Urtica Urens का व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग में उपयोग
(1) जल जाने में (Burns) उपयोगी – गहरे जलने पर नहीं, परन्तु ऊपरी त्वचा के जल जाने पर आर्टिका टिंक्चर के कुछ बूंद पानी में डाल कर जली हुई जगह पर रूई में भिगो कर लगा देने से आश्चर्यजनक तौर पर जली हुई जगह ठीक हो जाती है। डॉ० टॉयलर लिखती हैं कि होटल के एक लड़के का मुंह झुलस गया था। उसे होम्योपैथिक अस्पताल में भर्ती करके अर्टिका का लोशन रूई में भिगो कर मुंह पर रख दिया गया। अगले दिन यह पहचानना भी कठिन हो गया कि उसका मुंह झुलसा था। एक डॉक्टर का उल्लेख करती हुई व लिखती हैं कि जल जाने पर अर्टिका के आश्चर्यजनक प्रभाव की बात सुनकर वह उसे परियों की कहानी की-सी बात कहा करता था। भाग्यवश उन्हीं की हाथ जल गया। उसकी दर्द आर्टिका से तत्काल ठीक हो गई और कुछ ही दिनों में जला भाग भी ठीक हो गया। तब उन्हें इस औषधि के अपूर्वगुण पर विश्वास हुआ। इस से जले हुए पुराने घाव जो अनेक उपचारों के बाद भी ठीक नहीं होते आश्चर्यजनक तौर पर ठीक होते देखे गये हैं।
(2) अन्होरी तथा पित्त उछल कर शरीर पर ददोड़े पड़ जाने पर (Nettlerash and Urticaria) उपयोगी – शरीर की त्वचा पर इस औषधि का विशेष प्रभाव है। अन्होरी तथा पित्त उछल कर संपूर्ण शरीर पर ददोड़े पड़ जाने पर इस से विशेष लाभ होता है। सारे शरीर में खुजली होती है, डंक-सा चुभता है, बेहद जलन होती है, स्त्री तथा पुरूष के जननांगों में खुजली मचती है। डॉ० टॉयलर एक स्त्री का उल्लेख करते हुए लिखती हैं कि उसने बकरी का दूध पी लिया था, कुछ घंटे बाद उसकी त्वचा पर बेहद खुजली शुरू हो गई, कमरे में जाकर उसने सारे कपड़े निकाल फेंके, सिर से पैर तक खुजली से परेशान हो गई। वह अर्टिका से खुजली दूर होने की बात सुन कर हंसा करती थी, परन्तु इस समय उसे अर्टिका का स्मरण हो आया, उसने इस औषधि के मूल-अर्क के कुछ बूंद पानी में डाल कर पीये, तत्काल शान्ति आ गई और अगले दिन ददोड़ों, पित्त और खुजली का नामोनिशान न रहा। एक अन्य रोगी को पित्त उछल आने पर अर्टिका 10M दिया गया, और वह अगले दिन ठीक हो गया।
(3) दूध छुड़ाने के बाद दूध सुखाने के लिये उपयोगी – एक स्त्री ने दो औंस अर्टिका की चाय बना कर पी ली तो उसे विचित्र-लक्षण उत्पन्न हो गये। सारे शरीर में ददोड़े निकल आये, शरीर पर पित्ती उछल आयी और सब से विलक्षण-लक्षण यह दिखाई दिया कि यद्यपि तीन साल से उसे कोई बच्चा नहीं हुआ था फिर भी उसके स्तन दूध से भर गये। यह एक प्रकार से इस औषधि की ‘परीक्षा-सिद्धि’ (Proving) हो गई। होम्योपैथी के सिद्धान्त के अनुसार जो औषधि स्वस्थ व्यक्ति पर जो लक्षण उत्पन्न करती है, उन्हीं लक्षणों को किसी भी रोग में वह दूर भी करती है। इसीलिये जहां ददोड़ों के लिये यह उत्तम औषधि है, वहां जब बच्चे को दूध छुड़ाना हो तब माता के स्तनों में दूध सुखाने के लिये भी यह उत्तम है। सुखाने के अतिरिक्त अगर मां के स्तनों में दूध न आता हो तब इस औषधि की स्थूल मात्रा की चाय पिलाने से दूध आने तथा बढ़ने भी लगता है।
