‘गर्भाशय’ को ही ‘जरायु’ कहते हैं । विभिन्न कारणों से जरायु भी विभिन्न प्रकार की व्याधियों का शिकार बन जाता है। जरायु सम्बन्धी रोगों की होम्योपैथिक चिकित्सा निम्नानुसार करें :-
जरायु (गर्भाशय) के समीपवर्ती कोशीय-तन्तुओं के शोथ (सूजन) में निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करें :-
बेलाडोना 30 – जरायु के समीपवर्ती तन्तुओं में सूजन, तपकन तथा दर्द के लक्षणों में इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
मर्क-सोल 30 – ‘बेलाडोना’ से लाभ न हो तो इस औषध का प्रयोग करें ।
हिपर-सल्फर 30 – यदि ‘मर्क’ देने पर भी लाभ न हो तथा सूजन में पस पड़ जाय तो इसका प्रयोग करना चाहिए ।
साइलीशिया 30 – यदि ‘हिपर’ देने पर मवाद निकलने लगे और वह पतला हो तो यह औषध देनी चाहिए ।
हाइड्रोकोटाइल 6 – यदि मवाद पतला न होकर गाढ़ा हो तो इसे दें । गर्भाशय के फोड़े के लिए भी यह औषध बहुत हितकर है ।
जरायु की सूजन और प्रदाह (Metritis)
विवरण – जरायु का प्रदाह (1) नया तथा (2) पुराना – दो प्रकार का होता है। यह रोग जरायु की ग्रीवा पर आक्रमण करता है। अत्यधिक ठण्ड लगना, तीव्र ज्वर तथा तलपेट में दर्द-ये इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। प्रसव के बाद जरायु के संकुचित न होने, कृत्रिम-उपायों से गर्भ स्थिति को रोकने अथवा बहुत दिनों तक ‘हरित रोग’ भोगने के बाद जरायु क्रमशः दर्द युक्त, कड़ा तथा बड़ा हो जाता है – इसी को ‘पुराना जरायु प्रदाह’ कहते हैं। इसमें पेट में भारीपन, बाधक-वेदना, स्तन एवं कमर में दर्द, मैथुन के समय कष्ट, मल-द्वार में वेग, ऋतुस्राव में गड़बड़ी तथा हिस्टीरिया आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
जरायु के नवीन-प्रदाह में लक्षणानुसार निम्न औषधियों का प्रयोग करें :-
विरेट्रम-विरिडि 3x, 6 – रोग के प्रारम्भिक लक्षण प्रकट होते ही इसे दें।
नक्सवोमिका 30 – ‘विरेट्रम’ के बाद इस रोग के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है ।
विशेष – इनके अतिरिक्त बीच-बीच में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग भी किया जा सकता है :- बेलाडोना 6, रस-टाक्स 6, पाइरोजेन 30, कोलोसिन्थ 6, लैकेसिस 6 – यदि रोग सर्दी लगने के कारण हुआ हो तो दो-तीन मात्रा एकोनाइट 3 देने से लाभ होता है ।
जरायु के पुराने प्रदाह में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ दें :-
सैबाइना 3x – स्वच्छ, लाल, थक्का जैसा अथवा अधिक पतला, अधिक परिमाण में रक्तस्राव होने पर इसे देना चाहिए। गर्भपात के बाद जरायु में सूजन तथा दर्द होना, थोड़ी-सी हरकत से ही दर्द के बढ़ जाने, जरायु का दर्द जाँघों तक फैल जाने तथा दो मासिकों के बीच भी ऋतुस्राव होते रहने के लक्षणों में हितकर है ।
बेलाडोना 3x, 30 – डॉ० मैथसिन के मतानुसार यह जीर्ण जरायु-प्रदाह की उत्तम औषध है । जरायु में जलन तथा दबाव का अनुभव, भीतरी अवयवों के बाहर निकल पड़ने जैसा अनुभूति, तलपेट में बोझ, जरायु के दर्द का कमर तक जा पहुँचना तथा दुर्गन्धित स्राव – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
सीपिया 12 – जरायु में प्रसव जैसा दर्द, प्रसव द्वार में खुजली एवं अल्प रक्तस्राव के लक्षणों में इसे दें ।
हाइड्रेस्टिस 3x, 30 – जरायु ग्रीवा, जरायु-मुख तथा प्रसव-मार्ग में जख्म एवं गाढ़ा तथा पीले रंग का प्रदर-स्राव होने पर इसका प्रयोग करें ।
आरम-म्यूरियेटिकम 3x – जरायु की पुराना शोथ, जरायु-ग्रीवा पर जख्म, जरायु का सूज कर वस्ति-गहवर में फैल जाना, जरायु का हड्डी की भाँति कड़ा हो जाना तथा जरायु शोथ के कारण गर्भपात होना इन सब लक्षणों में हितकर है ।
विरेट्रम-विरिडि 6 – जरायु में रक्त-संचय अथवा शोथ के कारण ब्लड-प्रेशर का बढ़ जाना, ज्वर, बेचैनी तथा हृदय में धड़कन-इन लक्षणों में लाभकर है।
जेल्सीमियम 3, 30 – जरायु में रक्त-संचय तथा शोथ के साथ ऋतुकाल में रक्त जम जाना, जरायु से दर्द उठकर पीठ तथा नितम्ब प्रदेश तक फैल जाना एवं ऋतुकाल में गला बैठ जाना तथा गले में दुखन-इन सब लक्षणों में लाभकर है ।
कालोफाइलम 3 – तलपेट में भारीपन, जरायु में रक्त-संचय होने जैसा अनुभव, अंगुली-अंगूठे तथा कलाई में दर्द, मुट्ठी बंद रने पर तीव्र दर्द एवं दर्द का थोड़ी-थोड़ी देर बाद स्थान बदलते रहना-इन लक्षणों में हितकर है ।
कैल्केरिया-कार्ब 6x, 30, 200 – जरायु के तीव्र शोथ के साथ अधिक परिमाण में तथा देर तक ऋतुस्राव होना, सिर पर पसीना आना तथा पांवों का पसीजते रहना-इन लक्षणों में हितकर है ।
विशेष – इनके अतिरिक्त कभी-कभी लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है :- पल्सेटिला 6, सल्फर 30, लैकेसिस 6, म्यूरेक्स 6, आरम-मेट 30 ।
यदि जरायु-मुख पर दर्द हो तो ‘हाइड्रैस्टिस Q‘ मूल-अर्क 1 भाग को 10 भाग पानी में मिलाकर योनि को नित्य दो-तीन बार भली-भांति धोयें । जख्म न हो तो नित्य स्वच्छ जल से धोते रहें । जब तक रोग दूर न हो तब तक सहवास (मैथुन) न करें तथा ढीले वस्त्र धारण करें । पौष्टिक भोजन तथा नित्य स्नान भी आवश्यक है ।