हो तो उस बीमारी में इसकी परीक्षा करें।
Mumps ( कर्णमूल की सूजन ) रोग की यह प्रतिषेधक दवा है। कर्णमूल-ग्रन्थि प्रदाहित होने के पहले इसका व्यवहार करना चाहिए। हृत्पिण्ड की बीमारी में – ऐसा मालूम होता है मानो हृत्पिण्ड की क्रिया बन्द हो जाएगी, इसके साथ ही चेहरे पर ठण्डा पसीना।
क्रम – Q, 1 बून्द मात्रा में व निम्न शक्ति सेवन करना चाहिए।