(4) मलेरिया-ज्वर में उपयोगी – डॉ० बर्नेट को अर्टिका के विषय में भी उनका अनुभव अद्भुत था। उन्होंने लिखा है कि मलेरिया-ज्वर में इसके टिंक्चर से उन्होंने अनेक रोगियों को सफलतापूर्वक ठीक किया। मलेरिया पर अर्टिका के प्रभाव का उन्हें कैसे पता चला इसका उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं कि एक स्त्री का, जिसे मलेरिया का आक्रमण होता था, वे इलाज कर रहे थे। एक दिन वह स्त्री उनसे आकर कहने लगी कि वह सर्वथा ज्वर-मुक्त हो गई है, परन्तु डॉक्टर के इलाज से नहीं, अपनी नौकरानी के इलाज से उसका ज्वर छूट गया। डॉ. बर्नेट ने सारा विवरण पूछा तो पता चला कि उसकी नौकरानी ने उसे अर्टिका की चाय बना कर दी थी जिस से ज्वर जाता रहा। उस के बाद डॉ० बर्नेट ने अनेक रोगियों को मलेरिया में अर्टिका के टिंकचर से ठीक किया। डॉ० बर्नेट यह भी लिखते हैं कि हरेक रोगी इससे ठीक नहीं होता, किसी-किसी को लक्षण होने पर नैट्रम म्यूर देना पड़ता है, परन्तु हरेक रोगी के इस से ठीक न होने का यही अभिप्राय है कि होम्योपैथी में किसी रोग की कोई स्पेसिफिक दवा नहीं है, जो रोगी इस से ठीक हो जाते हैं उनके लक्षण इस औषधि के समान होते हैं तभी वे इस से ठीक हो जाते हैं, जो नहीं ठीक होते उनके लक्षण इस औषधि के लक्षणों के सम नहीं होते, परन्तु अधिकतर इससे ठीक हो ही जाते हैं।
(5) पथरी तथा गठिये पर उपयोगी – डॉ० बर्नेट का कहना था कि गठिया के रोगियों को गठिये का दर्द प्राय: इसीलिये होता है क्योंकि शरीर में से यूरेट्स निकलने के बजाय जगह-जगह बैठ जाते हैं। इसी कारण दर्द होता है, इन यूरेट्स के गुर्दे में जमा हो जाने के कारण ही पथरी भी हो जाती है। उनका अनुभव था कि आर्टिका देने से यूरेट्स निकलने लगते हैं, बनने बन्द हो जाते हैं, पथरी बनती नहीं, बनी हुई घुल कर निकल जाती है, यूरेट्स न बनने के कारण गठिया भी ठीक हो जाता है। पथरी तथा गठिये में वे एक छोटे गिलास में, कोसे पानी में, पांच बूद अर्टिका की टिंक्चर डाल कर पीने को देते थे। कुछ घंटे बाद गठिये का रोगी कहता था-दर्द गायब हो गया। पथरी के रोगी कहते थे कि पेशाब में पहले कभी पथरी नहीं निकली, परन्तु अब पथरी के छोटे-छोटे टुकड़े निकल रहे हैं। डा० बर्नेट अर्टिका के मूल-अर्क का कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग करवाते थे और इस से गठिया तथा पथरी दोनों ठीक हो जाते थे। गठिये को इस औषिध से ठीक करने की उनकी प्रसिद्धि इतनी हो गई थी कि लोग उन्हें ‘मिस्टर अर्टिका’ कहने लगे थे।
(6) मधु-मक्खी के काटे पर उपयोगी – अगर मधु-मक्खी काट खाये, तो अर्टिका के मूल-अर्क के लगाने से लाभ होता है; अगर ततैय्या काट खाये तो आर्निका के मूल-अर्क के लगाने से लाभ होता है; अगर विषैली मक्खी या मच्छर काट खाये, भयंकर सूजन हो जाय, जलन हो, तब कैन्थरिस 200 की एक मात्रा लेने से शान्ति हो जाती है।
(7) शक्ति – गठिया तथा पथरी में मूल-अर्क की कुछ बूंदें कोसे पानी में डाल कर कुछ दिन लेना; पित्त उछल आने में 200 या 1M की मात्रा लाभ करती है।