वैक्सिनिनम ( vaccininum ), मेलाण्ड्रिनम ( malandrinum ) आजकल हमलोगों को बच्चे होने पर अगर एक वर्ष के भीतर टीका नहीं लिया जाता है, तो सरकारी कानून के अनुसार दण्ड होता है। गो-जाति के चेचक का बीज लेकर यह टीका दिया जाता है। इमको अंग्रेजी में vaccination कहते हैं। यूरोप के जेनर साहब ने पहले-पहल इस टीका का आविष्कार किया था। हमारे देश में जब देशी टीका की प्रथा प्रचलित थी, उस समय चेचक ( small pox ) के बीज से यह तैयार होता था। यही वैरियोलिनम ( variolinum ) या मानव-चेचक बीज है। वैरियोलिनम-बहुत ही तेज बीज है। इसका टीका देने पर कई प्रकार की खराबियाँ पैदा हो जाती है। गो-चेचक से जो बीज तैयार होता है, उसका नाम- वैक्सिनिनम ( vaccininum ) है और घोड़े के चेचक से जो बीज तैयार होता है-वह मेलाण्ड्रिनम ( malandrinum) कहलाता है। ये तीनों ही प्रकार के बीज चेचक की बीमारी में लाभदायक हैं ।
चेचक की बीमारी जब बहुव्यापक रूप में अर्थात् एक ही समय किसी जगह के बहुत-से मनुष्यों पर आक्रमण करती है, उस समय ऊपर कहे तीन तरह की दवाओं में – वैरियोलिनम से इलाज करने पर बहुत से रोगी आरोग्य हो सकते है। प्रक्टिस ऑफ़ मेडिसिन नामक ग्रन्थ में 6 तरह के चेचक का उल्लेख है-
- डिसक्रिट – इसमें गोटियाँ अलग-अलग निकलती है-यह सुसाध्य चेचक हैं।
- कानफ्लुएण्ट – इसमें गोटियाँ चिपटी और आपस में सटी या जुडी रहती है। इसमें रस, रक्त और पीब रहती है, यह बहुत ही सांघातिक और मारात्मक बीमारी है।
- सेमि-कान्फ्लुएण्ट – इसमें गोटियाँ अलग-अलग या बहुत परिमाण में निकलती हैं, यह भी आरोग्य हो जाता हैं।
- कारिम्बोज – इसमें गोटियाँ अंगूर के गुच्छे की तरह निकलती हैं – यह भी प्राणघातक बीमारी है।
- रक्त चेचक – इसकी गोटियाँ सब लाल रहती हैं, शरीर, मुँह, नाक मलद्वार या मूत्रद्वार से रक्त निकलता है, इसमें प्राय: 7-8 दिनों में ही रोगी की मृत्यु हो जाती है।
- वेरियोलॉयड या माॅडिफायड – टीका देने के बाद उसकी गोटियाँ निकलती हैं।
इन 6 प्रकार के चेचकों में जिसमें बीमारी बहुत भीषण भाव धारण करती है, वहाँ – वैरियोलिनम 3x और जहाँ रोग उतना भयानक न हो, वहाँ वैक्सिनिनम का प्रयोग करना चाहिये। इससे आशा से अधिक फायद होता है।
चेचक की गोटियाँ अच्छी तरह बाहर न निकल कर बैठ जाना अच्छा लक्षण नहीं है, इससे नाना प्रकार के उपसर्ग पैदा होते हैं। गोटियाँ बैठ जाने पर-कूप्रम, जिंकम सल्फ, एपिस प्रभृति दवाएँ फायदा करती हैं, उनका लक्षण देखें । अगर गोटियाँ अच्छी तरह निकलकर रोगी बेहोश की तरह पड़ा रहे तो वैरियोलिनम फायदा करती है; पर अगर रोगी बहुत छटपटाये, दूसरे-दूसरे उपसर्गो के साथ होंठ लाल ही जाये तो सल्फर फायदा करता है। अगर चेचक का बुखार बढ़कर विकार हो जाय – ऐसिड कार्बोल, पाइरोजिन, लैकेसिस, स्ट्रैमोनियम प्रभृति दवाएँ निर्दिष्ट है। चेचक के साथ ब्रोंकाइटिस, निमोनिया प्रभृति रहने पर – एण्टिम टार्ट, फॉस्फ़ोरस प्रभृति की जरूरत पड़ती हैं। रक्तस्रावी चेचक में – क्रोटेलस, थ्लैस्पि वर्सा, एल्यूमिना, आर्सेनिक प्रभृति का भी प्रयोग कर देखा जा सकता है। चेचक की गोटियों पर – थूजा, हाइड्रैस्टिस Q या इसके लोशन का बाहरी प्रयोग किया जाता है।
चेचक वाले रोगी के शरीर पर – गघी का दूध लगाना और रोगी को गघी का दूध पिलाना बहुत फायदा करता है, यह चेचक रोग की एक दवा मानी जाती है। देवी शीतला ने मानो यही शिक्षा देने के लिये गधे को वाहन रूप में ग्रहण किया है।
सारासिनिया पर्पुरिया – चेचक की एक तरह की पेटेण्ट और प्रतिषेधक दवा है। मेलाण्ड्रिनम, वैक्सिनिनम और वैरियोलिनम इन तीनो में वैरियोलिनम चेचक की प्रतिषेधक दवा है। जरूरत हो तो चेचक का रोगी देखने के पहले चिकित्सक को स्वयं एक दिन 1 मात्रा 30 या 200 शक्ति का वैरियोलिनम सेवन कर लेना चाहिए, अगर ज्यादा जरूरत मालूम हो तो 8-10 दिन बाद फिर 1 मात्रा खा लें । रोग आक्रमण के भय से किसी को बार-बार नहीं खाना चाहिए, नहीं तो स्वयं ही बीमार हो जाना पड़ेगा। गोटियाँ निकलने के समय और पकने के पहले बैठ जाना बहुत बुरा लक्षण है, इसमें और रोग के साथ निमोनिया, ब्रोंकाइटिस, सड़ा घाव, फ़ोड़े उपसर्ग पैदा हो जाने पर तथा रक्त-स्रावी चेचक में रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।
क्रम – 30, 200 शक्ति।