परिपोषण-क्रिया की गड़बड़ी के कारण मूत्र-ग्रन्थि में एक प्रकार का पत्थरसा बनने लगता है जिसे पथरी कहा जाता है । जब यह मूत्र-नली में पहुँच जाती है तो यहाँ फैसकर असह्य दर्द उत्पन्न करती है। साथ ही, मूत्र-रोध, मूत्र-त्याग में जलन, प्रदाह, कभी-कभी रक्त आ जाना आदि लक्षण भी उत्पन्न होते हैं । इस रोग की पहचान का आसान तरीका यह है कि रोगी के मूत्र को एक साफ शीशी या काँच के किसी पात्र में भरकर रख दिया जाये तो बालू-कण जैसा कुछ पदार्थ शीशी के तले में जमा हो जाता है ।
बबॅरिस वल्गैरिस Q- मूत्र-पथरी की वजह से किसी प्रकार का कष्ट महसूस हो तो इस दवा की 5-5 बूंद प्रत्येक 20-20 मिनट के अंतर से लगातार 10-12 बार तक देनी चाहिये । इस प्रकार देने से आराम महसूस होता है।
लाइकोपोडियम 200- जबकि मूत्र में लाल रंग के बालू-कण जैसी तलछट होती हो तो लाभ करती हैं ।
अर्टिका यूरेन्स Q- लाइकोपोडियम से लाभ न होने पर यह दवा देनी चाहिये । इस दवा को गुनगुने पानी में देना अधिक लाभप्रद है ।
एसिड फॉस 2x- जबकि मूत्र में सफेद रंग के बालूकण जैसी तलछट होती ही तो लाभकारी हैं ।
ग्रेफाइटिस 30- यदि मूत्र को रखने पर उसमें सफेद रंग की खट्टी गंधयुक्त तलछट होती हो तो लाभकारी है ।
सीपिया 30- यदि मूत्र को रखने पर उसमें सफेद रंग की या लाल रंग की लसदार तलछट होती ही तो लाभकारी है ।
चिनिनम सल्फ 3x- यदि मूत्र को रखने पर उसमें ईंट के चूरे जैसी लाल या भूरे रंग की अथवा पीले रंग की दानेदार तलछट होती हो तो यह लाभ करती है ।