विवरण – कभी-कभी जरायु-ग्रीवा अथवा जरायु-गहवर में छोटी-बड़ी फुन्सियां हो जाया करती हैं । ये आकार में उड़द के दाने से लेकर बेर तक की तथा संख्या में 1 से 50 तक हो सकती है । इनमें से किसी से रक्त तथा पीव निकलता है और किसी से कुछ नहीं निकलता । कभी-कभी इस रोग में श्वेत-प्रदर के लक्षण भी पाये जाते हैं । इस रोग के कारण रक्त की कमी होकर बाँझपन तक हो सकता है । इस रोग में निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
कैल्केरिया-आयोड 3x वि० – यह हर प्रकार के अर्बुद की सर्वश्रेष्ठ औषध है । इसे एक ग्रेन की मात्रा में दिन में चार बार देना चाहिए ।
उक्त औषध से लाभ न होने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
कार्सिनोसिन 200, हाइड्रेस्टिस 2x वि०, थ्लैस्पि 2x, सिकेल 2x, लेकेसिस 30 एवं सिलिका 6x वि० ।
जरायु का कैंसर (Uterine Cancer)
जरायु में कैसर (दूषित अर्बुद) होने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करें :-
थूजा 3, 6 – जरायु में कैंसर का सन्देह होने पर इसे दें।
हाइड्रेस्टिस Q – जरायु में कैंसर का निश्चय हो जाने पर इसे सेवन करायें तथा इसी औषध के लोशन का बाहय-प्रयोग भी करें ।
आरम-म्यूर 3x – इसके साथ ही सप्ताह अथवा पन्द्रह दिन में एक बार कार्सिनोसिन 30, 200 का सेवन करें । यदि अत्यधिक रक्त-स्राव हो तो हैमामेलिस का बाह्य-प्रयोग भी करना चाहिए ।
आर्स-आयोड 6 – यह जरायु के कैंसर की प्रथमावस्था में हितकर है।
थूजा 30 – यदि ‘आर्स-आयोड‘ से लाभ न हो तथा रोग प्रथमावस्था से आगे बढ़ चुका हो तो इसका सेवन करें । यह उपदंश-जन्य अर्बुद में भी लाभकर है।
रूटा Q – इसकी केवल एक मात्रा पन्द्रहवें दिन चीनी के साथ सेवन करनी चाहिए ।
एपिहिस्टीरिनम 30 – अधिक रक्त-स्त्राव के लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।