यह रोग सूजाक के कारण मूत्र मार्ग में तन्तु (रेशे) और शोथ उत्पन्न हो जाने से, बुढ़ापे में प्रोस्टेट ग्लैण्ड बढ़ जाने से, स्त्रियों में गर्भाशय के कई रोगों से, गर्भ के समय में, हिस्टीरिया रोग में मूत्राशय में पक्षाघात हो जाने से, मूत्राशय पर चोट लग जाने से, ऑप्रेशन कराने के कारण और पथरी इत्यादि कारणों से हो जाया करता है जिसके फलस्वरूप मूत्र आना बन्द हो जाता है अथवा कठिनाई से आने लग जाता है । वृक्कों में तो मूत्र बनता है जो मूत्र प्रणालियों द्वारा मूत्राशय में आकर एकत्रित हो जाता है, परन्तु मूत्राशय से मूत्र मार्ग द्वारा बाहर नहीं आता है ।
पेशाब में रुकावट का उपचार
- रोग के वास्तविक कारण को दूर करें ।
- रोगी को कमर तक गरम जल के टब में कुछ समय तक बैठाने और मूत्राशय स्थान को गरम जल से मलते रहने से मूत्र आ जाता है ।
- गरम जल की धार मूत्राशय पर धीरे-धीरे डालना भी लाभकारी है ।
- यदि किसी दवा से मूत्र न आये तो कैथेटर 4, 6, 8 या 10 नम्बर का जल में उबालकर (विसंक्रमित कर) ठण्डा करने के उपरान्त तेल चुपड़कर मूत्र मार्ग में बहुत धीरे-धीरे सावधानी के साथ प्रविष्ट करें । जब कैथेटर मूत्राशय के मुँह में पहुँच जाये तो रुका हुआ मूत्र तुरन्त आ जाता है।
- नौशादर 600 मि.ग्रा. 30 मि.ली. जल में घोलकर दिन में 3-4 बार पिलायें ।
- टेसू के फूल जल में उबालकर गरम-गरम सेंक और टकोर करने और फूल मूत्राशय पर बाँध देने से भी मूत्र आ जाता है ।
- चन्दन का तेल 5-6 बूंद बताशा या कैपसूल में डालकर खिलाने से भी सुजाक गर्मी इत्यादि के कारण से बन्द मूत्र खुल कर आने लग जाता है ।
- माँस, गरम मसाले युक्त भोजनों का प्रयोग बन्द कर दें । जौ का पानी, मूंग की नरम खिचड़ी और रोटी आदि ही खिलायें ।
डायटाईड (एस्काई लैब) – 1 से 2 टिकिया दिन में दो बार खिलायें । नोट – वृक्कपात (Renal Failure) में अति पोटाशियम क्षारीय में इसका प्रयोग न करें तथा यकृत और वृक्क के तीव्र रोगों में इसका प्रयोग बड़ी सावधानी पूर्वक करें ।
टूलीप्रिम (बिड्डल सावर) – 2 टिकिया, दो बार प्रतिदिन खिलायें । नोट – वृक्क रोगों की तीव्र स्थिति, गर्भावस्था तथा नन्हें शिशुओं में इस औषधि का प्रयोग न करें ।
ट्रिमल फोर्ट (जगसन पाल) 200 मि.ग्रा. वाली 1 टिकिया दिन में दो बार खिलायें। गर्भावस्था, शिशुओं, तीव्र यकृत या वृक्क की कठिन स्थिति में इसका प्रयोग निषेध है।
लैसिक्स (हैक्स्ट) – 1 से 2 टिकिया साधारण मूत्र बन्द हो जाने में खिलायें किन्तु तीव्र दशा में 2 मि.ली. के एम्पूल का माँस या शिरा में धीरे-धीरे इन्जेक्शन लगायें ।
नेफ्रिल (फाईजर) – 1 मि.ग्रा. की 1-2 टिकिया दिन में 1-2 बार खिलायें ।
पुराने सुजाक में मूत्र बन्द हो जाने पर उसकी चिकित्सा करें । प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ जाने पर अथवा मूत्राशय या मूत्रमार्ग में शोथ हो जाने पर मूत्र अधिक लाने वाली दवाओं के प्रयोग से लाभ के स्थान पर हानि होती है अतः इनका प्रयोग कदापि न करें ।