इस रोग में योनि का लाल पड़ जाना, सूजन, दर्द, पीव जैसा स्राव आना, मूत्र-त्याग में जलन होना, ज्वर आ जाना, कमर व निचले हिस्से में दर्द, योनि में कभी-कभी दाने हो जाना, योनि शिथिल पड़ जाना आदि लक्षण प्रकटते हैं । यह रोग मुख्यतया अधिक भोग, चोट लगना, योनि की सफाई न करना आदि के कारण हो जाता है ।
एकोनाइट 3x, 30- सर्दी के कारण होने वाले योनि-प्रदाह में लाभ करती हैं । रोग के साथ बुखार, प्यास, बेचैनी आदि लक्षणों में भी यही दवा दें।
आर्निका 200- चोट लगने के कारण रोग होने पर लाभप्रद है । सीपिया 200- सूजाक के कारण रोग होने पर लाभप्रद है । कैन्थरिस 30- मूत्र-त्याग में जलन, सहवास करने की इच्छा होना आदि में लाभ करती हैं ।
बोरैक्स 3x- पीव ज्यादा आने पर और खुजली मचने पर दें ।
मर्कसॉल 6, 30- रोग की प्रायः समस्त अवस्थाओं में इसे दे सकते हैं।
सल्फर 30, 200- रोग पुराना पड़ जाने पर दें ।