[ जर्मनी के एक तरह के साँप के विष से तैयार होता है ] – शिरा-प्रदाह और शिरा का बहुत अधिक फूलना ( phlebitis ), शिरा-प्रसारण ( varicosis ), यकृत का बढ़ना और उसमें दर्द, अन्ननली का शोथ और सूजन, हृत्पिण्ड के कपाट की बीमारी में कॉम्पेन्सेसन फेल और जहाँ डिजिटेलिस से फायदा नहीं होता, छाती मानो चिपक जाती है, इसलिए श्वास में बहुत तकलीफ होती है; निम्नांग मेें अकड़न, नाभि की जड़ मेें दर्द ; हाथ, जीभ और दाहिनी आँख का फूलना, अस्पष्ट बातें और स्त्रियों का रजः स्राव बन्द होने की उमर में बहुत ज्यादा रक्तस्राव या किसी दूसरी तरह की बीमारी में यह ज्यादा फायदा करता है। एक चिकित्सक का कथन है –
एक वृद्धा स्त्री – उमर प्रायः 65 वर्ष, जरायु में क्या हो गया था, ठीक समझने में न आता था, बीच-बीच में अकसर रजः स्राव होता था। एक दिन एकाएक उसे इतना ज़्यादा रजः स्राव हुआ कि उसे शीत आ गया, वह मूर्च्छित होकर शय्याशायी हो गयी ।
रोगिणी को कार्बो, सैबाइना, प्लाटिना प्रभृति कई दवाएँ दो-तीन दिनों तक खिलायी गयी, कोई फायदा न हुआ। अन्त में वाइपेरा 12वीं शक्ति की कई मात्राएँ सेवन करने पर, 36 घंटों में स्राव परिमाण क्रमशः घट कर दो दिनों में ही रजःस्राव बंद हो गया। इसके बाद प्रति मास एक मात्रा के हिसाब से 3-4 महीने वाइपेरा सी-एम शक्ति प्रदान करने पर बीमारी संपूर्ण आरोग्य हो गयी और रोगिणी स्वस्थ हो गयी।
क्रम – निम्न और उच्च दोनों प्रकार की शक्तियाँ फायदा करती हैं।